आज के आर्टिकल में हम सूरत स्प्लिट के बारे में पढ़ेंगे. 1907 का इंडियन नेशनल कांग्रेस का जो अधिवेशन हुआ था वह सूरत में हुआ था। इसमें एक्सट्रीमिस्ट तथा मॉडरेट के बीच वैचारिक टकराव देखने को मिला। उसके बाद यह वैचारिक द्वंद संघर्ष में बदल गया और आखरी में एक्सट्रिमिस्ट तथा मॉडरेट के बीच झगड़ा हो गया। लेकिन यह झगड़ा क्यों हुआ ?और यह दोनों आपस में क्यों लड़ बैठे और सूरत अधिवेशन में क्यों अलग हो गए ?इसका कारण है स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन. स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन के बारे में जानकारी हमने पिछले आर्टिकल में पढ़ी.
एक्सट्रिमिस्ट तथा मॉडरेट के मध्य वैचारिक अंतर.
असल में कांग्रेस के भीतर दो गुट थे तथा यह दो गुट वैचारिक आधार पर एक दूसरे से भिन्न थे. एक था नरम दल तथा दूसरा था गरम दल। जो नरम दल के नेता थे या फिर जो मॉडरेट थे वे ग्रैजुएल कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स चाहते थे यानी कि वे धीरे-धीरे संवैधानिक मार्गो का प्रयोग करते हुए अंग्रेजों से अपनी मांग मनवाने में विश्वास रखते थे। इसका मतलब वह अंग्रेजी प्रशासन में अपनी हिस्सेदारी की मांग करते थे तथा वे अंग्रेजों से यह उम्मीद रखते थे कि जो भी पॉलिसी बनाई जा रही है वह भारतीयों के बेहतरी के लिए होनी चाहिए । जबकि दूसरी और एक्सट्रिमिस्ट यानि की गरम दल के नेता सीधी तौर पर सेल्फ गवर्नमेंट चाहते थे यानी कि स्वराज। मतलब जो सरकार है वह भारतीय लोगों की ही होना चाहिए ब्रिटिशर्स कि नहीं. मॉडरेट याने की नरम दल के नेता पीपीपी मॉडल पर विश्वास रखते थे याने की प्रेयर, पेटीशन, पब्लिक मीटिंग पर। जबकि एक्सट्रीमिस्ट याने की गरम दल के नेता रेडिकल मेथड पर बिलीव करते थे, पीपीपी मेथड पर उनको जरा विश्वास नहीं था। मॉडरेट ब्रिटिश सरकार के फेयर पॉलिसी पर विश्वास रखते थे। उन्हें लगता था कि अगर हम ब्रिटिश सरकार को सारे प्रूफ दिखाते हैं तथा उन्हें अच्छे से बात समझाते हैं तो वह हमारी मांग जरूर पूरी करेंगे। इसके विपरीत जो एक्सट्रिमिस्ट याने की गरम दल के नेता थे वे सोचते थे कि ब्रिटिशर्स को प्रेशराइज करके याने दबाव में डालकर उनसे अपनी मांग मनवानी चाहिए। एक्सट्रीमिस्ट मानते थे कि अगर पूरा देश एकजुट होकर इनके सामने खड़ा हो जाए तो ब्रिटिश सरकार उनके आगे टिक नहीं सकती।
1885 से 1905 मॉडरेटर यानि नरम दल का दबदबा
इंडियन नेशनल कांग्रेस 1885 में में स्थापित हुई थी। 1885 से लेकर 1905 तक कांग्रेस में मॉडरेटर याने की नरम दल का दबदबा था। वैसे भी उस समय एक्सट्रीमिस्ट याने की गरम दल के नेताओं की संख्या काफी कम थी। इसलिए उस समय मॉडरेटर जो भी चाहते थे वही होता था। इसलिए 1885 से लेकर 1905 के इरा को मॉडरेटर फेज कहा जाता है। लेकिन 1905 में ब्रिटिशर्स ने बंगाल का विभाजन कर दिया इसके विरोध में बंगाल में ही नहीं तो पूरे देश में स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन शुरू हो गया। लेकिन कमाल की बात यह है कि यह आंदोलन इंडियन नेशनल कांग्रेस के नेतृत्व में नहीं हो रहा था कहने का मतलब देश में एक राष्ट्रीय आंदोलन हुआ लेकिन देश की एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी इसका नेतृत्व नहीं कर रही थी इसके लिए जो गरम दल के नेता थे वह कांग्रेस के नरम दल के नेताओं को जिम्मेदार ठहराते थे। और यह सच्चाई भी है क्योंकि जो मॉडरेटर यानी कि नरम दल के नेता अंग्रेजों के सामने खुलकर विरोध करने से कतरा रहे थे क्योकि इसके पीछे के मुख्य वजह थी की अंग्रेज सरकार, 1909 में मोर्ले मिंटो रिफार्म लाने वाले थे। तथा इस रिफार्म को लेकर मॉडरेट याने की नरम दल के नेता काफी आशा लगाए बैठे थे। यानी कि अच्छे दिन आने वाले हैं, मतलब इस रिफॉर्म द्वारा कुछ अच्छे बदलाव देखने को मिलेंगे। जैसे कि मॉडरेटर को उम्मीद थी कि 1909 के रिफॉर्म में अंग्रेज सरकार सेंट्रल तथा प्रोविंशियल लेजिस्लेटर में भारतीयों की संख्या बढ़ाएगी। तथा कांग्रेस पार्टी के नरम दल के नेताओं को इस बात का भय था कि अगर वे मुखरता से अंग्रेजों का आंदोलन में विरोध करते हैं तो मार्ले मिंटो रिफार्म में इसका बुरा असर देखने को मिलेगा। तथा दूसरी और एक्सट्रीमिस्ट याने की गरम दल के नेताओं का कहना था कि पूरा देश उनके के साथ खड़ा है अगर कांग्रेस चाहे तो ब्रिटिशर्स को प्रेशराइज करके या उनके ऊपर दबाव डालकर self-government की मांग मनवा सकती है। अगर आसान भाषा में समझे तो एक्सट्रीमिस्ट यही कह रहे थे कि मोर्ले मिंटो रिफार्म से ज्यादा उम्मीद मत लगाओ बल्कि स्वशासन की मांग शुरू कर दो। लेकिन नरम दल के नेता यानी कि मॉडरेटर उनका बिल्कुल भी साथ देने को तैयार नहीं थे।क्योकि उनका पूरा फोकस ता मार्ले मिंटो रिफार्म पर। उन्हें इस बात का संदेह था कि जो एक्सट्रीमिस्ट है वह उन्हें आंदोलन में ढकेल कर उनका बना बनाया प्लान चौपट कर सकते हैं।
सूरत स्प्लिट की पृष्ठभूमि
जब बंगाल पार्टीशन हुआ उसके बाद जो कांग्रेस का अधिवेशन हुआ वह वाराणसी में हुआ। तथा 1905 में वाराणसी में कांग्रेस प्रेसिडेंट बने गोपाल कृष्ण गोखले। तथा वाराणसी के अधिवेशन में यह कहा गया कि कांग्रेस स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन के साथ खड़ी है इसका मतलब यहां पर एक्सट्रीमिस्ट मॉडरेटर पर भारी पड़े। तथा देश में परिस्थिति भी कुछ उस प्रकार की थी अगर कांग्रेस आंदोलन के साथ खड़ी होने के लिए राजी नहीं होती तो लोगों का भरोसा कांग्रेस से उठ सकता था। तथा मॉडरेटर को यानि की नरम दल के नेताओं को इच्छा ना होते हुए भी दबाव के आगे झुकना पड़ा।
1 वर्ष बाद 1906 में कांग्रेस का अगला अधिवेशन कोलकाता में हुआ। तथा इस अधिवेशन में एक्सट्रीमिस्ट की यह मांग थी कि कांग्रेस आंदोलनकारियों को पैसिव रेजिस्टेंस का मार्ग दिखाएं। मतलब कि यह कहा जाए कि ब्रिटिशर्स की नौकरियां छोड़ दीजिए।, ब्रिटिशर्स के कानूनों का पालन करना बंद कर दो। ब्रिटिशर को किसी भी प्रकार का टैक्स देना बंद कर दो। ब्रिटिश सरकार के स्कूल में जाना बंद कर दो। इसी को कहते हैं पैसिव रेजिस्टेंस।
तथा यह तभी हो सकता था जब 1906 के कांग्रेस अधिवेशन की कमान कोई एक्सट्रीमिस्ट संभाले। तथा मॉडरेट का यह मानना था कि अगर एक्सट्रीमिस्ट को रोकना है तो इस अधिवेशन में कोई मॉडरेटर प्रेसिडेंट बनना चाहिए। एक्सट्रीमिस्ट तथा मॉडरेटर मान लो आमने-सामने खड़े हो गए। तथा यहां पर टकराव या संघर्ष होने ही वाला था तो बीच में आ जाते हैं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दादा भाई नौरोजी, तथा उन्होंने मामले को ठंडा किया तथा बीज बचाव करते हुए स्वयं अध्यक्षता संभाली
कोलकाता अधिवेशन में मॉडरेटर तथा एक्सट्रीमिस के बीच का टकराव कुछ देर के लिए थम गया क्योंकि एक्सट्रीमिस तथा मॉडरेट दोनों दादा भाई नौरोजी की काफी इज्जत करते थे। लेकिन इस अधिवेशन में भी एक्सट्रिमिस्ट, मॉडरेटर पर भारी पड़े तथा उन्होंने दादा भाई नौरोजी से डिक्लेअर करवा दिया कि अब जो कांग्रेस का उद्देश है वह है Self-government याने की स्वराज तथा यह शब्द पहली बार कांग्रेस के अधिवेशन से निकला। लेकिन इसके बाद दिन-प्रतिदिन मॉडरेटर तथा एक्सट्रीमिस्ट के बीच के मतभेद बढ़ रहे थे।
सूरत स्प्लिट
कोलकाता के बाद का सेशन होने वाला था पुणे में लेकिन लास्ट मोमेंट में जीके गोखले ने अधिवेशन का स्थान बदलकर पुणे से सूरत में शिफ्ट कर दिया। सूरत म पहले ही,पहुंचकर एक्सट्रीमिस्ट के नेताओं ने 2 से 3 जनसभाएं कर दी। तथा ऐसे माहौल में जो अधिवेशन हुआ फिर से एक बार एक्सट्रीमिस तथा मॉडरेट एक-दूसरे के आमने-सामने थे। तथा सूरत अधिवेशन में एक्सट्रीमिस्ट, लोकमान्य तिलक या लाला लाजपत राय को सूरत अधिवेशन का प्रेसिडेंट बनाना चाहते थे। तथा मॉडरेटर प्रेसिडेंट बनाना चाहते थे राज बिहारी घोष को। तथा वोटिंग के बाद राज बिहारी घोष सूरत अधिवेशन के अध्यक्ष बने। अधिवेशन के दौरान लाला लाजपत राय अपने कुछ मुद्दे रखना चाहते थे। लेकिन मदन मोहन मालवीय ने उन्हें बोलने से रोक दिया। इससे एक्सट्रीमिस्ट याने की गरम दल के नेता भड़क गए। तथा तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई। इसी दौरान किसी ने जूता निकालकर फेंक दिया। इसी बीच किसी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी पर जूता फेंका। तथा उसके बाद किसी और ने फिरोजशाह मेहता पर भी जूता फेंक कर मारा तथा जिन पर जूते फेंके गए वह सारे मॉडरेट याने की नरम दल के नेता थे। तथा इन वजह से चीजें नियंत्रण के बाहर हो चुकी थी। तथा आखिर में पुलिस ने मामला नियंत्रण में किया। इस सेशन के बाद मॉडरेटर यानी कि नरम दल के नेताओं ने एक गुप्त मीटिंग बुलाई। तथा उन्होंने निर्णय लिया है कि अब से कांग्रेस में गरम दल के नेता यह कांग्रेस पार्टी का हिस्सा नहीं माना जाएंगे। तथा इस प्रकार एक्सट्रीमिस्ट नेताओं के लिए कांग्रेस के दरवाजे बंद हो गए। इस प्रकार 1907 में सूरत के अधिवेशन में एक्सट्रिमिस्ट तथा मॉडरेटर स्प्लिट हो गए.
एक्सट्रिमिस्ट नेताओ की दुर्गति
ब्रिटिश सरकार को इसी मौके की तलाश भी थी। 1907 के सूरज स्प्लिट के बाद कुछ एक्सट्रीमिस नेताओं को अंग्रेज सरकार द्वारा जेल में इतना टॉर्चर किया गया बिपिन चंद्र पाल तथा अरविंद घोष जैसे एक्सट्रीमिस नेताओं ने राजनीति से अलविदा कर दिया। लाला लाजपत राय देश छोड़कर ब्रिटेन चले गए ब्रिटेन के बाद अमेरिका चले गए। तथा अन्य एक्सट्रिमिस्ट नेताओं को जेल में डाल दिया गया। बाल गंगाधर तिलक को मंडले की जेल में 6 वर्षों के लिए रखा गया।
स्प्लिट होने के बाद के परिणाम
लेकिन अब बात आती है क्या स्प्लिट होने के बाद मॉडरेटर के अच्छे दिन आ गए थे ? बिलकुल नहीं, बल्कि अंग्रेजों के अच्छे दिन आ गए थे। और उसके बाद मॉडरेटर को यह बात समझ में आ गई थी अंग्रेज सरकार मॉडरेटर की बात इसलिए मानते हैं क्योंकि उनके साथ एक्सट्रिमिस्ट लीडर खड़े थे. अंग्रेज सरकार भली-भांति परिचित थी कि अगर मॉडरेटर लीडर की बात नहीं मानी गई तो एक्सट्रीमिस लीडर हावी हो जाएंगे और कांग्रेस कुछ रेडिकल स्टेप ले सकती है.
वहीं दूसरी तरफ एक्सट्रीमिस ने भी यह रीयलाइज नहीं किया था कि उनके एक्सट्रिमिस्ट तौर तरीके के बावजूद उन्हें जो पॉलिटिकल लिबर्टी मिली हुई है उसके पीछे मॉडरेट्स है. यहां यह बात भी नोटिस करने की है कि जब उन्हें कांग्रेस से निकाला गया तो ब्रिटिश ने एक्सट्रिमिस्ट को पूरे फाॅर्स से कुचल दिया तथा उन्हें जेल में डाल दिया गया। तो यह थी सूरत स्प्लिट की पूरी कहानी।धन्यवाद!
Harshit sharma
22 Apr 2020Spectacullar sir ji
Nishant Tripathi
24 Apr 2020Thank you!
Shubh lakshan pandey
8 Jun 2020Sir, you are doing great job.