कठपुतली नवाब मीर जाफर तथा चिनसुरा का युद्ध
आज के आर्टिकल में हम बैटल ऑफ़ बक्सर यानि बक्सर के युद्ध के बारे में पढ़ेंगे। पिछले आर्टिकल में हमने पढ़ा । रॉबर्ट क्लाइव ने प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को हराकर मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया। मीर जाफर सिराजुद्दौला को धोखा देकर बंगाल का नवाब तो बन गया था, लेकिन उसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सारी मांग माननी पड़ती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी उसका कठपुतली की तरह इस्तेमाल करती थी। तथा उसे मज़बूरन ईस्ट इंडिया कंपनी की सारी मांग को पूरा करना पड़ता था । जैसे जैसे दिन बीत रहे थे ईस्ट इंडिया कंपनी की मांग बढ़ते जा रही थी । इसलिए, ईस्ट इंडिया कंपनी से छुटकारा पाने के लिए मीरजाफर ने डच कंपनी से हाथ मिला लिया। मीर जाफर ने डच ईस्ट इंडिया कंपनी को कहा । कि आप कुछ भी करके ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल से बाहर खदेड़ दे। डच ईस्ट इंडिया कंपनी को भी लगा कि बंगाल में एक लीडिंग कंपनी बनने इससे अच्छा मौका कभी नहीं मिल सकता सो उन्होंने मीर जाफर की मांग मन ली . मीर जाफर ने सोचा कि इन दोनों कंपनियों को आपस में भीड़वाकर खुद का फायदा करवा लेता हूं। जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने देखा कि डच ईस्ट इंडिया कंपनी अपने सैनिक के साथ युद्ध करने उनके साथ आ रही है तब उन्होंने अपने सैनिकों को चिनसुरा भेजा। चिनसुरा स्थान कोलकाता के नजदीक है। और यहीं पर ईस्ट इंडिया कंपनी तथा डच ईस्ट इंडिया कंपनी के मध्य चिनसुरा का युद्ध हुआ। इस युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की विजय हुई। जब मीर जाफर के खुराफाती दिमाग का पता ईस्ट इंडिया कंपनी को लगा। तब कंपनी ने मीर जाफर के ऊपर कड़ी कार्रवाई की तथा मीर जाफर की जगह मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया।
मीर कासिम तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के बिच कश्मकश
मीर कासिम यह मीर जाफर का दामाद था तथा रॉबर्ट क्लाइव ने मीर कासिम को नवाब बनाया। रॉबर्ट क्लाइव एक चालाक व्यक्ति था। इसलिए मीर कासिम को नवाब बनाने से पूर्व उसने शर्त रखी कि उसे कंपनी की सारी मांग पूरी करना पड़ेगा। नवाब बनने के लालच में आकर मीर कासिम ने हामी भर दी। शुरुआत में मीर कासिम ईस्ट इंडिया कंपनी की सारी डिमांड मानता रहा। लेकिन मीर कासिम को एहसास हो गया अगर मैं इसी तरह इनकी सारी डिमांड पूरी करती रहा। तो एक दिन बंगाल का खजाना पूरी तरह खाली हो जाएगा। और वह दिन दूर नहीं जब ब्रिटिशर्स उसके हाथ में कटोरा थमा देंगे ।😅 इस बीच रॉबर्ट क्लाइव अपने देश वापस चला गया था । जब रॉबर्ट क्लाइव इंग्लैंड पंहुचा । तो वहां उसका स्वागत धूमधाम से हुआ। ऑक्सफोर्ड कॉलेज ने उसे डॉक्टरेट की डिग्री भी प्रदान की जबकि रॉबर्ट क्लाइव एक ग्रेजुएट भी नहीं था । जब रॉबर्ट क्लाइव इंग्लैंड में था तब उसकी जगह बंगाल में हेक्टर मुनरो कमान संभाली । यहां मीर कासिम दिन प्रतिदिन परेशान हो रहा था। क्योकि मीर कासिम के कामों में कंपनी दखल अंदाजी कर रही थी इसलिए उससे तंग आकर मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर में शिफ्ट कर दी। ताकि उसे ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों से थोड़ा छुटकारा मिल सके। और वह सोच सके कि किस तरह से इनको बंगाल से खदेड़ा जाए? मीर कासिम ने अपने सैनिकों को अत्याधुनिक बनाने के लिए विदेशों से अपने सैनिको को अत्याधुनिक लड़ाई के गुर सीखाने के लिए सैनिक विशेषज्ञ मंगवाए। मीर कासिम ने गन की फैक्ट्री भी शुरू कर दी क्योकि तलवारो का जमाना बीत चूका था । अब मीर कासिम आत्मविश्वास से भर गया था और उसे लगा कि अब वह ब्रिटिश को लाइन में ला सकता है यानी नियंत्रण में ला सकता है। जैसे कि हमें पता है फारूक सियार ने एक दस्तक जारी करते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी को टैक्सेज याने करों में छूट देकर रखी थी। वही जो बंगाल के व्यापारी थे उन्हें बंगाल के नवाब को ४० प्रतिशत कर देना पड़ता था। जिस वजह से भारतीय वस्तुओं की कीमतें ब्रिटिश वस्तुओं की कीमतों से ज्यादा होती थी। जिस वजह से बंगाल के स्थानीय व्यापारियों द्वारा बनाई वस्तुएं ब्रिटिश वस्तुओं के मुकाबले महंगी थी। जिस वजह से ब्रिटिश व्यापारियों का धंधा काफी फल-फूल रहा था। जब मीर कासिम को यह बात ध्यान में आई तो उसे सोचा अगर मैं स्थानीय बंगाल के व्यापारियों से टैक्स (कर )ना लूं। तो ब्रिटिश व्यापारियों को उनके व्यापार में नुकसान उठाना पड़ेगा तथा वे बंगाल को छोड़कर चले जाएंगे। अतः मीर कासिम ने स्थानीय बंगाली व्यापारियों से टैक्स ( कर) ना वसूलने का निर्णय लिया। जिस वजह से बंगाल की स्थानीय वस्तुएं बाजार में कम दाम में मिलने लगी। मीर कासिम के इस निर्णय से ईस्ट इंडिया कंपनी आग बबूला हो गई क्योकि उनके वस्तुओ की मांग कम हो रही थी. लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी के बदौलत ही मीर कासिम नवाब बना था तथा यह नीति ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ थी। जिस वजह से कासिम तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच छोटी मोटी लड़ाई हुई। ईस्ट इंडिया कंपनी से हार मानकर मीर कासिम अवध के नवाब के पास पहुंचा।
बक्सर युद्ध
उस समय अवध का नवाब शुजाउद्दौला था तथा उसने शुजाउद्दौला से मदद मांगी। अवध का नवाब मीर कासिम को मदद देने के लिए राजी हो गया। जब यह बात उस समय के मुगल सम्राट । शाह आलम द्वितीय के पास पहुंची की अवध का नवाब और मीर कासिम ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध करने की योजना बना रहे हैं तब उसने भी मीर कासिम तथा शूजाउद्दीन के साथ युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ शामिल होने का निर्णय लिया। इस निर्णय से मीर कासिम को भी अपनी विजय निश्चित लग रही थी। क्योंकि तीनों के फौज में कुल 40000 सैनिक थे। तथा यह फौज ब्रिटिश के सैनिकों के मुकाबले 4 गुना बड़ी थी। यह तीनों अपनी सेना लेकर बक्सर के और गए। बक्सर यह बिहार में आता था। जबकि वहीं दूसरी और ब्रिटिशर्स अपनी सेना लेकर आ गई। उस समय रॉबर्ट ब्रिटेन में छुट्टियां मना रहे थे इसलिए हेक्टर मुनरो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के तरफ से नेतृत्व कर रहे थे। २२ अक्टूबर १७६४ को लड़ा गया तथा बैटल ऑफ़ बक्सर लगभग 3 से 4 घंटे चली। इसी दौरान मीर कासिम युद्ध के मध्य में ही भाग खड़ा हुआ। तथा मुगल सम्राट ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद अवध के नवाब ने भी आत्मसमर्पण कर दिया।
इलाहाबाद की संधि
बक्सर का युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने आसानी से जीत लिया। उसके बाद 1765 में। रॉबर्ट क्लाइव भारत में फिर से आ गया तथा उसने इलाहबाद की संधि की इस सन्धि के द्वारा इलाहाबाद की प्रथम संधि (First Alliance of Allahabad) (12 अगस्त, 1765 ई.)
• यह संधि क्लाइव, मुग़ल सम्राट शाहआलम द्रितीय तथा बंगाल के नवाब नज्मुद्दौला के मध्य सम्पन्न हुई। इस संधि की शर्तो निम्नवत थी
• कंपनी को मुग़ल सम्राट शाहआलम द्रितीय से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई।
• कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के जिले लेकर मुग़ल, सम्राट शाहआलम द्रितीय को दे दिए।
• कंपनी ने मुग़ल सम्राट को 26 लाख रूपये की वार्षिक पेंशन देना स्वीकार किया।
इलाहाबाद की द्रितीय संधि (Second Alliance of Allahabad) (16 अगस्त, 1765 ई.)
• यह संधि क्लाइव एवं शुजाउद्दौला के मध्य सम्पन्न हुई। इस संधि की शर्ते निम्नवत थी जिससे
• इलाहाबाद और कड़ा को छोड़कर अवध का शेष क्षेत्र नज्मुद्दौला को वापस कर दिया गया।
• कंपनी द्वारा अवध की सुरक्षा हेतु नवाब के खर्च पर एक अंग्रेजी सेना अवध में रखी गई।
• कंपनी को अवध में कर मुफ्त व्यापार करने की सुविधा प्राप्त हो रही है
• शुजाउद्दौला को बनारस के राजा बलवंत सिंह से पहले की ही तरह लगान वसूल करने का अधिकार दिया गया। राजा बलवंत सिंह ने युद्ध में अंग्रेजो की सहायता की थी।
• उपरोक्त आर्टिकल का वीडियो हमारे चैनल में दिया गया हैं निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप इसके वीडियो का लाभ उठा सकते हैं धन्यवाद्!
Raj b
26 Jul 2020Sir👍
Very nice video
Osho raj
16 May 2021Jabardast