एक देश में दो होमरूल लीग
आज हम इस आर्टिकल में होमरूल लीग पार्ट 2 के बारे में चर्चा करेंगे. इसके पहले आर्टिकल में हमने देखा था कि भारत में दो होमरूल काम कर रही थी एक तिलक की होम रूल लीग और दूसरी एनी बेसेंट की होम रूल लीग। तिलक की होम रूल लीग काम करी थी महाराष्ट्र, वर्हाड, सेंट्रल प्रोविंस तथा कर्नाटक राज्यों में । असल में इन क्षेत्रो में तिलक ने 6 ब्रांचेस होमरूल की शुरू की थी। इन 6 ब्रांचेस में क्या काम किया जाएगा? कौन सी गतिविधियां की जाएगी? यह पहले से तय कर दिया गया था। मतलब सारी गतिविधियां यहां पर स्पष्ट थी।
एनी बेसंट की होमरूल लीग
इसके अलावा अगर हम एनी बेसेंट की होम रूल लीग की बात करें तो इनकी होम रूल लीग पूरे भारत में काम कर रही थी लेकिन जहां तिलक की होमरूल काम करी थी वहां पर एनी बेसेंट की होम रूल लीग काम नहीं कर रही थी। लेकिन तिलक की होमरूल की तरह यहां पर कोई भी चीज क्लियर नहीं थी और कितनी ब्रांच खोले जाएंगे पूरे भारत में यह भी क्लियर नहीं था। लेकिन एनी बेसेंट ने कुल 200 ब्रांच होमरूल की खोली थी पूरे भारत में। जबकि तिलक की होमरूल की केवल 6 ब्रांचेस थी वह भी लिमिटेड क्षेत्र में। और ज्यादा ब्रांच खोलने की अनुमति भी तिलक को नहीं थी।
होमरूल लीग ब्रांच के कार्य ?
होम रूल लीग के सदस्य लोगबाग के बीच जाकर राजनीतिक चर्चा करते थे और देश की समस्या से लोगों को अवगत कराते थे। लोगों को self-government रूल के फायदे गिनाकर होम रूल लीग की मांग के लिए एकजुट करते थे. लेकिन एनी बेसेंट की ब्रांच इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि कुछ लोगों ने तो टाइम पास में ही ब्रांच खोल कर रख दी थी। और इन ब्रांचेज में कुछ खास काम भी नहीं हो रहा था।
कांग्रेस के सदस्य जिन्होंने होम रूल लीग ज्वाइन की.
- जवाहरलाल नेहरू ने अलाहाबाद में होम रूल लीग की ब्रांच शुरू की थी।
- मोहम्मद अली जिन्ना तिलक की मुंबई में होमरूल लीग की ब्रांच की बागदौड संभाल रहे थे.
लेकिन यहां प्रश्न पड़ता है कि दो होमरूल लीग की जरूरत क्यों पड़ी ? क्या तिलक और एनी बेसेंट के विचारधारा में मतभेद थे ? क्या तिलक और एनी बेसेंट होमरूल लीग नहीं चला सकते थे ?
असल में बात यह है कि एनी बेसेंट और तिलक में कोई मतभेद नहीं था एवं कोई मनमुटाव भी नहीं था लेकिन जो तिलक के अनुयायी थे और जो एनी बेसंट के अनुयायी थे उनके बिच मतभेद थे. इसलिए दोनों ने स्थितियों को भांपते हुए अपने अपने क्षेत्र बाँट लिए.
तिलक की होमरूल लीग
तिलक ने अपनी होमरूल लीग में एनी बेसंट की होमरूल लीग से दो उद्देश्य ज्यादा सम्मलित किये थे.
- पहली की भारत के राज्यों का गठन भाषा के आधार पर होना चाहिए.
- दुसरा उद्देश्य था की भारत में स्कूली शिक्षा मातृभाषा में हो न की अंग्रेजी में.
लेकिन अंग्रेजो ने प्रतिक्रिया में तिलक को नोटिस भेजा की अगर आप यह सब मांग रखोगे तो जेल में डाल दिया जायेगा. लेकिन तिलक नहीं माने इसलिए उन पर केस चला और तीन महीने केस चलने के बाद उन्हें बरी कर दिया गया. और इस केस की ख़ास बात थी की उनके पक्ष में जिन्ना केस लड़े एवं उनको बरी करवाया.
1916 का ऐतिहासिक कांग्रेस सेशन.
1916 का कांग्रेस सेशन लखनऊ में हुआ जिसे लखनऊ पॅक्ट के नाम से जाना जाता हैं. और यहाँ कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बिच जॉइंट सेशन होता हैं. इस सेशन दोनों होमरूल लीग को अपना स्ट्रेंथ दिखने का मौका मिला. तिलक ने एक पूरी ट्रेन बुक कर दी वेस्टर्न इंडिया से लेकर लखनऊ तक इसका नाम रखा गया कॉन्ग्रेस जंक्शन। तथा एनी बेसेंट ने अपने सभी मेंबर्स को कहा कि सब के सब लखनऊ से सेशन ज्वाइन कर लो। तथा होमरूल मेंबर के सभी लोग लखनऊ सेशन ज्वाइन करने के लिए पहुंच गए। जिस दिन लखनऊ सेशन समाप्त हुआ उसके बाद दोनों होम रूल लीग का जॉइंट सेशन हुआ। लगभग 1000 मेंबर्स ने इस जॉइंट सेशन को जॉइन किया था। तथा मंच पर 2 प्रमुख मेंबर थे तिलक और एनी बेसेंट। इससे समझ में आ रहा था कि होमरूल लीग की पापुलैरिटी काफी बढ़ गई थी।
अंग्रेजो ने एनी बेसंट को जेल का रास्ता दिखाया
जब अंग्रेजों को इस बात की खबर लगी तो उन्होंने डिफेन्स ऑफ इंडिया एक्ट के तहत एनी बेसेंट और अरुंडेल को जेल में डाल दिया। और दोनों के खिलाफ सेडिशन यानी कि राजद्रोह का चार्ज लगाया। उस समय एनी बेसंट इतनी पॉपुलर व्यक्ति थी की उनके कैद होने से पूरे देश में गुस्सा भड़क गया। इससे कांग्रेस के बड़े लीडर ने देखा कि यही समय है कुछ कर गुजरने का हैं इसलिए कांग्रेस के बड़े लीडर जैसे कि मदन मोहन मालवीय और सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने होम रूल लीग ज्वाइन की।
तिलक की चेतावनी तथा अगस्त डिक्लेरेशन
उधर तिलक ने जाहिर किया कि अगर एनी बेसंट को छोड़ा नहीं गया तो वे पैसिव रेजिस्टेंस और सिविल डिसऑबेडिएंस का रास्ता अपना लेंगे। पैसिव रेजिस्टेंस और सिविल डिसऑबेडिएंस का मतलब हम जानेंगे हमारे अगले आर्टिकल में। जब भारत में यह सब घमासान मचा था तब ब्रिटिश के संसद में नए सेक्रेटरी याने भारत मंत्री मोंटेग्यू ने 1917 में एक ऐतिहासिक डिक्लेरेशन किया जिसे अगस्त डिक्लेरेशन के नाम से जाना जाता हैं. इस डिक्लेरेशन के तहत ब्रिटिश गवर्नमेंट अपने सरकार में ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को मौका देने वाली थी। ताकि भारतीय भविष्य में भारत के लिए एक जवाबदार याने की रिस्पांसिबल सरकार बना सके। इस रेस्पोंसिबल सरकार का मतलब कि जो इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव हैं याने की प्रतिनिधि है वह जब चाहे सरकार को गिरा सकते हैं। होम रूल लीग में एनी बेसेंट तथा तिलक का उद्देश्य होम रूल लीग यानी कि स्वशासन था लेकिन मोंटेग्यू तो रिस्पांसिबल गवर्नमेंट की बात कर रहे थे जबकि उस समय एनी बेसंट जेल में थी और बहुत सारे मॉडरेट कांग्रेसी नेता होमरूल लीग ज्वाइन कर रहे थे। लेकिन एनी बेसंट जेल में होने के कारण बागडोर मॉडरेटर के हाथ में थी और उनसे कुछ अपेक्षा नहीं कर सकते थे। और मोंटेग्यू ने रिस्पांसिबल गवर्नमेंट की बात रखकर मॉडरेट इस घोषणा खुश हो चुके थे।
होमरूल लीग समाप्ति
सितंबर 1917 में एनी बेसेंट रिहा हुई। बेसंट इसलिए रिहा हुई थी क्योंकि मोंटेग्यू डिक्लेरेशन के अनुसार होम रूल लीग की मांग सेडिशन यानी कि राजद्रोह की कैटेगरी से बाहर हो गई थी। लेकिन रिहा होने के बाद एनी बेसेंट होमरूल लीग रुको उतने तेजी से आगे नहीं लेजा पा रही थी। इसके अलावा बाल गंगाधर तिलक वेलंटाईन चिरोल के खिलाफ केस लड़ने के लिए 1918 में लंदन चले गए थे असल में वैलेंटाइन चिरोल ने किताब लिखी थी और उस बुक में उन्होंने तिलक को भारत के असंतोष का जनक कहा था इसलिए मानहानि का केस लड़ने वे लंदन गए थे। कुल मिलाकर देश में होमरूल की हालत यह थी कि एनी बेसेंट इस आंदोलन को अकेली आगे बढ़ाने में सक्षम नहीं थी और लोकमान्य तिलक कई दिनों से भारत के बाहर थे। ऊपर से मोंटेग्यू डिक्लेरेशन ने मॉडरेट को पहले से ही खुश कर दिया था। इस प्रकार से होमरूल लीग जिसे हम ऑल इंडिया होम रूल लीग से जानते धीरे-धीरे बंद पड़ गयी. उसके बाद 1920 में होमरूल लीग कांग्रेस में ही मर्ज हो गयी. यह थी पूरी जानकारी होमरूल लीग की धन्यवाद!
SAKSHI
1 Sep 2020Really thankful for your efforts towards Hindi medium students 🙏