आज के आर्टिकल में हम भारत छोडो आंदोलन के बारे में चर्चा करेंगे. यह आंदोलन 1942 में चलाया गया था. इस आंदोलन को हम अगस्त क्रांति के नाम से भी जानते हैं.
जापानी आक्रमण का ख़तरा
पिछले आर्टिकल में हमने पढ़ा की क्रिप्स मिशन असफल हो चूका था इसके बाद अप्रैल 1942 में सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स वापस ब्रिटेन चले गए. इसके बाद भारतीय नेता समझ गए की अंग्रेज सरकार द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने तक भारत में संवैधानिक सुधार लाने के पक्ष में नहीं हैं. परेशानी की बात यह थी की भारतीय नेता अब ब्रिटेन से कोई उम्मीद नहीं रख सकते थे. जबकी दूसरी तरफ ब्रिटेन की कॉलोनी भारत में होने की वजह से भारत पर जापानी आक्रमण का ख़तरा मंडरा रहा था इस हालात में जापानी आक्रमण से देशवासियो की जान माल का नुकसान हो सकता था. जापान का भारत पर आक्रमण का ख़तरा केवल एक कारण से मंडरा रहा था और वह कारण था ब्रिटेन और जापान द्वितीय विश्व युद्ध में आमने सामने थे मतलब वे एक दूसरे के शत्रु थे. गांधीजी भी समझ गए थे की ब्रिटेन की हुकूमत भारत में होना ही जापान को भारत पर आक्रमण का एक खुला न्योता हैं मतलब आईये एवं भारत पर आक्रमण कीजिये. इसके अलावा द्वितीय विश्व युद्ध की वज़ह से भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर टूट चुकी थी, महंगाई अपने चरम सिमा पर थी मतलब विश्व युद्ध जो कोई और लड़ रहा था और इसका बुरा असर खामखा भारत झेल रहा था.
वर्धा रिजोल्यूशन
गांधीजी की दिमाग में एक ही बात चल रही थी अगर भारत को जापानी आक्रमण से बचाना हैं और भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना हैं तो किसी भी तरह अंग्रेजो को बिना किसी देरी के भारत से खदेड़ देना होंगा. इसके चलते वर्ष 1942 में कांग्रेस वर्किंग समिति ने एक मीटिंग वर्धा में बुलाई. वर्धा महाराष्ट्र का एक जिल्हा हैं इस मीटिंग में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसे वर्धा रेजोलुशन के नाम से जाना जाता हैं या फिर क्विट इंडिया रेजोलुशन भी कहा जाता हैं. इस प्रस्ताव के हिसाब से कांग्रेस गांधीजी के नेतृत्व में एक देशव्यापी आंदोलन चलाने वाली थी हालांकि कांग्रेस के कुछ सदस्य आंदोलन के पक्ष में नहीं थे.
रामगोपालचारी का इस्तीफा
सी रामगोपालचारी ने आंदोलन के विरोध के चलते कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया क्योंकि उनका मानना था ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्व युद्ध में व्यस्त हैं इसलिए ऐसे वक्त में हम देशव्यापी आंदोलन पुकारकर उनके प्रयासों को कमज़ोर कर रहे हैं उनका तर्क यह भी था की अगर ब्रिटेन हार जाता हैं तो जापान या जर्मनी भारत में आक्रमण कर देश को अपने अधीन कर लेंगा इसलिए इस आंदोलन का कोई फायदा नहीं हैं
छोडो भारत आंदोलन की घोषणा
गांधीजी ने 9 अगस्त 1942 के दिन बॉम्बे के गोवलियाँ टैंक में एक सभा बुलाई इसे अगस्त क्रांति के मैदान के नाम से जानते हैं. यहाँ पर हज़ारो के तादाद में लोग इकठ्ठा हुए इसी मैदान में गांधीजी ने छोडो भारत आंदोलन को आधिकारिक रूप से घोषित कर दिया और इसी मैदान में गांधीजी ने नारा दिया “करों या मरो!
गांधीजी ने लोगो को स्पष्टता से कहा की मैं आश्वस्त करता हु की वोइसरॉय के साथ मैं किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करूँगा क्योंकि अब देश की आजादी के सिवाय कुछ भी मंजूर नहीं. करों या मरो का नारा देता हुए उन्होंने कहा या तो भारतीय देश को मुक्त कराएँगे या फिर देश को मुक्त कराने के कोशिश में शहीद हो जायेंगे.
गांधीजी ने कहा की अब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने का कोई फायदा नहीं.गांधीजी ने विविध समुदायों, सरकारी नौकर, अधिकारी, सैनिक एवं किसानो को निर्देश दिये की सरकारी नौकरी करने वाले नौकरी न छोड़े बल्कि नौकरी में रहते कोंग्रस को पुरी तरह समर्थन दे. सैनिक अपनी पोस्ट न छोड़े बल्कि ब्रिटिशर्स का वह आर्डर मानने से इंकार कर दे जिसमें भारतीयों को मारने का हुक्म हो. इसके अलावा किसान जमीन का कर देने से मना कर दे.साथ यह भी निर्देश दिये की हो सकता हैं कांग्रेस के नेता अपना मार्गदर्शन लोगो तक नहीं पंहुचा पाए तो वह नागरिक जो आंदोलन में हिस्सा ले रहा हैं अपने आपको आज़ाद नागरिक समज़कर अपना सही गलत का निर्णय स्वयं ले तथा स्वयं का मार्गदर्शक स्वयंही बने.
कांग्रेस नेता हिरासत में
एवं ऐसा ही हुआ की गांधीजी का भाषण समाप्त हुए कुछ ही घंटे बचे थे की पुलिस ने आकर उन्हें हिरासत में ले लिया एवं कोंग्रस के सभी नेताओ का जेल में कैद कर दिया एवं गांधीजी को आगाह खान पैलेस में नज़रबंद कर दिया गया. इसके अलावा प्रेस में ताले लगा दिये थे गांधीजी के अख़बार हरिजन एवं नेहरूजी के नेशनल हेराल्ड को पुरे आंदोलन के दौरान बंद कर दिया गया. जबकि कुछ अखबारों के प्रकाशन कुछ समय पश्चात् शुरू कर दिये गए.
लोगो ने स्वयं उठाया आंदोलन का बीड़ा
आंदोलन पहले छह से सात सप्ताह पुरे उफान पर था. पुरे देश के लोग इस आंदोलन से जुड़ रहे थे कांग्रेस के मुख्य नेता जेल में थे इसलिए नेतृत्व किसीका नहीं था इसलिए छोडो भारत आंदोलन में हिंसा हुयी एवं कई पुलिस चौकी को जला दिया गया एवं पुलिस टुकड़ियों पर आक्रमण भी किया गया.
पोस्ट ऑफिस, कोर्ट, रेलवे स्टेशन एवं अन्य सरकारी कार्यालय पर आक्रमण किया गया. कई कार्यालयों से ब्रिटिश झंडे को हटाकर भारतीय झंडा लहराया गया. भीड़ बेकाबू हो चुकी थी. ब्रिटिश दूरसंचार को बाधित किया गया. टेलीफ़ोन लाइन काट दी गयी. कई जगह पर रेलवे की पटरिया उखाड़ दी गयी. पुलिया भी तोड़ दी गयी ताकि आवा गमन में बाधा निर्माण हो. बच्चे स्कूल छोडकर वर्तमान पत्र एवं आर्टिकल के वितरण में लग गए. एवं जहां मौका मिले वहाँ पर वे पुलिस को परेशान करते थे.
पैरेलल सरकार की स्थापना
कई जगह से खबर आयी की कई जगह पैरेलल गवर्नमेंट की स्थापना की गयी. इन जगहों के लोकल एरिया को लोगो ने कुछ समय के लिए ही सही उस क्षेत्र को आज़ाद करा लिया गया था. जैसे बिहार के तिरुल जिल्हे से सारी सरकारी अधिकारियो को चलता कर दिया करीब दो हप्तो के लिए. इसके अलावा बिहार के सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट के अस्सी प्रतिशत पुलिस स्टेशन आंदोलन कर्ताओ द्वारा खाली करवा लिए गए थे.
महाराष्ट्र का सतारा कई दिनों तक ब्रिटिश अथॉरिटी से मुक्त रहा. इसके अलावा बंगाल के मण्डापुर जिल्हे में कई दिनों तक जातीय सरकार बना दी गयी जो सितम्बर 1944 तक मौजूद रही. यहाँ पर भी कई समय तक पैरेलल सरकार देखने को मिली. इसी तरह के केसेस UP के बलिया कर्नाटक में देखने को मिले इसके अलावा टेलीफ़ोन लाइन,रेलवे पटरी को क्षति पहुचायी गयी. इसका मतलब ब्रिटिश सरकार के दूरसंचार वाहतूक सेवाए को बंद कर दिया गया.
अंग्रेजो की प्रतिक्रिया
अंग्रेजो ने ब्रूटल तरीके से 3 से 4 हप्तो में सारे आंदोलन को कुचल दिया दिसंबर 1942 तक लगभग एक लाख लोगो को कारागृह में भेज दिया गया. लेकिन इस बार आंदोलन को दबाना अंग्रेजो को टेडी खीर साबित हुयी क्योंकि अंग्रेजो की हिंसक प्रतिक्रिया देख भारतीय नेता अंडरग्राउंड हो गए एवं अंडरग्राउंड नेटवर्क बनना शुरू हो गए एवं एक नए तरह का नेतृत्व मिलना शुरू हो गया. जैसे अच्युत पटवर्धन,अरुणा आसफ अली, राम मनोहर लोहिया, सुचेता कृपलानी,बीजू पटनायक, जयप्रकाश नारायण नेता उभरकर सामने आये. इन नेताओ को देश के बड़े उद्योगपति समर्थन दे रहे थे.
रेडियो स्टेशन की स्थापना
अंडरग्राउंड गतविधि में एक महत्वपूर्ण गतविधि देखने को मिली. वह थी कांग्रेस रेडियो ब्रॉडकास्ट. इस रेडियो को चलाया था उषा मेहता ने. इनकी मदत की थी नन्दका मोटवानी ने जो शिकागो के रेडियो स्टेशन के मालिक थे इन्होने ही देश में अंडरग्राउंड रेडियो स्टेशन सेट अप करने में उषाजी की मदत की थी. यह ब्रॉडकास्ट बॉम्बे शहर के अलग अलग स्थानों से किया जा रहा था एवं ब्रॉडकास्ट की फ्रीक्वेंसी मद्रास तक कैच होती थी. राममनोहर लोहिया जैसे नेताओ ने रेडियो के माध्यम से लोगो तक राष्ट्रवादी भावना पंहुचा रहे थे हालांकि नवंबर 1942 को ब्रिटिश सरकार ने इस रेडियो स्टेशन को खोज निकाला.
गांधीजी का 21 दिन का उपवास
वर्ष 1943 में गांधीजी ने 21 दिन का उपवास शुरू किया गांधीजी ने उपवास इसलिए रखा क्योंकि सरकार उन्हें फाॅर्स कर रही थी की देश में भड़क रहे हिंसा का गांधीजी विरोध करे एवं आलोचना करे किन्तु गांधीजी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया एवं उन्होंने हिंसा के लिए अंग्रेज सरकार को जिम्मेदार बताया. उन्होंने कहा यह हिंसा अंग्रेजो द्वारा किये गए उग्र हिंसा का मात्र जवाब हैं इसके बाद गांधीजी ने अंग्रेजो द्वारा फैलाये उग्र हिंसा का विरोध किया एवं जेल से 21 दिन का उपवास शुरू कर दिया.
इस उपवास ने देश को मानो ऊर्जा देदी एवं आंदोलन में और भी ज्यादा जान फुक दी देश में तीव्र हड़ताल आंदोलन जोरो से शुरू हो गयी. गांधीजी की स्वास्थ पहले से खराब थी इसलिए भूख हड़लात से लोग गांधीजी के बारे में चिंतित हो गए.हज़ारो लोगो ने आगाह खान पैलेस को घेर दिया जहां गांधीजी नज़रबंद थे. लाखो के तादाद में सरकार के पास पत्र आना शुरू हो गए की गांधीजी को छोड दिया जाये ना सिर्फ भारत से बल्कि विदेशो के अख़बार में गांधीजी को छोड़ने की मांग होने लगी.इसके चलते वोइसरॉय के एग्जीक्यूटिव कौंसिल के तीन भारतीय सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया लेकिन कमाल की बात यह हैं ये तीन सदस्य छोडो भारत आंदोलन के समर्थन में नहीं थी और जब अंग्रेज पुलिस हिंसक हो गयी थी फिर भी देखते रहे लेकिन गांधीजी के उपवास को देख उन्होंने इस्तीफा दे दिया ताकि लोगो के नजर में उनकी बची खुची इज्जत बनी रहे. लेकिन अंग्रेजो को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था लेकिन गांधीजी की स्वास्थ को बिगड़ता देख अंग्रेज सरकार ने 9 मई 1944 को गांधीजी को छोड दिया ताकी उनका ठिक से इलाज हो सके.
छोडो भारत आंदोलन समाप्त
इसके बाद आंदोलन धीमा पड़ गया एवं सभी देशवासी काफी निराश थे क्योंकि उन्हें भारत छोडो आंदोलन से काफी उम्मीदे थी यह तो सच्चाई हैं की भारत छोडो आंदोलन अंग्रेजो को खदेड़ने में नाकामयाब हुआ किन्तु इस आंदोलन ने देश को आज़ाद करने के लिए तैयार कर दिया था. लोगो में राष्ट्रवाद की भावना जाग गयी थी एवं ब्रिटिश विरोधी भावनाये चरम सिमा पर थी अब लोगो को यकीन था अंग्रेज सरकार देश में ज्यादा दिन तक टिक नहीं पायेगी
पार्टिया जिन्होंने साथ नहीं दिया
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया
मुस्लिम लीग
हिंदू महासभा जैसी पार्टियों ने आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया कम्युनिस्ट पार्टी का तर्क था की ब्रिटेन USSR के साथ मिलकर लड़ रहा हैं और यह एक कम्युनिस्ट देश हैं तो वह विचारधारा के खातिर ब्रिटेन की मदत करना चाहती थी.
मुस्लिम लीग पाकिस्तान का राग अलाप रही थी इसलिए वे अंग्रेजो के समर्थन में थे. इसके अलावा इंडियन सिविल सर्विसेज के भारतीय अधिकारियो ने अंग्रेजो का समर्थन किया.
धन्यवाद!