पृष्ठभूमि
आज हम रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के बारे में पढ़ेंगे जिसे हिंदी में १७७३ में अधिनियम भी कहा जाता है। हमने पिछले आर्टिकल में पढ़ा की किस तरह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी प्लासी तथा बक्सर युद्ध के बाद एक पॉलीटिकल पावर यानी कि एक राजनीतिक सत्ता बन बैठी। । इसका फायदा मात्र ईस्ट इंडिया कंपनी को ही नहीं बल्कि ब्रिटिश गवर्नमेंट को भी हो रहा था। क्योंकि ब्रिटिश गवर्नमेंट ने ही ईस्ट इंडिया कंपनी को व्यापार करने का एकाधिकार दिया था यानी केप ऑफ गुड होप के ईस्टर्न साइड में व्यापार करने का अधिकार केवल ईस्ट इंडिया कंपनी को था। यह एकाधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी को मुफ्त में नहीं मिली थी। असल में इस एकाधिकार के बदले ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटिश सरकार को। चार लाख पाउंड वार्षिक दे रही थी। लेकिन 1768 के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की फाइनेंसियल हालात यानी कि वित्तीय हालात काफी खराब हो चुकी थी। ईस्ट इंडिया कंपनी का दिवाला निकल रहा था । यानी कि ईस्ट इंडिया कंपनी बैंक करप्ट हो चुकी थी। तथा उसने ब्रिटिश सरकार को पैसा देना बंद कर दिया था। ब्रिटिश सरकार को लगा चलो पैसा आज नहीं तो कल मिलेगा ही। लेकिन 1768 के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की फाइनेंसियल हालत दिन-प्रतिदिन खराब हो रही थी। और वह दिन भी आ गया जब ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटिश सरकार को पैसे देने के बजाय ब्रिटिश सरकार को 100000 पाउंड क़र्ज़ पर देने की सिफारिश की। ब्रिटिश गवर्नमेंट ईस्ट इंडिया कंपनी को कंपनी को डूबना नहीं देना चाहती थी क्योकि यह एक ऐसी कंपनी थी जो उनके लिए एक कॅश काऊ थी । इसके बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट ने ईस्ट इंडिया कंपनी को वापस से पुनर्जीवित करने का या ने रिवाइव करने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने पहली बार एक अधिनियम का सहारा लिया। अधिनियम लाने का सरल सा मुख्य उद्देश्य था ताकि ब्रिटिश गवर्नमेंट कंपनी के कार्यों पर नियंत्रण तथा नजर रख सके। इस रेगुलेटिंग एक्ट के कारण ही। ब्रिटिश गवर्नमेंट को ब्रिटिश कंपनी पर नियंत्रण रखने का सुनहरा अवसर मिल गया।
कंपनी बैंकरप्सी (दिवाला) की कगार पर पहुंचने के कारण
1773 रेगुलेटिंग एक्ट के विशेषताएं जानने से पहले हमें यह जानना होगा कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि कंपनी १८६८ तथा १७७२ के बिच अर्श से फर्श पर पहुंच गयी और वह भी केवल पांच वर्षो के भीतर । तो इसका पहला कारण था बंगाल फेमाईन यानी कि बंगाल में सूखा पड़ चुका था। वर्ष 1769 में बंगाल में भयंकर सूखा तथा अकाल पड़ा था। उस समय बंगाल में बहुत ही कम बारिश हुई थी। तथा ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल की जनता पर बिना कोई मुरव्वत किये भारी भरकम टैक्स थोप दिए । जिससे बंगाल की जनता का जीना और भी दूभर हो गया। उस दौरान खाने की इतनी कमी पड़ चुकी थी की बंगाल की एक तिहाई जनता भूख से तड़प तड़प कर मर चुकी थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार पर भी इसका बुरा असर पड़ा तथा इस घटना ने कंपनी को नुकसान के तरफ धकेला. कंपनी का दिवाला निकल ने का दूसरा कारण है पहला मैसूर युद्ध. ईस्ट इंडिया कंपनी तथा हैदर अली के बीच यह युद्ध 3 साल तक चला (1766से लेकर 1769 तक)। तथा अंत में इस युद्ध का कोई भी निष्कर्ष नहीं निकला। लेकिन 3 साल तक चले इस लड़ाई के वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी। को इस युद्ध पर बहुत धन खर्चा करना पड़ा। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आय पर इसका बहुत ही बुरा असर पड़ा। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का बैंकरप्सी के पीछे तीसरा कारण था भ्रष्टाचार ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज कर्मचारी भर भर के करप्शन कर रहे थे। तथा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के भी उच्च अधिकारी काफी मालामाल हो गए थे रोबर्ट क्लाइव ने तो इतना धन अर्जित कर लिए था की ब्रिटिशर्स इंग्लैंड में उन्हें नाबोब कहकर उनका उपहास उड़ाते थे तथा असीमित रिश्वत एवं भ्रष्ट्राचार से कंपनी एकदम भिखारी हो गयी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का बैंकरप्सी का चौथा कारण चाय के उद्योग में नुकसान होना रहा। ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के बागानों से चाय उगा कर अमेरिका में बेच दिया करती थी। लेकिन अब अमेरिका में 85% चाय डच स्मगल करके लाते थे। जिस वजह से कंपनी की चाय कीमांग अमेरिका में खत्म हो चुकी थी जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी के गोदामों में चाय की पत्ती पड़े पड़े सड़ रही थी।
गवर्नर जनरल ऑफ़ बंगाल के पोस्ट का उदय
अब हम 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट के विशेषताओं के बारे में जानकारी हासिल करेंगे । हमने पिछले आर्टिकल में पहले से ही पढ़ चुके हैं कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में 3 प्रेसिडेंसी बनाए थे। बंगाल प्रेसिडेंसी मद्रास प्रेसिडेंसी तथा बॉम्बे प्रेसीडेंसी एवं प्रत्येक। प्रेसिडेंसी का एक गवर्नर होता था। यह तीनों प्रेसिडेंसी एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से काम करती थी। तथा रिपोर्ट करते थे कोर्ट आफ डायरेक्टर्स को। जिनकी संख्या थी २४ थी लेकिन रेगुलेटिंग एक्ट में इसमें कुछ बदलाव किए गए। इस एक्ट के तहत गवर्नर ऑफ बंगाल को गवर्नर ऑफ जनरल बना दिया गया। तथा बॉम्बे प्रेसीडेंसी एवं मद्रास प्रेसिडेंसी को गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल को रिपोर्ट करना पड़ता था तथा गवर्नर जनरल ऑफ़ बंगाल अब से से रिपोर्ट करेगा कोर्ट ऑफ़ ऑफ डायरेक्टर को। हालांकि कोर्ट ऑफ डायरेक्टर की की संख्या में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया। अभी भी यह संख्या 24 ही थी। इसके अलावा बंगाल में जो डुअल फॉर्म ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन चल रहा था। उसे इस एक्ट में रद्द कर दिया गया। अब हम यह समझते हैं कि डुअल फॉर्म ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन यानी क्या? बक्सर युद्ध के बाद शाह आलम द्वितीय ने। जो कि मुगल सम्राट था। उसने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दी थी। जबकि इन सभी एरिया की निजामिया यानी कि एडमिनिस्ट्रेशन पावर यहां के नवाब के ऊपर थी। इसका मतलब बंगाल में दो रूल चल रहे थे, एक निजामियत तथा दूसरी दीवानी। और इसका बुरा असर पड़ रहा था बंगाल की स्थानीय लोगों पर क्योंकि दीवानी का अधिकार था ईस्ट इंडिया कंपनी के पास तथा प्रशासनिक जिम्मेदारी थी नवाब पर और जब नवाब किसी प्रकार का टैक्स ही नहीं ले रहा है तो वह अपने प्रजा का ध्यान कैसा रखेगा तथा उन्हें सुविधा कैसे मुहैया करेगा मतलब लोगों को टैक्स के बदले कोई सुविधा नहीं मिल पा रही थी। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने इस ड्यूल फॉर्म ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन याने की द्वैध प्रशासनिक पढत्ती को समाप्त कर दिया। तथा बंगाल को ब्रिटिश सरकार के अधीन लाया गया और नवाब को बना दिया गया पेंशनर यानी कि वेतन भोगी। इसका मतलब नवाब को राजपाट से रिटायर्ड (निवृत्त) करवा दिया गया । अब बंगाल का नवाब मात्र नाम का नवाब था।
निम्नलिखित 1773 अधिनियम के महत्वपूर्ण विषयों के बारे में चर्चा की गई है।
सबसे पहले हम ट्रेड मोनोपली यानी कि व्यापार के एकाधिकार के बारे में जानेंगे। 1773 के अधिनियम में ट्रेड मोनोपली में कोई बदलाव नहीं किया गया। यानी कि इस एक्ट के तहत। केवल ईस्ट इंडिया कंपनी को। व्यापार करने का अधिकार था। दूसरी कोई ब्रिटिश कंपनी यहां आकर व्यापार नहीं कर सकती थी।
अब हम देखेंगे कंट्रोल ऑफ कंपनी यानी कंपनी का नियंत्रण किसके हाथ में था? यहां पर भी कोई बदलाव नहीं किए गए। इस एक्ट में भी कंपनी की कमर्शियल याने की व्यापारिक तथा पोलिटिकल ( राजनीतिक) गतविधियों को कोर्ट ऑफ डायरेक्टर ही संभालते थे तथा कोर्ट ऑफ डायरेक्टर की की संख्या २४ थी ।
अब हम एडमिनिस्ट्रेशन यानी प्रशासनिक विभाग के सम्बद्ध में में क्या बदलाव किए गए इसके बारे में जानेंगे। ईस्ट इंडिया कंपनी के एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासनिक) में बड़ा बदलाव किया गया। हम पहले ही चर्चा कर चुके थे कि बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल बना दिया गया था तथा इस अधिनियम के तहत बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर और मद्रास प्रेसिडेंसी के गवर्नर को गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल को रिपोर्ट करना पड़ता था । तथा गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल कोर्ट ऑफ डाइटर को रिपोर्ट करता था एवं इसके बाद कोर्ट ऑफ डायरेक्टर प्रोपराइटर को रिपोर्ट करते थे। इसके अलावा प्रशासनिक विभाग में एक और बदलाव किया गया। गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल के। मदद के लिए चार मेंबर एग्जीक्यूटिव बॉडी बनाई गई तथा इसी प्रकार से। बंगाल प्रेसिडेंसी तथा मुंबई प्रेसिडेंसी के लिए चार मेंबर काउंसिल बनाई गई।
अब हम सेंट्रल लेजिस्लेटर में क्या बदलाव किए गए यह जानते हैं? यानी कि सेंट्रल लेवल पर किस तरह लॉ यानि की कानून बनाए जाएंगे? इस एक्ट के तहत अगर गवर्नर जनरल को कोई कानून पारित करना है तो उसे जो गवर्नर एग्जीक्यूटिव काउंसिल के 4 मेंबर हैं उनके वोटिंग का सहारा लेना पड़ता था और बहुमत के आधार पर लॉ याने कानून पास किया जाता था। इसका मतलब अगर गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल को कोई कानून पास कराना है तो उसे एग्जीक्यूटिव काउंसिल मेंबर के कम से कम 2 सदस्यों की सहमति की जरूरत होगी। अगर उसे 2 सदस्यों का समर्थन नहीं मिल पाता है तो वह कानून पास नहीं कर सकता। इसका मतलब गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल के पास कानून पास करने के लिए सीमित अधिकार है। यही सेम मेथड मुंबई प्रेसिडेंसी तथा मद्रास प्रेसिडेंसी में प्रयोग में लाया गया मतलब इन प्रेसिडेंसी को भी वोटिंग के आधार पर कानून पारित कराना पड़ता था। फर्क मात्र इतना सा था की बॉम्बे प्रेसीडेंसी तथा मद्रास प्रेसिडेंसी स्थानीय (लोकल) मुद्दों पर कानून बनाते थे। तथा बंगाल प्रेसिडेंसी का गवर्नर जनरल केंद्रीय स्तर पर (सेंट्रल) कानून बनाता था।
अब हम आखरी पॉइंट देखेंगे वह है रेवेन्यू यानी कि राजस्व ईस्ट इंडिया कंपनी का राजस्व का जो स्त्रोत था वह तीन जगहों से था। एक व्यापार के मुनाफे के स्त्रोत से। तथा दूसरा टैक्स के राजस्व से। साथ ही नमक पर भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने टैक्स लगाया था। इसी नमक कानून के खिलाफ गांधी जी ने दांडी यात्रा की थी। हालाकी नमक पर जो टैक्स था वह भारत में बहुत पहले से लगाया जाता था। चंद्रगुप्त मौर्य के कल से उस वक्त नमक के टैक्स के संग्रह के लिए एक स्पेशल पोजिशन बनाई गई थी जिसे लावण्यादक्ष कहा जाता था. इसके बाद यह टैक्स मुगल ने भी लगाया तथा इसे ब्रिटिश ने भी जारी रखा। साथी इस एक्ट के तहत कंपनियों को करप्शन खत्म करने के लिए सरकारी अफसरों को प्राइवेट ट्रेड में शामिल होने से रोका गया। इसके अलावा इस एक्ट के तहत एक सुप्रीम कोर्ट भी बनाया गया। यह कोर्ट केवल ब्रिटिशर्स के लिए था । तथा इसकी पहली चीफ जस्टिस थी एलिजा एम्फीज। इस तरह १७७३ रेगुलेटिंग एक्ट की मुख्य जानकारी इस आर्टिकल में दे दी गयी हैं आप इस आर्टिकल के बारे में जानकारी यू ट्यूब चैनल के वीडियो के माध्यम से भी ले सकते हैं निचे इस वीडियो की लिंक दी गयी हैं धन्यवाद्!
Bibhanshu Kishore
14 May 2020Sir how can we download PDF copies for all your topics
Meet Soni
10 Jun 2020You can copy these text and pest in your word file and then save it with PDF format.
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Moumita Manna
7 Aug 2020Sir plz make the note in English.. I can’t read Hindi