क्या खामियां थी?
आज हम रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के कमियों के बारे में चर्चा करेंगे। इस एक्ट में प्रशासनिक जिम्मेदारी यानी कि जवाबदेही गवर्नर जनरल की थी। इस एक्ट में गवर्नर जनरल की पावर भी काफी लिमिटेड थी। मतलब गवर्नर जनरल जितना पावरफुल दिख रहा है उतना था नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि कोई भी कानून पारित कराने के लिए उसे एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्यों की सहमति लेनी पड़ती थी। क्योंकि कोई भी कानून गवर्नर जनरल काउंसिल के सदस्यों की मेजॉरिटी ऑफ वोटिंग के आधार पर तय होता था। इसका सीधा मतलब हुआ जो निर्णय लिया जाता था वह काउंसिल द्वारा लिया जाता था तथा उसकी जवाबदेही गवर्नर जनरल की होती थी। तो यह पहला ड्रॉबैक था 1773 रेगुलेटिंग एक्ट का।
किंतु यहां पर कहानी खत्म नहीं होती है बल्कि इसकी दूसरी खामी थी 1773 रेगुलेटिंग एक्ट में जो बॉम्बे प्रेसीडेंसी और मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नर थे उन्हें बंगाल प्रेसिडेंसी का सबोर्डिनेट बना दिया गया। लेकिन इसमें कुछ मुद्दों में क्लियर (स्पष्ट) गाइड लाइन नहीं थी। मतलब इन्हें किन विषयों में इंडिपेंडेंटली काम करना है और किन विषयों में बंगाल के गवर्नर जनरल की परमिशन से काम करना आदि स्पष्ट नहीं था, परिणाम स्वरूप इसका बुरा असर पड़ रहा था लोकल एडमिनिस्ट्रेशन के ऊपर तथा कुछ मामले में यह इतने सिर दर्द साबित होते थे कि आम आदमी को काफी परेशानी झेलनी पड़ती थी।
इस एक्ट की तीसरी दिक्कत थी कि इस एक्ट के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट बनाया गया था। तथा यह अपेक्षा की गए गयी थी की सुप्रीम कोर्ट तथा गवर्नर जनरल काउंसिल प्यार मोहब्बत से काम करेगी। लेकिन उल्टा इन दोनों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। इन दोनों के बीच भयंकर कनफ्लिक्ट होते थे। अब इन मामलों कौन सुलझाएगा यह किसी को पता नहीं था। इस इस मामले मेंं यह दिक्कत थी कि जब गवर्निंग काउंसिल कोई एक्ट पास करती थी तब कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट उनके कानून को रजिस्टर्ड करने से मना कर देता था । जिस वजह से उस समय के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग तथा उस समय की सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस एलिजा के बीच लगातार वाद-विवाद होता था। जिसकी भनक लंदन में बैठे कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर को भी होती रहती थी। इसलिए रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के कमियों को दूर करने के लिए एक के बाद एक, दो एक्ट पारित हुए। पहला था एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट 1781और उसके बाद आया पिट्स इंडिया एक्ट १७८४.
१७८१ एक्ट लाने का उद्देश्य.
तो पहले हम बात करेंगे एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट 1781 की तथा इसे लाने का उद्देश्य जानेगे। 1778 तक सुप्रीम कोर्ट तथा गवर्नर जनरल काउंसिल के बीच रस्साकशी बढ़ चुकी थी। गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग में इस चीज की शिकायत कोर्ट ऑफ डायरेक्टर को कर दी तथा कोर्ट ऑफ डायरेक्टर ने इस शिकायत को ब्रिटिश गवर्नमेंट के पास रखा। और कहा इस तरह की परिस्थितियों में प्रशासन चलाना मुश्किल है। इस समस्या को सुलझाने के लिए ब्रिटिश पार्लमेंट ने एक कमेटी बनाई जिसका नाम था टोचत कमिटी। इस कमेटी की सिफारिशों पर एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट 1781 लाया गया। एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट का मुख्य उद्देश्य था। सुप्रीम कोर्ट तथा गवर्नर जनरल के पावर को स्पष्ट रूप से डिफाइन करना ताकि इनके बिच के कश्मकश को कम किया जा सके । इस एक्ट के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया कि रेवेन्यू के मामले में याने की राजस्व के मामले में सुप्रीम कोर्ट कोई भी हस्तक्षेप नहीं करेगी। यह सारे मामले गवर्नर जनरल काउंसिल ही हैंडल करेंगे। तथा सुप्रीम कोर्ट से यह कहा गया कि जो नेटिव है यानी कि जो इंडियन है। उनके अपने लॉ नियम ट्रेडिशन है उनसे छेड़छाड़ मत करो मतलब मुस्लिम लोगों को मुस्लिम लोगो को ट्रायल मुस्मिल धर्म के अनुसार किया जाये तथा हिंदू लोगों को हिन्दू के हिसाब से अगर मोटे तौर पर बात किया जाए तो इस एक्ट में गवर्नर जनरल काउंसिल को फेवर किया गया । तथा गवर्नर जनरल काउंसिल को सुप्रीम बनाया गया । 1773 रेगुलेटिंग एक्ट के कमियों को दूर करने के लिए एक एक्ट और लाया गया वह था पिट्स इंडिया एक्ट1784 इस एक्ट के बारे में जानकारी हम अगले आर्टिकल में पढ़ेंगे. धन्यवाद !
sagar
17 Jul 2020very valuable