बंगाल विभाजन की पृष्ठभूमि

बंगाल विभाजन का कारण I

इस आर्टिकल में हम बंगाल पार्टीशन की चर्चा करेंगे. बंगाल पार्टीशन के वक्त लॉर्ड कर्जन उस समय भारत का वायसराय था। यह वह दौर था जिस समय देश में राष्ट्रवाद की भावना चरम सीमा पर थी। तथा इसका सेंटर बना था बंगाल। लॉर्ड कर्जन इस बढ़ते हुए राष्ट्रवाद को किसी ना किसी तरह से कम करना चाहता था। बहुत विचार करने के बाद उसको एक उपाय सूझ गया। तथा उसने निर्णय लिया कि बंगाल को दो भागो में विभाजित कर दिया जाए.उसने 1903 में बंगाल के विभाजन करने का प्रस्ताव रखा। उस समय का बंगाल, मिलकर बना था आज का वेस्ट बंगाल, उड़ीसा, बिहार आसाम और छत्तीसगढ़ के कुछ भाग मिलाकर। उस समय बंगाल की पापुलेशन थी लगभग साढ़े सात करोड़. जो कि उस समय के पूरे भारत के जनसंख्या की एक चौथाई थी। तथा बंगाल विभाजन का उसने यह बहाना बताया कि इतनी बड़ी जनसंख्या के कारण प्रशासनिक सेवा देने में मुश्किल जा रही है इसलिए प्रशासनिक सेवा के मद्देनज़र बंगाल का विभाजन करना जरूरी है। विभाजन में ईस्टर्न बंगाल और वेस्टर्न बंगाल बनाया गया। तथा ईस्टर्न बंगाल की राजधानी ढाका बनाई गई। तथा वेस्ट बंगाल की राजधानी कोलकाता बनाए गयी. कर्जन का इसके पीछे का मुख्य उद्देश्य कुछ अलग था क्योंकि असल में वह हिंदू तथा मुस्लिम के बीच फूट डालना चाहता था जिसे हम डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी का नाम देते हैं। ईस्टर्न बंगाल यह मुस्लिम बहुल इलाका यानी कि मुस्लिम मेजॉरिटी का इलाका था। बल्कि वेस्ट बंगाल था हिंदू मेजॉरिटी याने की हिंदू बहुल इलाका। ब्रिटिशर्स कि यह एक सोची-समझी साजिश थी और यह साजिश थी हिंदू तथा मुस्लिम को आपस में बांट देने की।

कांग्रेस नेताओ की प्रतिक्रिया

जब कांग्रेस के नेताओं को यह बात पता चली कि बंगाल का बंटवारा हो रहा है तो कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेता इसका विरोध करने लगे। सुरेंद्रनाथ बनर्जी तथा कृष्ण कुमार। मित्र जैसे बड़े नेताओं ने बहुत ही पावरफुल प्रेस कैंपेनिंग शुरू कर दी उनके बंगाली न्यूज़पेपर के माध्यम से। उनका उद्देश्य था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बंगाल के पार्टीशन के पीछे की मंशा से लोगों को अवगत कराना। इसके बाद हजारों लोग पिटिशन पर साइन करके ब्रिटिश सरकार को भेजने लगे। कांग्रेस के अन्य मॉडरेट नेता भी प्रेयर, पिटिशन, पब्लिक मीटिंग के माध्यम से लोगों को बंगाल पार्टीशन के खिलाफ एकजुट होने के लिए तैयार कर रहे थे। तथा इसमें खास बात यह थी कि जमींदार वर्ग जोकि अंग्रेजो का वफादार माना जाता था वे भी कांग्रेस के साथ आकर खड़े हो गए। लेकिन इन सबके बावजूद ब्रिटिश सरकार को इन सब एक्शन का कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा था। अंत में 1905 में कर्जन ने बंगाल विभाजन पर अपनी मुहर लगा दी।

आम जनता का रुख तथा लाल बाल पाल

इसमें यह अनाउंस कर दिया गया कि बंगाल पार्टीशन कब होगा? अब इसका असर यह हुआ कि जो लोग कांग्रेस के मॉडरेट तरीके का समर्थन कर रहे थे उनका इन पर से विश्वास उठ गया। उनको यह लगने लगा कि कांग्रेस के इस तरीके से कुछ ना हो पाएगा। लेकिन इस समय कांग्रेस से कुछ बड़े लीडर निकल कर आए उनका नाम था बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल। बाल गंगाधर तिलक यह पुणे तथा मुंबई में लोगों को पार्टीशन के खिलाफ खड़ा कर रहे थे। इसके अलावा लाला लाजपत राय पंजाब तथा नॉर्थ में पार्टीशन के खिलाफ लोगों को जागृत कर रहे थे। पिल्लई जो थे वह मद्रास में लोगों को बंगाल पार्टीशन के खिलाफ एकजुट कर रहे थे। बंगाल में पार्टीशन के खिलाफ बहुत ही प्रोटेस्ट मीटिंग बुलाई गई। इसमें यह निर्णय लिया गया कि ब्रिटिशर्स को सबक सिखाने के लिए इस वस्तुओं का बहिष्कार किया जाएगा। मतलब ब्रिटिश से जो आयात हुई वस्तुएं. जैसे की कपड़े या फिर अन्य ब्रिटिश में निर्मित वस्तुएं उसका उपयोग कोई भी नहीं करेगा। तथा ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करते वक्त इन वस्तुओं का निर्माण भारतीय कंपनियों द्वारा होगा। इसलिए उस समय भारत के धनी लोगों ने बहुत सी फैक्ट्री स्थापित की। स्कूल तथा विद्यालय की स्थापना की गई। बंगाल के खिलाफ किस पार्टीशन के खिलाफ जो मोर्चा या आंदोलन चलाया गया था। उसे ही स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन नाम दिया गया।

स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन

इस आंदोलन के तहत एक जगह हम ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार कर रहे थे तो वही एक तरफ स्वदेशी वस्तुओं का समर्थन कर रहे थे। इस आंदोलन को अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए बंगाल में दुर्गा पूजन तथा महाराष्ट्र में शिवाजी जयंती तथा गणपति उत्सव सार्वजनिक रूप से मनाया गया. तथा कांग्रेस के कद्दावर नेताओं ने लोगों को यह मैसेज दिया कि जो फॉरेन कपड़े मैनचेस्टर से बनकर आते हैं उन्हें कोई भी उपयोग में नहीं लाएगा और ना ही उन्हें कोई खरीदेगा। तथा नमक जो इंग्लैंड के लिवरपूल से बनकर आता था उसका भी बहिष्कार किया गया। लेकिन इन सबके बावजूद भी ब्रिटिश सरकार को कोई भी असर नहीं हो रहा था। तथा 16 अक्टूबर 1905 के दिन बंगाल का पार्टीशन कर दिया गया। इस वजह से लोगो की भीड़ वन्दे मातरम गीत गाकर बंगाल विभाजन का विरोध कर रही थी। वंदे मातरम यह गीत उस समय लोगों के भीतर राष्ट्र भाव जगा देता था। पूरे देश में लोगों ने ब्रिटिश कपड़ों को जलाना शुरू कर दिया। धोबियो ने विलायती कपड़े धोने से मना कर दिया। वहीं दूसरी ओर मॉडरेट तथा एक्सट्रीमिस्ट के बीच आंदोलन को लेकर दरार आ गई क्योंकि मॉडरेट चाहते थे कि आंदोलन केवल बंगाल तक सीमित हो वही एक्सट्रीमिस चाहते थे कि पूरे देश में इसका विरोध किया जाए यह अपने आप में एक बहुत बड़ा टॉपिक है इसे हम अगले आर्टिकल में चर्चा करेंगे. 1907 में कांग्रेस में दरार पड़ गई तथा यह एक बहुत बड़ा कारण बना आंदोलन के असफलता का.

जब कांग्रेस के नेताओं को यह बात पता चली कि बंगाल का बंटवारा हो रहा है तो कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेता इसका विरोध करने लगे। सुरेंद्रनाथ बनर्जी तथा कृष्ण कुमार। मित्र जैसे बड़े नेताओं ने बहुत ही पावरफुल प्रेस कैंपेनिंग शुरू कर दी उनके बंगाली न्यूज़पेपर के माध्यम से। उनका उद्देश्य था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बंगाल के पार्टीशन के पीछे की मंशा से लोगों को अवगत कराना। इसके बाद हजारों लोग पिटिशन पर साइन करके ब्रिटिश सरकार को भेजने लगे। कांग्रेस के अन्य मॉडरेट नेता भी प्रेयर, पिटिशन, पब्लिक मीटिंग के माध्यम से लोगों को बंगाल पार्टीशन के खिलाफ एकजुट होने के लिए तैयार कर रहे थे। तथा इसमें खास बात यह थी कि जमींदार वर्ग जोकि अंग्रेजो का वफादार माना जाता था वे भी कांग्रेस के साथ आकर खड़े हो गए। लेकिन इन सबके बावजूद ब्रिटिश सरकार को इन सब एक्शन का कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा था। अंत में 1905 में कर्जन ने बंगाल विभाजन पर अपनी मुहर लगा दी।

अंग्रेजो की दमन निति

ब्रिटिश गवर्नमेंट ने इस दौरान न्यूज़पेपर तथा पब्लिक मीटिंग पर बैन लगा दिया था। तथा ऑलमोस्ट सभी नेताओं को जेल में भर दिया। जहां उन्हें बहुत ही ज्यादा टॉर्चर और पीड़ा दी गई।

बड़े नेताओं में बाल गंगाधर तिलक को अरेस्ट किया गया उनको 6 वर्ष के लिए मंडाले जेल में कैद कर दिया गया.  तथा अन्य कई नेताओं को जेल में भर दिया गया। जैसे कि अरविंद घोष तथा बिपिन चंद्र पाल को जेल में काफी कष्ट दिया गया इसलिए उन्होंने बाद में राजनीति से सन्यास  ले लिया।

लाला लाजपत राय कांग्रेस में दरार पड़ने के बाद ही ब्रिटेन चले गए उसके बाद अमेरिका।

इसका मतलब 1908 जून आते-आते कांग्रेस का कोई भी एक्सट्रिमिस्ट नेता आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए मौजूद नहीं था इसके अलावा मुस्लिम वर्ग इसे शक की निगाहों से देख रहा था क्योकि इसमें हिंदू फेस्टिवल,  मेलों को, और हिंदुओं के धार्मिक चिन्हों का उपयोग आंदोलन के प्रचार के लिए उपयोग में लाया गया था.  1908 जून तक यह आंदोलन कमजोर पड़ चुका था एवं यह आंदोलन ख़त्म हो गया.  इस आर्टिकल में हमने बंगाल विभाजन के कारणों को जाना अगले आर्टिकल में इसे हम और भी ज्यादा गहराई से समझेंगे. धन्यवाद 

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