साइमन कमीशन

साइमन कमीशन की स्थापना.

आज हम साइमन कमीशन के बारे में पढ़ेंगे. साइमन कमीशन कि कहानी की शुरुआत होती है,गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 से जिसे मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड रिफॉर्म के नाम से भी जाना जाता है। इस एक्ट की खास बात यह थी कि इस एक्ट द्वारा ब्रिटिश गवर्नमेंट ने अपने एडमिनिस्ट्रेशन में भारतीयों का पार्टिसिपेशन करना शुरू कर दिया था और साथ ही ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट यह भी प्लान कर रही थी इंडिया को एक रिस्पांसिबल गवर्नमेंट की ओर ले जाया जाएगा इसी एक्ट 1919 का उद्देश्य यह भी था कि 10 साल के बाद यानी 1929 में एक कमीशन अपॉइंट किया जाएगा जो मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड रिफॉर्म के इंपैक्ट और प्रोग्रेस को एग्जामिन करेगा और इसके अलावा क्या रिफॉर्म होना चाहिए यह भी रिकमेंड करेगा। 1927 में लॉर्ड बिरकेनहेड सेक्रेटरी ऑफ स्टेट थे और उन्हीं के देखरेख में इस कमीशन को सेट किया गया। इस कमीशन में 7 सदस्य थे एवं सर साइमन को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया और उन्हीं के नाम पर इस कमीशन को साइमन कमीशन कहा जाता है.

साइमन कमीशन पर भारतीय नेताओ की प्रतिक्रिया.

जब साइमन कमीशन भारत में आता है तो भारतीय नेता खफा हो जाते हैं क्योंकि कमेटी में एक भी भारतीय नहीं थे. जबकि गवर्नमेंट ऑफ इंडिया 1919 में यह बात कही गई थी की ब्रिटिश गवर्नमेंट मैं इंडियन पार्टिसिपेशन को इनक्रीस करना चाहता है और जहां भारतीय कॉन्स्टिट्यूशन के बात हो रही है वहा एक भी इंडियन को नहीं रखा गया यह बात भारतीयों के लिए अपमानजनक थी. इसलिए कांग्रेस पार्टी, मुस्लिम लीग और कई सारे नेता साइमन कमीशन का बॉयकॉट करने का निर्णय लेते हैं। जब यह बात बिरकेनहेड के कानों तक पहुंचती है तब उसका कहना था कि उससे लगा नहीं था कि भारतीय इतने कैपेबल है कि वे अपना कंस्टीटूशन खुद बना सके। यानी एक ऐसा कॉन्स्टिट्यूशन जो भारत के हर एक क्लास, समुदाय एवं राजनीतिक पार्टी को एकमत से स्वीकार्य हो। लॉर्ड बिरकेनहेड ने यह कहा कि साइमन कमीशन तो बन चुका है लेकिन अब उसमें तो बदलाव नहीं किया जा सकता लेकिन अगर तुम लोग चाहते हो तो क्यों ना तुम भी एक रिपोर्ट बनाओ जो प्रत्येक क्लास और समुदाय एवं राजनीतिक पार्टी को स्वीकार्य हो।

नेहरू समिति की स्थापना

इंडियन लीडर ने इस चैलेंज को स्वीकार कर लिया। उसी वर्ष 1927 में कांग्रेस पार्टी का मद्रास सेशन हुआ जहाँ प्रेसिडेंट थे मुख्तार अहमद अंसारी यहां दो मेजर डिसीजन हुए पहला यह कि साइमन कमीशन के साथ सहयोग नहीं किया जाएगा। दूसरा यह कि वे एक ऑल पार्टी कॉन्फ्रेंस सेटअप करेंगे ताकि भारतीय संविधान को ड्राफ्ट किया जा सके ताकि वे ब्रिटिश सरकार को करारा जवाब दे पाए। यहां पर ऑल पार्टी कॉन्फ्रेंस में एक समिति की स्थापना की जिसके चेयरमैन थे मोतीलाल नेहरू और इस समिति ने जो संविधान ड्राफ्ट तैयार किया उसे ही नेहरू रिपोर्ट कहा जाता है।

साइमन चले जाओ

एक तरफ साइमन कमीशन दूसरी तरफ नेहरू कमेटी अपना-अपना ड्राफ्ट बनाने में व्यस्त थे। और दोनों रिपोर्ट का उद्देश्य था इंडिया के लिए एक ड्राफ्ट संविधान तैयार करना। इसी सिलसिले में जब 1928 में साइमन कमीशन भारत में आया तो पूरे देश में साइमन कमीशन के खिलाफ मास प्रोटेस्ट और हड़ताल की गई जगह-जगह साइमन कमीशन के मेंबर को काले झंडे दिखाए गए। एक नारा जो उस समय सबसे ज्यादा पॉपुलर था वह था साइमन GO BACK.

लाला लाजपत राय पंजाब में उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे जहां पर जेम्स सकॉट ने पुलिस लाठीचार्ज के आर्डर दे दिए इस लाठीचार्ज के कारण लाला जी को इतनी घातक चोट पहुंची कि उस चोट से उनकी मृत्यु हो गई उनकी मृत्यु 17 नवंबर 1928 को हुई।

नेहरू रिपोर्ट

इसके बाद 28 अगस्त 1928 को ऑल पार्टी कांफ्रेंस के लखनऊ सेशन में नेहरू कमेटी ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट सबमिट कर दी। हालांकि इसे स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि बहुत सारे डेलीगेट, जिन्ना, सुभाष चंद्र बोस, पंडित नेहरू मैं इस रिपोर्ट के अगेंस्ट वोट किया था। असल में नेहरू रिपोर्ट में डोमिनियन स्टेटस की मांग की गई थी। जिस वजह से सुभाष चंद्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरु नाराज थे। क्योंकि उनके हिसाब से यह एक कदम पीछे लेने वाली बात थी। इसलिए जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने मिलकर अप्रैल 1928 में एक नई ऑर्गेनाइजेशन शुरू की जिसका नाम था इंडियन ऑर्गेनाइजेशन इंडिपेंडेंस लीग हालांकि दिसंबर 1928 में कोलकाता सेशन में मोतीलाल नेहरू प्रेसिडेंट थे उन्होंने नेहरू रिपोर्ट प्रेजेंट कर दी और इस रिपोर्ट को मेजोरिटी वोटिंग के आधार पर स्वीकार किया गया। हालांकि यहां पर भी मांग डोमिनियन स्टेटस की ही थी।

अंग्रेजो को अल्टीमेटम

ब्रिटिशर्स को बताया गया कि इंडियन रिपोर्ट के साथ तैयार है और यह रिपोर्ट ब्रिटश सरकार को देने के साथ-साथ ब्रिटिश सरकार को एक अल्टीमेटम भी दे दिया गया अगर यह रिपोर्ट 1 साल के भीतर याने 31 दिसंबर 1929 तक स्वीकार नहीं की गई तो अंजाम बुरा होगा और ऐसी स्थिति में आप एक नए मूवमेंट के लिए तैयार रहना

साइमन कमीशन रिपोर्ट

तो परिस्थिति यह है कि भारतीयों ने ब्रिटिशर्स को नेहरू रिपोर्ट सौंप दी है लेकिन साइमन अभी भी रिपोर्ट कंप्लीट नहीं कर पाए थे इसी सिलसिले में वर्ष 1929 में साइमन एक बार फिर अपने कमीशन के साथ भारत आते हैं। तथा 1930 में साइमन कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट सबमिट कर दी।

राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का सुझाव

अब ब्रिटिश गवर्नमेंट के पास दो रिपोर्ट है एक साइमन कमीशन दूसरी नेहरू रिपोर्ट। ब्रिटिश गवर्नमेंट का मानना था की 3 राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस करते हैं। जहां ब्रिटिशर्स और इंडियन एक साथ बैठकर इन दोनों रिपोर्ट में आमने सामने बात करेंगे। एक बात यह भी कहि जाति हैं की तीन राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का सुझाव लॉर्ड इरविन को खुद जिन्ना ने दिया था। तो असल में ब्रिटिश सरकार का कहना था तीन राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के बाद ही गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 लाया जाएगा।

गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935

3 राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस हुई और उसके बाद राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के चर्चाओं के आधार पर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 लाया गया हालांकि इसमें ज्यादातर पॉइंट साइमन कमीशन की रिपोर्ट से थे और कुछ ही पॉइंट नेहरू रिपोर्ट के शामिल किये गए थे.

असल में जो भी हो गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 एक बहुत ही बड़ा एक्ट था जिसे हमारे मौजूदा कॉन्स्टिट्यूशन का बेस कहा जा सकता है. यह थी कहानी साइमन कमीशन की धन्यवाद!

This Post Has One Comment

  1. Sir I want English language notes.

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