आज के आर्टिकल में हम जिन्ना की चौदह सूत्रीय मांगे देखेंगे विस्तार से समझेंगे. इन चौदह सूत्रीय मांगो को अच्छे से समझने और याद रखने के लिए हमने इन्हे चार भागों में बात दिया है ।
भाग 1 में हम देखेंगे सेंटर की अपेक्षा प्रोविंसेस को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देने के पक्ष में मोहम्मद अली जिन्ना के चार बिंदु । ऐसा वे इसलिए सोच रहे थे क्योंकि उन्हें पता था की मुस्लिम भारत में माइनॉरिटी में थे जिस वजह से मुस्लिम लीग सेंटर में कभी अपनी सरकार नहीं बना पाएंगे तो ऐसे में मुस्लिम लीग तथा जिन्ना की कोशिश यह थी की ज्यादा से ज्यादा पावर या शक्तियां प्रोविंसेस यानी कि प्रांत के पास रहे।
भाग 2 में हमें जिन्ना मुस्लिम के रिप्रेसेंटेशन और उनके समुदाय के रिजर्वेशन को सुनिश्चित करते हुए दिखेंगे.
और भाग 3 में हम तीन और बिन्दुओ के बारे में जानेंगे वहाँ जिन्ना अपनी चौदह सूत्रीय मांगो को फ्यूचर प्रूफ बनाते हुए दिखेंगे. असल में जिन्ना को डर रहा होंगा की भलेही उनके मांग को मान लिया जाएगा लेकिन हिन्दू जो भारत में मेजोरिटी में हैं, शायद वे भविष्य में कंस्टीटूशन को अमेंड कर दे और संभव हैं वे मुस्लिम हित के इन 14 मुद्दों को हटा देंगे.
इसके बाद आएगा आर्टिकल का आखरी भाग यानि भाग 4 जिसमें हम जिन्ना के बचे हुए 2 मुद्दों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे. जिसमें वे मुस्लिम समुदाय की लिबर्टी तथा उनके कल्चर को सेफ़गार्ड करना चाहते हैं.
भाग 1 – सेंटर की अपेक्षा प्रॉविन्सेस को ज्यादा अधिकार
पहला मुद्दा हैं रेसिडुअरी पावर से संबधित.
जिन्ना रेसिडुअरी पावर प्रान्त को देना चाहते थे एवं उन्होंने अपने पहले मुद्दे में यह मांग रखी की रेसिडुअरी पावर सेंट्रल के पास न हो बल्कि प्रोविंस के पास हो.
रेसीडुअरी पावर यानी क्या?
जिस विषय में सेंट्रल लॉ बनाती है उसे सेंट्रल लिस्ट कहा जाता है। तथा जिस विषय में स्टेट या प्रोविंसेस लॉ बनाती है उसे स्टेट लिस्ट कहा जाता है। जैसे कि पुलिस जो आती है वह स्टेट लिस्ट में आती है तथा पुलिस के ऊपर पूरा का पूरा कंट्रोल स्टेट का होता है एवं सेंट्रल लिस्ट का उदाहरण है रेलवे. रेलवे से संबंधित सारे फैसले सेंट्रल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। यानी रेलवे का पूरा का पूरा अधिकार सेंट्रल के नियंत्रण में आता है। किंतु कुछ ऐसे भी विषय आते हैं जो सेंट्रल और स्टेट दोनों के नियंत्रण में आते हैं उसे कॉन्करेंट लिस्ट कहा जाता है। जैसे कि एजुकेशन तथा फारेस्ट कॉन्करेंट लिस्ट में आते हैं। लेकिन मान लो भविष्य में कोई ऐसा विषय आता है, वह ना तो सेंट्रल लिस्ट में आता है, ना स्टेट लिस्ट में आता है और ना कॉन्करेंट लिस्ट में आता है. ऐसे वक्त कॉन्स्टिट्यूशन अमेंडमेंट करके उसे किसी लिस्ट में डालना पड़ता है इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है तो इस संदर्भ में जब तक संबंधित विषय को कॉन्स्टिट्यूशन अमेंडमेंट के जरिए किसी लिस्ट में सूचीबद्ध नहीं किया जाता है तब तक उस विषय रेसीडुअरी सब्जेक्ट कहा जाता है। यदि रेसीडुअरी पावर प्रोविंस के पास होगी तो इस पर लॉ बनाने का अधिकार स्टेट या प्रोविंस को होगा जबकि रेसीडुअरी पावर का अधिकार सेंट्रल यानी कि केंद्र के पास होगा तो रेसीडुअरी सब्जेक्ट के मैटर पर लॉ सेंट्रल बनाएगी जो की मुस्लिम लीग के लिए घाटे का सौदा था.
जिन्ना की दूसरी मांग थी प्रोविंशियल ऑटोनॉमी एंड प्रांत स्वायत्तता से संबंधित मतलब प्रॉविन्सेस में जिन्ना बिल्कुल ना के बराबर सेंट्रल का हस्तक्षेप चाहते थे।
जिन्ना की तीसरी मांग थी की सिंध को बॉम्बे प्रेसीडेंसी से अलग किया जाए.
मोहम्मद अली जिन्ना ने अपना तर्क रखते हुए कहा की सिंध का कल्चर बॉम्बे प्रेसीडेंसी के कल्चर से भिन्न है। तथा यह भी कहा बॉम्बे प्रेसिडेंसी की कैपिटल जो बॉम्बे है वह सिंध से काफी दूर है। इसलिए सिंध को एक अलग प्रोविंस का दर्जा दिया जाना चाहिए। असल में मोहम्मद अली जिन्ना की मंशा कुछ और थी.सिंध को वे इसलिए अलग करना चाहते थे क्योंकि बॉम्बे प्रेसिडेंसी में हिंदू की मेजॉरिटी ज्यादा थी। बल्कि सिंध एक मुस्लिम मेजोरिटी एरिया था और जिन्ना सोच रहे थे की अगर सिंध स्वतंत्र प्रोविंस हो जाये तो मुस्लिम लीग पार्टी के पास एक ज्यादा की प्रोविंस आ जाएगी जहां वे मुस्लिम लीग की सरकार बना सकते हैं.
चौथा मुद्दा हैं, नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस तथा बलूचिस्तान से संबंधित जिन्ना चाहते थे कि इन प्रोविंसेस को भी कॉन्स्टिट्यूशनल रिफोर्म का फायदा होना चाहिए।
यहाँ दो प्रश्न खड़े होते हैं कि नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस तथा बलूचिस्तान को कॉन्स्टिट्यूशन रिफार्म का फायदा होता था या नहीं? और नहीं तो क्यों नहीं? एक और प्रश्न खड़ा होता है कि जिन्ना को इन प्रोविंसेस से क्या फायदा था?
असल में नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर प्रोविंस तथा बलूचिस्तान में ब्रिटिश सरकार के वक्त कोई भी कॉन्स्टिट्यूशन रिफॉर्म लागू नहीं किए जाते थे। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1909 और 1919 के सुधार के के वक्त इन दो प्रोविंसेस को अलग रखा गया था। नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर प्रोविंस को वर्ष 1902 में ब्रिटिश सरकार ने इसे प्रोविंस के रूप में गठित किया था. तथा इस प्रान्त को चीफ कमिश्नर के एडमिनिस्ट्रेशन में रखा था। यहां के रहवासी पश्तून थे और वे ब्रिटिश सरकार का रेजिस्टेंस कर रहे थे और वहां पर ब्रिटिश गवर्नमेंट स्थिर नहीं हो पा रही थी। इसलिए ब्रिटिश सरकार की पूरी कोशिश थी कि यहां के लोगो की पॉलीटिकल एक्टिविटी को पूरी तरह से दबाया जाए। इसलिए इस प्रांत में किसी भी तरह का रिफॉर्म लागू करना सरकार को गवारा नहीं था। अगर बात करें बलूचिस्तान की तो बलूचिस्तान तथा ब्रिटिश सरकार के बीच एक ट्रीटी साइन हुई थी। और यह ट्रीटी दूसरे प्रोविंस के मुकाबले बिल्कुल अलग थी.
लेकिन इसमें जिन्ना का फायदा क्या था? जिन्ना का फायदा यह था कि दोनों प्रोविंसेस मुस्लिम मेजॉरिटी एरिया थे तथा यहां पर मुस्लिम लीग की सरकार बनना बिल्कुल तय थी इसलिए जिन्ना द्वारा यह मांग रखी गई की कोंस्टीटूशनल रिफार्म का फायदा दोनों प्रान्त को होना चाहिए.
भाग 2 – मुस्लिम समुदाय के लिए रिजर्वेशन
मुस्लिम समुदाय को सेंट्रल लेजिस्लेशन में एक तिहाई प्रतिनिधित्व
जिन्ना ने यहाँ मांग रखी कि मुस्लिम समुदाय को सेंट्रल लेजिस्लेशन में एक तिहाई प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. यही सेम प्वाइंट जिन्ना ने नेहरू कमेटी के सामने भी रखा था. लेकिन नेहरू रिपोर्ट में इसे सिरे से खारिज कर दिया था।
प्रोविंशियल लेजिस्लेचर में प्रतिनिधित्व
इसके अलावा मोहम्मद अली जिन्ना चाहते थे की प्रोविंशियल लेजिस्लेचर एवं बाकी सब इलेक्टेड बॉडी में मुस्लिम को उनके पापुलेशन के प्रोपोरशन में रिप्रेजेंटेशन यानी कि प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। अगर मुस्लिम मेजॉरिटी में है तो भी. कहने का मतलब अगर एक प्रोविंस में मुस्लिम की पॉपुलेशन अस्सी प्रतिशत है तो वहां पर भी मुस्लिम रिप्रेजेंटेशन अस्सी प्रतिशत होना चाहिए।
सेपरेट इलेक्टरेट की मांग
इसके अलावा मोहम्मद अली जिन्ना ने सेपरेट इलेक्टरेट की मांग रखी इसके अनुसार वे चाहते थे कि जहां पर मुस्लिम मेजॉरिटी एरिया हैं वहां पर केवल मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव के लिए खड़ा होगा और मतदान का अधिकार भी केवल और केवल मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं को ही मिलेगा यानि की नॉन मुस्लिम मतदाताओं को नहीं.
सरकारी सेवाओं और self-governing बॉडी में रिजर्वेशन
साथ ही साथ सरकारी सेवाओं और self-governing बॉडी में भी मुस्लिम को उनके पापुलेशन के प्रपोर्शन में रिजर्वेशन मिलना चाहिए।
कैबिनेट मिनिस्ट्री में रिजर्वेशन
इसी ग्रुप के फिफ्थ पॉइंट में जिन्ना ने मांग रखी थी की सेंटर और प्रोविंस लेवल पर कैबिनेट मिनिस्ट्री में 33 प्रतिशत मुस्लिम उम्मीदवार रहना चाहिए। इसी के साथ यहाँ सेकंड ग्रुप के सारे मुद्दे पूरे हो गए हैं.
भाग 2 – जिन्ना अपनी चौदह सूत्रीय मांगो को फ्यूचर प्रूफ बनाते हुए
असल में जिन्ना को डर रहा होंगा की भलेही उनके मांग को मान लिया जाएगा लेकिन हिन्दू जो भारत में मेजोरिटी में हैं, शायद वे भविष्य में कंस्टीटूशन को अमेंड कर दे और संभव हैं वे मुस्लिम हित के इन 14 मुद्दों को हटा देंगे.
किसी भी तरह की टेरिटरी डिस्ट्रीब्यूशन से उस जगह की मुस्लिम मेजॉरिटी किसी भी हाल में प्रभावित नहीं होनी चाहिए
मान लीजिए एक प्रोविंस में मुस्लिम मेजॉरिटी में है और वहां मुस्लिम की पॉपुलेशन टोटल पापुलेशन के 70% है। लेकिन भविष्य में अगर इस प्रोविंस को किसी और टेरिटरी से मिला दिया जाए और अब ऐसे केस में नए प्रोविंस में मुस्लिम की पापुलेशन घटकर 40% हो जाए तो ऐसे केस में अच्छा खासा मुस्लिम मेजॉरिटी वाला एरिया माइनॉरिटी में चला जाएगा इस तरह के केस में मुस्लिम को काफी नुकसान हो सकता है इसलिए जिन्ना ने मांग रखी कि किसी भी तरह की टेरिटरी डिस्ट्रीब्यूशन से उस जगह की मुस्लिम मेजॉरिटी किसी भी हाल में प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
कम्युनल वीटो
जिन्ना ने अपने नेक्स्ट पॉइंट में यह भी बात रखी यदि किसी लेजिस्लेटर या इलेक्टेड बॉडी में कोई बिल या रेजोलुशन ऐसा लाया जाए जो किसी कम्युनिटी को अफेक्ट करता है तो ऐसी स्थिति में उस बिल को पास करने के लिए उस पर विशेष कम्युनिटी के लिए उस समुदाय के तीन चौथाई इलेक्टेड मेंबर की मंजूरी जरूरी होगी। यानी सीधे और सरल शब्दों में जिन्ना कम्युनल वीटो की मांग कर रहे थे।
कॉन्स्टिट्यूशन में कोई भी अमेंडमेंट स्टेट या प्रोविंसेस की मंजूरी के बिना ना किया जाए
इसके साथ जिन्ना यह भी चाहते थे कि कॉन्स्टिट्यूशन में कोई भी अमेंडमेंट स्टेट या प्रोविंसेस के मंजूरी के बिना ना किया जाए। तो यह थे वह तीन मुद्दे जिसमें जिन्ना अपनी फ्यूचर ग्रुप या फ्यूचर प्लान बना रहे थे।
भाग 4 – मुस्लिम समुदाय की लिबर्टी तथा उनके कल्चर को सेफ़गार्ड
सभी धर्मों को स्वतंत्रता आस्था तथा सांस्कृतिक सुरक्षा
जिन्ना ने मुस्लिम धर्म के स्वतंत्रता आस्था तथा सांस्कृतिक सुरक्षा के बारे में मांग रखी. यहां पर वे चाहते थे कि सभी धर्मों को पूरी -पूरी आजादी होनी चाहिए।
मुस्लिम कल्चर की सुरक्षा तथा मुस्लिम भाषा उर्दू, शरिया कानून का प्रचार
साथ ही साथ कॉन्स्टिट्यूशन में यह भी सुनिश्चित किया जाए कि मुस्लिम कल्चर को प्रोटेक्ट किया जाएगा और मुस्लिम लैंग्वेज उर्दू, शरिया कानून को भी प्रमोट किया जाएगा।
इसी के साथ हम ने जिन्ना के सारे 14 पॉइंट को कवर कर लिया है। धन्यवाद !