राजाजी राजगोपालाचारी फार्मूला

आज हम सीआर फार्मूला यानि राजगोपालाचारी फार्मूला 1944 के बारे में पढ़ेंगे. यह फार्मूला दिया था कांग्रेस के बड़े नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने जिसे लोग राजाजी के नाम से भी जानते थे.आगे चलकर वे भारत के आखरी गवर्नर जनरल थे जो 1948 से लेकर 26 जनवरी 1950 तक इस पद पर आसीन थे.इस फॉर्मूले को सी राजगोपालाचारी के फार्मूला और राजाजी फार्मूला के नाम से जाना जाता हैं.

अगस्त डिक्लेरेशन

असल में ब्रिटिश सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट मोंट्यागु ने ब्रिटिश पार्लियामेंट में एक घोषणा की जिसे अगस्त डिक्लेरेशन कहा जाता हैं. जैसे की हमें पता हैं 1917 से लेकर 1944 तक ब्रिटिश सरकार भारत में संवैधानिक सुधार देने के लिए प्रयास कर रही थी लेकिन होता क्या था जब भी ब्रिटिश सरकार कोई संवैधानिक सुधार लाने की कोशिश करती थी तो भारत की राजनैतिक पार्टियों का आपस में मतभेद होता था और जो सवैंधानिक प्रस्ताव लाया जाता था वह असफल हो जाता था. भारत की दो राजनितिक पार्टी मुस्लिम लीग एवं कांग्रेस के बिच मतभेद तनाव में परिवर्तित हो गए थे की ब्रिटिश सरकार समझ नहीं पा रही थी की दोनों के बिच का तनाव कैसे दूर किया जाये. और तो और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अगस्त ऑफर के दौरान वोइसरॉय लार्ड लिनलिथगो ने कहा की अगर सचमुच सवैंधानिक सुधार चाहते हो तो पहले यह दोनों पार्टियो को आपस के मतभेद दूर करना होगा.

मतभेद किस बात पर था?

बात यह थी कि मुस्लिम लीग को चाहिए था अलग एक अपना देश। जबकि इंडियन नेशनल कांग्रेस किसी भी हाल में भारत का बंटवारा नहीं चाहती थी। एवं इस समस्या का कोई भी समाधान नहीं निकल पा रहा था। ऐसे वक्त सि राजगोपालाचारी सीआर फार्मूला लाते हैं। यह फार्मूला असल में एक प्रस्ताव था जो राजगोपालाचारी के तरफ से एक बीच का रास्ता निकालने का प्रयास था।

इस प्रस्ताव में क्या बातें कही गई थी वह निम्नलिखित है.

द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्ति के बाद एक कमीशन बनाया जाएगा जिसकी जिम्मेदारी होगी मुस्लिम एरिया में प्लेबीसाईट याने जनमत संग्रह कंडक्ट कराने की। जिसके तहत मुस्लिम समुदाय स्वयं निर्णय लेंगी क्या उन्हें भारत में रहना है या दूसरे नए देश में. यानी यह कमीशन सबसे पहले यह पता लगाएगा कि देश में कौन से इलाके में मुस्लिम बहुसंख्यक है और वहां पर फिर जनमत संग्रह कराया जाएगा।

इसके अलावा इस फार्मूला में एक कंडीशन और जोड़ी गई की प्लेबीसाईट के आधार पर अगर पार्टीशन होता है और अगर पाकिस्तान बनता है तो दोनों देश यानी कि भारत और पाकिस्तान एक साझा समझौते के तहत डिफेंस, कम्युनिकेशन, कॉमर्स को सेफगार्ड करेंगे। यानी सीआर फार्मूले के तहत कांग्रेस कुछ हद तक नई मुस्लिम कंट्री यानी कि पाकिस्तान बनाने के लिए राजी हो गई थी और वह इसलिए ताकि मुस्लिम लीग भी इंडियन नेशनल कांग्रेस को स्वतंत्रता संग्राम में मदद करें।

यहां यहां जिक्र करना जरूरी है कि जब ब्रिटिश सरकार भारत को पूरी तरीके से पावर ट्रांसफर कर देती है तभी सीआर फार्मूला लागू किया जाएगा देखने में यह फार्मूला अच्छा ही लग रहा है एवं यह भी लग रहा था कि अब यह पॉलीटिकल डेडलॉक खत्म भी हो जाएगा। 1944 में गांधी जी ने सीआर फार्मूला के आधार पर जिन्ना से बातचीत शुरू की लेकिन बातचीत असफल हो गई क्योंकि जिन्ना को यह फार्मूला पसंद नहीं आया.

जिन्ना को फार्मूला पसंद न आने के कारण

अब देखते हैं ऐसा क्या था सीआर फार्मूला में की यह जिन्ना को पसंद नहीं आया था। असल में दिक्कत यह थी कि सीआर फार्मूला में प्लेबीसाईट के दौरान मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके के सारे वोटर नए देश पाकिस्तान के लिए वोट करेंगे और यह बात जिन्ना को सही नहीं लग रही थी क्योंकि जिन्ना का मत था कि वोटिंग लिस्ट से सभी नॉन मुस्लिम का नाम काटना पड़ेगा और केवल मुस्लिम लोग जनमत संग्रह में शामिल होंगे. उनके अनुसार जनमत संग्रह में केवल मुस्लिम समुदाय को पूछा जाना चाहिए कि अलग पाकिस्तान चाहिए या नहीं. उस इलाके में रहने वाली अल्पसंख्यक जैसे हिंदू, सिख, पारसी, ईसाई की वोट की जरूरत बिल्कुल भी नहीं होगी।

इसके अलावा जिन्ना को एक और दिक्कत थी कि बंटवारे के बाद दोनों देशों में डिफेन्स, कॉमर्स, कम्युनिकेशन के लिए साझा समझौता करना बिल्कुल भी गवारा नहीं था जिन्ना ने कहा यह एग्रीमेंट बिल्कुल भी नहीं हो पाएगा और ऐसा ना हो की दोनों देशों के अलग होने के बाद संघर्ष की स्थिति निर्माण हो जाए मुस्लिम लीग ने सीआर फार्मूला को सिरे से नकार दिया था।

अन्य समुदाय एवं लोगो की प्रतिक्रिया

इसके अलावा सिख कम्युनिटी तथा हिंदू महासभा ने भी इसका विरोध किया था।
सिख समुदाय की यह समस्या थी कि नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस जो कि मुस्लिम बहुल इलाका है वहां के किसी भी जिले में सिख कम्युनिटी मेजॉरिटी में नहीं है और ऐसे केस में यही होगा कि वहां पर जनमत संग्रह में पाकिस्तान का समर्थन किया जाएगा एवं सिख समुदाय ना चाहते हुए भी पाकिस्तान का हिस्सा बन जाएगी और सिख समुदाय को यह कतई बर्दाश्त नहीं था।

इसके अलावा हिंदू महासभा के बड़े नेता विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामा प्रसाद मुखर्जी सीआर फार्मूले से सहमत नहीं थे क्योंकि उनका यह मानना था कि मुस्लिम लीग के पाकिस्तान के मांगं को खारिज कर देना चाहिए। मुस्लिम लीग से समझौता करने की जरूरत ही क्या है. यह थी कहानी सीआर फॉर्मूले की धन्यवाद!

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