सविनय अवज्ञा आंदोलन

आज के आर्टिकल में हम बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक डिस्कस करेंगे जिसका नाम है सविनय अवज्ञा आंदोलन जिसे नमक सत्याग्रह और दांडी मार्च भी कहा जाता है।

दांडी मार्च की पृष्ठभूमि

पिछले वीडियो में हमने देखा था कि कांग्रेस ने ब्रिटिश गवर्नमेंट को नेहरू रिपोर्ट भेज दी थी। और साथ ही अल्टीमेटम दे दिया गया था कि अगर 1 साल के भीतर यह रिपोर्ट लागू नहीं की गई तो इसका अंजाम बुरा होगा। ऐसी कंडीशन में कांग्रेस के एक बड़ा आंदोलन को लॉन्च कर सकती है। अगर यहां पर सारे इवेंट को क्रोनोलॉजिकल ऑर्डर में समझने की कोशिश करें तो चीजें कुछ इस तरह से है। 1928 को नेहरू रिपोर्ट ब्रिटिश गवर्नमेंट को सौंपी गई और अल्टीमेटम दिया गया था 1 साल का यानी दिसंबर 1929 तक का। दिसंबर 1929 तक कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार के जवाब का इंतजार किया। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने ना तो नेहरू रिपोर्ट को लागु किया था और ना ही उन्होंने कोई जवाब भेजा.

पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य

अब यह एक बात तो तय है कि कांग्रेस को एक बड़े आंदोलन खड़ा करना ही होगा। दिसंबर 1929 में कांग्रेस का लाहौर सेशन हुआ। जिसके प्रेसिडेंट चुने गए जवाहरलाल नेहरू यहां पर जवाहरलाल नेहरू ने अपनी भाषण में बोला कि नेहरू रिपोर्ट के जरिए हमने ब्रिटिश सरकार से डोमिनियन स्टेटस यानि स्व शासन की मांग की थी और उनको 1 वर्ष का समय भी दिया था किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। यह बात अब यहीं पर खत्म होती है, अब अगर ब्रिटिश गवर्नमेंट डोमिनियन स्टेटस देना चाहे भी तो भी हम नहीं लेंगे। यहां पर जवाहरलाल नेहरू ने एक घोषणा की और कांग्रेस के नए लक्ष्य को बताया कि अब कांग्रेस का लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य होगा यानी टोटल इंडिपेंडेंस। बेसिकली 1929 के लाहौर सेशन में पूर्ण स्वराज्य प्रस्ताव पारित किया गया। लाहौर सेशन के आखिरी दिन यानी कि 31 दिसंबर 1929 को लाहौर में रावी नदी के किनारे नेहरुजी ने भारत के झंडे को फहरा दिया और घोषणा कर दी कि आने वाली 26 तारीख यानी कि 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज्य दिवस मनाया जाएगा। इसके बाद से 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज्य दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

आंदोलन का फैसला

अब जो कि कांग्रेस ने नेहरू रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार को दी थी तो यह अल्टीमेटम दिया गया था कि अगर 1 साल के अंदर इसे पूरा नहीं किया गया तो कांग्रेस 1 मार्च को बड़े आंदोलन को लांच करेगी यहां पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने इसकी जिम्मेदारी गांधीजी को दी। गांधीजी का मिशन था सविनय अवज्ञा के आंदोलन को लॉन्च करना । गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी ताकी आंदोलन का ताना-बाना बुना जा सके। तभी उनकी नजर पड़ी नमक के कर पर। गवर्नमेंट ने 1882 में नमक कर रूल पास किया था। गांधीजी ने सोचा कि एक इंसान को जिंदा रहने के लिए नमक भी उतना जरूरी है जितना की हवा और पानी और अंग्रेजों ने इस पर भी अन्यायकारक कर लगा कर रखा है। इससे ज्यादा और अमानवीय कर क्या हो सकता है? ब्रिटिश सरकार ने उस समय नमक पर 60% से 70% टैक्स लगा रखा था। और अकेला नमक कर ब्रिटिश गवर्नमेंट का कुल राजस्व का का 15% होता था। नमक सभी की जिंदगी की जीवनावश्यक वस्तु है और उसे सभी प्रयोग करते चाहे अमीर गरीब दलित ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कोई भी। गांधीजी कोई ऐसा मुद्दा खोजा जिसे सभी लोग जुड़ सके। इसलिए गांधीजी ने निर्णय लिया कि वे नमक कर कानून को तोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत करेंगे।

साबरमती से दांडी की पद यात्रा

12 मार्च 1930 बुधवार का दिन था महात्मा गाँधी अपने 78 अनुयाई के साथ साबरमती आश्रम से दांडी की और पैदल चले. दांडी एक कोस्टल बीच है जो नमक बनाने के लिए बहुत ही अच्छा स्थान था। साबरमती से दांडी कुल 390 किलोमीटर की दूरी थी। गांधीजी के इस पदयात्रा को ही दांडी मार्च कहा जाता है. गांधीजी ने इस 390 किलोमीटर की दूरी 24 दिनों में पूरी की। इस आंदोलन को वाइट फ्लोइंग रिवर भी कहा जाता है क्योंकि गांधीजी ने सफेद रंग की खादी पहनी हुई थी। इन 390 किलोमीटर की यात्रा में गांधी जी के साथ हजारों लोग जुड़ चुके थे। और गांधीजी के पीछे पीछे चलने लगे थे। यह सभी लोग सफेद रंग की खादी के कपड़े पहने हुए थे। मानो ऐसा लग रहा था कि सफेद रंग की नदी बह रही हो इसलिए दांडी मार्च को एक वाइट फ्लोइंग रिवर भी कहा जाता है। लगभग 50000 लोग गांधी जी के साथ दांडी पहुंचे। और 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी ने अपने हाथ में नमक उठा कर नमक का अन्यायकारक कानून तोड़ दिया। इसी के साथ शुरुआत होती हैं सविनय अवज्ञा आंदोलन की । इसी के साथ गांधीजी ने कसम खाई थी वह साबरमती आश्रम तब तक नहीं लौटेंगे जब तक वे देश को आजाद नहीं करा देते। असल में गांधीजी साबरमती आश्रम कभी नहीं लौट पाए.

अन्य जगह नमक सत्याग्रह

देश के आजाद होने के बाद भी. दांडी मार्च के समर्थन करते हुए तमिलनाडु के सी राजगोपालाचारी ने भी पदयात्रा की की। इसके अलावा मालाबार के कलप्पन ने 128 किलोमीटर की मार्च की। तो इस तरह सविनय अवज्ञा आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में हुआ.

आंदोलन की शर्ते

लेकिन जब गांधीजी ने यह लोकप्रिय आंदोलन की शुरुआत की तो गांधीजी के कुछ शर्ते थी कि यह आंदोलन सब अहिंसा के तत्वों करेंगे. आंदोलन में हिंसा की यहां कोई जगह नहीं थी। गवर्नमेंट को कोई भी किसी भी तरह का जमीन कर नहीं देगा। हर एक गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन तथा इंस्टिट्यूशन का बॉयकॉट करना है। जैसे सिविल सर्विस, मिलिट्री, पुलिस सब का बॉयकॉट करना है। अगर कोई सरकारी विभाग में नौकरी करते हैं तो सरकारी नौकरी छोड़ देनी होगी। देसी सामान और दारू बेचने वाले दुकानों के आगे पिकेटिंग करने की होगी। पिकेटिंग का मतलब इन दुकानों के सामने शांतिपूर्ण तरीके से धरने देने होगे। इसके अलावा कोई भी कस्टमर सामान खरीदने के लिए आता है तो उसको उपयुक्त कारण बताकर राजी करो कि वह ऐसा ना करें। साथ ही हड़ताल करनी होगी। मतलब एकदम शांति से आंदोलन होने वाला था.

धरासणा आंदोलन

ब गांधीजी का मानना था कि अगर हम यह सारी चीजें करेंगे तो ब्रिटिश गवर्नमेंट की नीव हिल जाएगी एवं सरकार हार मानेगी । अब गांधीजी ने दांडी में नमक कानून तोड़ने के बाद निर्णय लिया कि वह अगला काम यह करेंगे की धरासणा साल्ट फैक्ट्री में रेड करेंगे इसी को धरासना सत्याग्रह भी कहा जाता है। असल में धारासना दांडी से 125 किलोमीटर दूर था उस समय वायसराय थे लॉर्ड इरविन। जो 1926 से लेकर 1931 तक भारत के वायसराय रहे थे। गांधीजी ने वॉइससराय को खुद पत्र लिखकर भेजा कि वे दांडी से धरासणा रेड मारने जा रहे हैं ब्रिटिश सरकार में अगर दम है तो आकर रोक ले गांधी के साथ पहलेही बहुत से लोग दांडी में पहुंच चुके थे। लॉर्ड इरविन ने सोचा कि यह देश में हो क्या रहा है? अगर यह आंदोलन की शुरुआत है तो न जाने आगे क्या क्या होगा? क्योंकि स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो रही थी इसलिए ब्रिटिश गवर्नमेंट घबरा गई थी परिणाम स्वरूप ब्रिटिश गवर्नमेंट आंदोलन को दबाने की कोशिशें शुरू कर दी थी।

अंग्रेजो की प्रतिक्रिया एवं धरासणा सत्याग्रह

सबसे पहले गांधीजी को हिरासत में लिया गया फिर पंडित नेहरू को हिरासत कर लिया गया लेकिन कांग्रेस इस मूवमेंट को रुकने नहीं देना चाहती थी। वो धरासणा मार्च जारी रखना चाहती थी। गांधीजी के अरेस्ट होने के बाद अब्बास तैयबजी ने धरासणा मार्च की कमान संभाली। और उनका साथ दे रही थी गांधीजी की पत्नी कस्तूरबा गांधी। लेकिन पुलिस ने कस्तूरबा गांधी को भी हिरासत में ले लिया। इसके बाद सरोजिनी नायडू ने इस आंदोलन को लीड करना शुरू किया और सरोजिनी नायडू धरासना पहुंची। धरासना पहुंचती की पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया। धरासना में मीडिया मौजूद थी और यह एक इंटरनेशनल न्यूज़ बन गई। ब्रिटिश सरकार ने बहुत ही नृशंसता तरीके से पीसफुल प्रोटेस्ट पर लाठियां बरसाई परिणामस्वरूप ब्रिटिश गवर्नमेंट दुनिया के सामने एक्सपोज हो चुकी थी।सभी देशों ने ब्रिटिश सरकार की आलोचना की। आंदोलन तो अभी शुरू ही हुआ था और गांधीजी के साथ कई कद्दावर नेताओं को हिरासत में लिया जा चुका था लेकिन इतने बड़े नेताओं का ना होने के बावजूद यह आंदोलन चलता रहा। और ज्यादा बढ़ता रहा क्यों कि गांधीजी ने अपने दांडी मार्च के दौरान लोगों को भाषण दिया था और बताया था की सविनय अवज्ञा आंदोलन के क्या मायने हैं एवं क्या-क्या उद्देश्य हैं और देशवसियों को क्या-क्या करना है. इसलिए गांधीजी और प्रमुख नेताओं के हिरासत में होने के बावजूद यह आंदोलन खूब फला फूला। ब्रिटिश गवर्नमेंट सभी कानून एवं रूल तोड़ने वालों को जेल में डालती रही आंदोलन दबाने के लिए हर तरीके की कोशिश की, हिंसा का सहारा लिया लाठीचार्ज किया, फायरिंग की. साठ हजार से भी ज्यादा लोग एक ही वर्ष के भीतर जेल में डाल दिए गए। जिन लोगों ने टैक्स नहीं चुकाया उनकी प्रॉपर्टी जमीने जप्त कर दी गयी लेकिन ब्रिटिश सरकार की हर एक कोशिश नाकाम हो रही थी।

प्रथम राउंड टेबल कांफ्रेंस असफल

आंदोलन फिर भी नहीं रुका इसे भी साइमन कमीशन की रिपोर्ट ब्रिटिश गवर्नमेंट ने नवंबर 1930 में लंदन में फर्स्ट राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइज की। इंडियन नेशनल कांग्रेस जो सिविल डिसऑबेडिएंस में बिजी थी उन्होंने फर्स्ट राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस अटेंड नहीं की और पार्टिसिपेट करने के लिए मना कर दिया अब सोचो जो देश की मुख्य पार्टी है और इतना बड़ा आंदोलन चला रही है जिसके पीछे हजारों लाखों लोग जेल जाने के लिए तैयार है। अगर वही पार्टी इस कांफ्रेंस में शामिल ना हो तो इस कांफ्रेंस की कोई वैल्यू नहीं बची थी। परिणाम स्वरूप पहेली राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस फेल हो गई।

गांधीजी से बातचीत

ब्रिटिश गवर्नमेंट चाहती थी की सेकंड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में किसी भी हाल में कांग्रेस शामिल होना चाहिए। और जिस वजह से सारा दबाव लॉर्ड इरविन पर आ गया ताकि वे किसी तरह कांग्रेस पार्टी को मनवाए और सेकंड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए राजी करवाएं। और वे भागते हुए गांधीजी के पास पहुंचे। जब यह खबरें अखबारों में छपी और लोगों तक पहुंची तो लोगों के मन में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। एक बात लोगो ने महसूस किया की एक बड़े आंदोलन कि आंदोलन की ताकत क्या होती हैं. दूसरी और 15 दिन गांधीजी और इरविन की बैठक चली और इस मीटिंग में गाँधी इरविन समझौता हुआ. गांधी इरविन पैक्ट के हिसाब से गांधीजी ने कुछ शर्त के आधार पर सविनय अवज्ञा आंदोलन को पीछे ले लिया और सेकंड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में उपस्थित होने के लिए लंदन चले गए।

आंदोलन से संबधित महत्वपूर्ण तथ्य

खान अब्दुल गफ्फार खान गांधीजी के एक अनुयायी थे.उन्होंने पेशावर में सविनय अवज्ञा आंदोलन को को लीड किया था. खान अब्दुल गफ्फार खान अहिंसा के तत्वों को पुरी तरह मानते थे. वे नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस से ताल्लुक रखते थे इसलिए इनको फ्रंटियर गाँधी कहा जाता था. अब्दुल गफ्फार खान ने 1929 में एक संगठन स्थापित की थी जिसका नाम था खुदाई खिदमतगार याने अल्लाह के नौकर. ये खुदाई खिदमतगार हमेशा लाल रंग के कपडे पहनते थे इसलिए इन्हे रेड शर्ट भी कहा जाता हैं.

इसके अलावा लोगो ने चौकीदारी टैक्स देने से मना कर दिया.यह एक प्रकार का टैक्स था जो सरकार ग्रामीणों पर लगाती थी इस टैक्स के पैसे से सरकार चौकीदार को नियुक्त करती थी जिसका काम था गाँव में सुरक्षा प्रदान करना क्योंकि पुलिस फाॅर्स कम होती थी तो ये उनके जगह जिम्मा सँभालते थे. गाओंवासियो ने टैक्स देने से मना कर दिया. क्योंकि गाओं वाले मानते थे चौकीदार चोर हैं.

इस आंदोलन की खास बात यह भी थी की औरतो ने इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. जबकि मुस्लिम समुदाय का समर्थन इस आंदोलन में काफी कम था. लेकिन यह आंदोलन बहुत ही सफल रहा. यह थी कहानी सविनय अवज्ञा आंदोलन की.धन्यवाद !

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