आज के आर्टिकल में हम मोहम्मद अली जिन्नाह की चौहद सूत्रीय मांगों की पृष्ठभूमि क्या थी इस बारे में चर्चा करेंगे। हम जानेंगे कि ऐसी कौन सी परिस्थिति थी की मोहम्मद अली जिन्नाह की चौहद सूत्रीय मांगे करनी पड़ी।
साइमन कमीशन की नियुक्ति.
असल में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने वर्ष 1919 मे गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 पारित किया था। जिसे मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड के नाम से भी जाना जाता है। इसी एक्ट के एक प्रोविजन के अंतर्गत एक कमीशन अपॉइंट किया गया था एवं इस कमिशन में ब्रिटिश पार्लियामेंट के कुल 7 सदस्य थे तथा सर जॉन साइमन यह इस कमीशन के चेयरमैन यानी कि अध्यक्ष थे एवं इन्हीं के नाम पर इसे साइमन कमीशन कहा जाता है.
साइमन कमीशन की नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य, मोंटेग्यू एंड चेम्सफोर्ड कायदे के जमीन पर क्या प्रोग्रेस और इंपैक्ट देखने को मिले इससे संबंधित स्टडी करना था। साइमन कमीशन को यह भी कहा गया था कि भारत में कौन से रिफॉर्म्स लाई जाए इसके बारे मे अपनी तरफ से सुझाव दें। लेकिन भारतीय नेताओं ने साइमन कमीशन का बॉयकॉट कर दिया क्योंकि उस कमिशन में एक भी भारतीय नहीं था बल्कि पूरे सदस्य अंग्रेज थे। इंडियन नेशनल कांग्रेस, हिंदू महासभा तथा मुस्लिम लीग ने साइमन कमीशन का जमकर विरोध किया था.
अंग्रेजो ने भारतीय नेताओ को दी चुनौती.
विरोध देखकर अंग्रेज सरकार ने भारतीय नेताओं के आगे एक प्रस्ताव रखा आप एक ऐसा कॉन्स्टिट्यूशन बना के दिखाओ जो भारत के हर एक क्लास, कम्युनिटी और पॉलिटिकल पार्टी को एक्सेप्टेबल हो तो हम साइमन कमीशन के साथ-साथ आपके दी गई रिपोर्ट के बारे में भी विचार करेंगे. अगर इसे ठीक से समझा जाए तो यह प्रस्ताव द्वारा, एक प्रकार से भारतीय नेताओं को अंग्रेज सरकार ने चैलेंज किया था। जवाब में भारतीय नेताओं ने भी इसे एक चैलेंज के रूप में लिया।
नेहरू रिपोर्ट
सबसे पहले सभी मेजर पार्टी ने एक कॉन्फ्रेंस की तथा यहाँ भारतीय कॉन्स्टिट्यूशन का मसौदा तैयार करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी में कुल 8 सदस्य थे। सरदार मंगल सिंह, सर एमएस एनई, सर अली इमाम, सर सोहेल कुरेशी, सुभाष चंद्र बोस,
जी आर प्रधान और पंडित मोतीलाल नेहरू. इस कमेटी के चेयरमैन मोतीलाल नेहरू थे।
मुस्लिम लीग को नेहरू रिपोर्ट से विरोध
इस रिपोर्ट को नेहरू रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन जब नेहरू रिपोर्ट सामने आई तो मुस्लिम लीग को नेहरू रिपोर्ट की प्रोविजन बिल्कुल भी पसंद नहीं आई। मुस्लिम लीग ने नेहरू रिपोर्ट को डॉक्ट्रिन ऑफ स्लेवरी भी कह दिया। दिसंबर 1928 में कोलकाता में एक और पार्टी मीटिंग के दौरान मोहम्मद अली जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट को चेंज करने की मांग की। हालांकि मोहम्मद अली जिन्ना नेहरू रिपोर्ट की तीन प्रोविजन से नाखुश थे और वे इसे बदलना चाहते थे।
वो तीन प्रस्तावित संशोधन निम्मलिखित हैं
नेहरू रिपोर्ट मे सेंट्रल लेजिस्लेचर में मुस्लिम समुदाय को एक चौथाई प्रतिनिधित्व दिया गया था जबकि जिन्ना की मांग थी कि मुस्लिम की रिप्रेजेंटेशन को एक तिहाई प्रतिनिधित्व दिया जाए।
मोहम्मद अली जिन्ना की दूसरी मांग थी कि मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिमों को सेपरेट इलेक्टरेट द्वारा चुना जाना चाहिए क्योंकि नेहरू रिपोर्ट में जॉइंट इलेक्टरेट की मांग की गई थी।
मोहम्मद अली जिन्ना की तीसरी मांग थी कि जो रेसिडुअल पावर है वह प्रॉविन्सेस के पास होना चाहिए. जबकि नेहरू रिपोर्ट में रेसीडुएल पावर सेंट्रल के पास दी जाने की सिफारिश थी.
मोहम्मद अली जिन्ना मुस्लिम लीग के तरफ से इन तीन प्रोविजन मे संशोधन कराना चाहते थे किंतु जिन्ना की यह मांग पूरी तरीके से इंडियन नेशनल कांग्रेस द्वारा नकारा गया।
मोहम्मद अली जिन्ना का दृष्टिकोण यह था कि आजाद भारत में भी मुस्लिमों का यही हाल भी यही होंगा यानी कि उनकी मांग को नकारा जाएगा क्योंकि यहां पर हिंदू मेजॉरिटी में होगे तथा उनको डर था कि मुस्लिमों की आवाज को हमेशा हिंदुओं द्वारा दबाया जाएगा।
इस घटना के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने ऑल इंडिया मुस्लिम कॉन्फ्रेंस बुलाई तथा जिन्ना ने मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा के लिए अपने 14 पॉइंट्स दिये जिसे जिन्नाह की चौहद सूत्रीय मांगे के नाम से जाना जाता हैं. तथा इन 14 मुद्दों को मुस्लिम लीग ने लंदन के गोलमेज परिषद में रखा। तथा जिन्ना की इन 14 मुद्दों में से कई मुद्दों को अंग्रेजों द्वारा मान लिया गया था। तथा इन मुद्दों को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 द्वारा लागू भी कराया। इस आर्टिकल में हम पूरी तरह समझ चुके हैं कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां थी कि मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने 14 पॉइंट्स रखें लेकिन वह 14 पॉइंट्स क्या थे वह हम अगले आर्टिकल में पढ़ेंगे. धन्यवाद!