वर्ष १६१५ से लेकर १७७३ तक की महत्वपूर्ण घटनाये.

हमने पिछले आर्टिकल में पढ़ा की १६०० में ईस्ट इंडिया कंपनी बनती हैं तथा रॉयल चार्टर लेकर वर्ष १६०८ में  भारत पहुँचती हैं. इसके बाद १६१५ में जहाँगीर ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में फैक्ट्री स्थापित करने के लिए अनुमति देता हैं. अब हम कुछ महत्वपूर्ण इवेंट की या घटनाओ की इस आर्टिकल में चर्चा करेंगे जो वर्ष १६१५ से वर्ष १७७३ के मध्य हुए.

प्रेसीडेंसी, प्रशासनिक तथा एकाधिकार के बारे में जानकारी.

        बेसिकली, ईस्ट ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के विभिन्न भागो में अपने फैक्ट्रीज स्थापित करना शुरू कर दी. लेकिन इन सभी व्यापारी पोस्ट को सही तरीके से गवर्न करने के लिए एक प्रशासनिक याने एडमिनिस्ट्रेटिव मॉडल की जरुरत थी.  इसलिए इन व्यापारी पोस्ट को ग्रुप करके तीन एडमिनिस्ट्रेटिव प्रेसीडेंसी बनाये गए. जिनका नाम था मद्रास प्रेसीडेंसी,  बंगाल प्रेसीडेंसी एवं बॉम्बे प्रेसीडेंसी. यह प्रेसिडेन्सीज़ बेसिकली एडमिनिस्ट्रेटिव डिस्ट्रिक्ट थे तथा तीनो एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से काम करते थे तथा हर एक प्रेसीडेंसी का गवर्नर जनरल होता था, जो उनके प्रेसीडेंसी के लिए जबाबदार यानि रेस्पोंसिबल होता था.

         मद्रास प्रेसीडेंसी को प्रेसीडेंसी ऑफ़ फोर्ट एंड जॉर्ज भी कहा जाता हैं क्योकि मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रशासनिक कार्य इसी फोर्ट से हुआ करते थे. असल में, प्रेसीडेंसी ऑफ़ फोर्ट एंड जॉर्ज, ईस्ट इंडिया कंपनी की मुख्य फैक्ट्री थी. जिसे १६४० में स्थापित किया गया था. धीरे धीरे इस फैक्ट्री का महत्व बढ़ता गया एवं १६८२ में इसे मद्रास प्रेसीडेंसी का मुख्यालय याने की हेड क्वार्टर बना दिया गया.

      इसी तरह से प्रत्तेक प्रेसीडेंसी का एक मुख्यालय हुआ करता था जैसे बंगाल में फोर्ट विलियम तथा बॉम्बे में बॉम्बे कैसल. इसके अलावा एक बात ध्यान देने वाली हैं १६१५ से १६७३ तक कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर की संख्या २४ ही रखी गयी इसमें कोई बदलाव नहीं किये गए और क्योकि ईस्ट इंडिया कंपनी एक ट्रेडिंग कंपनी थी तो ईस्ट इंडिया कंपनी की एकाउंटेबिलिटी याने जवाबदेही कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स को थी. लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया ब्रटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के कमर्शियल याने व्यापारिक गतविधियों के साथ साथ पोलिटिकल याने राजनैतिक गतविधियों में भी शामिल हो रही थी इसलिए कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कमर्शियल यानि व्यापारिक तथा पोलिटिकल याने की राजनीतिक गतविधियों के लिए जवाबदेही हो गए थे.

         जैसे की हमने पिछले आर्टिकल में पढ़ा की ईस्ट इंडिया कंपनी के पास १५ वर्ष तक व्यापार का एकाधिकार था इस व्यापारिक मोनोपोली याने एकाधिकार में कोई बदलाव नहीं किया गया कहने का तात्पर्य १६१५ से लेकर १७७३ तक कोई और ब्रिटिश की कंपनी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अलावा भारत में आकर व्यापार नहीं कर सकती थी.

सैन्य शक्ति तथा विभिन्न युद्ध के बारे में जानकारी

      पिछले आर्टिकल में हमने पढ़ा था की ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने शत्रुओ तथा बाहरी आक्रमण से अपनी फैक्ट्री की सुरक्षा करनी होती थी इसलिए उन्होंने कुछ सिक्योरिटी फ़ोर्सेस याने सुरक्षा बल अपने साथ रखना पड़ता था लेकिन १७५० आते आते इन फोर्सेस ने मिलिटेंट ट्रूप का रूप ले लिया था एवं इस फाॅर्स में कुल ३००० सैनिक संख्या हो चुकी थी वही १७७३ तक इनकी संख्या में वृद्धि हो गयी थी कुल २६००० जबकि १७७६ तक लगभग ७६००० ट्रुप्स. इन सैनिको संख्या में लगातार वृद्धि हो रही थी एवं कारण था समय के साथ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी विभिन्न युद्धों में शामिल हो रही थी. जैसे १७४४  से १७४८  तक पहले कार्नेटिक युद्ध में शामिल थी. उसके बाद दूसरा कार्नेटिक युद्ध (१७४९  से १७५४) तीसरा कार्नेटिक युद्ध (१७५७ से १७६३). इसके बाद १७५६ में ब्लैक होल घटना को सिराज उद्दौला द्वारा अंजाम दिया गया परिणामस्वरूप १७५७ में प्लासी में युद्ध हुआ. (इस टॉपिक पर BOOKSTAWA चैनल में विडिओ उपलब्ध हैं आप इसका लाभ ले सकते हैं) इसके बाद १७६४ में बक्सर का युद्ध हुआ (यह युद्ध की जानकारी भी चैनल में उपलब्ध हैं)  इसके बाद युद्ध की फेरिस्त बढ़ ही रही थी हैदर अली के साथ मैसूर युद्ध आदि.

बंगाल फेमाईन

            इसके बाद एक और घटना हुयी जो १६१६ से ११७३ के बिच हुयी वह था बंगाल फेमाईन.याने की अकाल असल में भयंकर सूखे की वजह से बंगाल की जनता का बहुत ही बुरा, दयनीय तथा कष्टदायक दौर था. खाने की इतनी कमी हो गयी थी की बंगाल की एक तिहाई आबादी भूक की वज़ह से ख़त्म हो चुकी थी वह बेहद ख़ौफनायक मंजर था जिसे पढ़कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. इस अकाल या सूखे का असर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी पर भी बुरी तरह पड़ा जिस वजह से उन्हें काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा परिणामस्वरूप १७७२ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी ब्रिटिश सरकार से कर्जे की मांग कर दी फलस्वरूप ब्रिटिश गवर्नमेंट को ईस्ट इंडिया कंपनी की पॉलिसी पर यानि नीतियों पर नियंत्रण करने का एक अवसर मिल गया तथा कंपनियों के गतविधियों पर नियंत्रण करे हेतु उन्होंने १७७३ रेगुलेटिंग एक्ट लाया जिसके बारे में हम अगले आर्टिकल में पढ़ेंगे. धन्यवाद!

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