पूना पैक्ट से पूर्व जुडी महत्वपूर्ण घटनाये तथा पृष्ठभूमि

आज के आर्टिकल में हम  पूना पैक्ट के बारे में पढ़ेंगे. लेकिन इसके पहले हमें इसकी पृष्ठभूमि समझना जरूरी है। बात 1906 की है जब मुस्लिम लीग की स्थापना हुई थी। मुस्लिम लीग के संस्थापक सदस्य थे ख्वाजा सलीम उल्ला, सैयद आमिर अली, खान बहादुर गुलाम,  सर सुल्तान मोहम्मद शाह यानी आगाह खान 3.  मुस्लिम लीग के सारे सदस्य ब्रिटिश सरकार के पास समस्या लेकर पहुंचे। समस्या यह थी कि मुस्लिम , सेंट्रल लेजिसलेटिव काउंसिल तथा प्रोविंशियल लेजिसलेटिव काउंसिल में अंडर रिप्रेजेंट थे यानि की  सेंट्रल लेजिसलेटिव काउंसिल तथा प्रोविंशियले लेजिस्लेटिव  काउंसिल में मुस्लिम की  जो संख्या थी वह हिंदू सदस्यों से काफी कम थी यानी कि दोनों कौंसिल में हिंदू मेजॉरिटी में थे इस मांग को लेकर मुस्लिम वर्ग के आला नेताओ के बिच असंतोष की भावना थी  इसलिए मुस्लिम लीग की यह मांग थी कि उन्हें  मुस्लिम बहुल  इलाकों में सेपरेट इलेक्टोरेट्स चाहिए.

सेपरेट इलेक्टोरेट का मतलब

सेपरेट इलेक्टोरेट  यह क्या होता है? इसका मतलब हम एक उदाहरण  से समझते हैं। मान लीजिए आप जिस जगह पर रहते हो वहां पर 10 लोग रहते हैं। इन 10 लोगों में 5 या 5 से ज्यादा लोग मुस्लिम है तो इस इलाके में मेजॉरिटी होगी मुस्लिम की  तो वह इलाका मुस्लिम बहुल या मुस्लिम मेजॉरिटी कहलाएगा  क्योंकि वहां पर मुस्लिम धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है तथा अन्य धर्म के लोगों की संख्या मुस्लिम संख्या के मुकाबले कम है। तो मुस्लिम लीग का कहना था कि जिस भी एरिया में या क्षेत्र में मुस्लिमों की संख्या ज्यादा है यानी कि मुस्लिम संख्या वहां बहुल है तो वहां पर केवल इलेक्शन के लिए केवल मुस्लिम कैंडिडेट यानी कि प्रतिनिधि ही चुनाव में खड़े होंगे और उसे वोटिंग का अधिकार भी केवल मुस्लिम लोगो को होगा अन्य किसी भी धर्म के लोगो को नहीं.  इस तरह के अरेंजमेंट को कहते हैं सेपरेट इलेक्टोरेट्स।

सेपरेट इलेक्टोरेट की मांग का दौर तथा उससे जुड़े एक्ट.

तथा मुस्लिम लीग के इस डिमांड को गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट याने की  मोर्ले मिंटो एक्ट को 1909 में  मान लिया गया.  पहली बार सेपरेट इलेक्टोरेट्स  इसी एक्ट में  लाया गया था। इसलिए लॉर्ड मिंटो को  भारतीय सांप्रदायिकता का जनक भी कहा जाता है। तथा  बाद में यही मांग को पूरा करना पाकिस्तान देश का निर्माण का आगे चल के कारण भी बना। अगर morley-minto एक्ट की  प्रोविजन की बात करे तो यह मुस्लिम लीग के लिए फायदेमंद रही.  इसके बाद अन्य कम्युनिटी भी सेपरेट इलेक्टरेट की मांग करने लगी  तथा ब्रिटिश सरकार ने  अन्य कम्युनिटीज की भी मांग मान ली. क्रिश्चन सिख एंग्लो इंडियंस तथा यूरोपियन की  सेपरेट इलेक्टोरेट की मांग वर्ष 1919 में मान ली गयी  गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 को  मोंटेग्यू और चेम्सफोर्ड रिफार्म याने की सुधार  भी कहा जाता है. इसी एक्ट 1919 में एक प्रोविजन यह भी था। इसके लागू होने के 10 साल बाद यानी कि 1929 में  तथा इस एक्ट  की प्रोविजन कितनी कारगर सिद्ध हुई इसे जानने के लिए एक कमीशन बैठाई जाएंगी तथा यह कमीशन इस एक्ट द्वारा धरातल पर कितने सुधार हुए इसकी समीक्षा करेगी तथा अपने तरफ से इस कमिशन के सदस्य अन्य सुधारो की सिफारिशें भी ब्रिटिश सरकार को करेगी.

साइमन कमीशन तथा कमीशन की रिपोर्ट.

 वर्ष 1927 में  उस समय के  लॉर्ड ब्रेकनहेड जो उस समय सेक्रेटरी ऑफ द स्टेट थे, उनकी देखरेख में 1927 में ही  इस कमीशन की स्थापना कर दी गयी. इस कमीशन में ब्रिटिश सरकार के कुल 7 सदस्य थे। तथा सर साइमन को इस कमीशन का चेयरमैन बनाया गया. इसलिए उन्हीं के नाम पर इसे साइमन कमीशन कहा जाता है। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर साइमन कमीशन से मिलने गए और उन्होंने कहा कि सभी को सेपरेट इलेक्टोरेट्स दिया है तो क्या डिप्रेस्ड क्लासेस को नहीं दोगे? सिंपल भाषा में डॉक्टर अंबेडकर ने साइमन कमीशन के सामने सेपरेट इलेक्टोरेट्स की मांग कर दी. अगर बाबासाहेब आंबेडकर के  कथन से समझे तो उन्होंने यूं कहा ” पिछड़ी जाति के अल्पसंख्यों को दूसरे किसी भी अल्पसंख्यक जाति से अधिक राजनीतिक संरक्षण की आवश्यकता है. वह भी इस वजह से, अछूत हमेशा शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ हैं , आर्थिक दृष्टि से गरीब हैं , सामाजिक रूप से गुलाम  हैं  और यहां तक कि राजनीतिक रूप से  कमजोर है  किसी भी संप्रदाय की तुलना में।” डॉ आंबेडकर को भारतीय जनता तथा राजनेताओं की आलोचना सहन करना पड़ी क्योंकि  कांग्रेस से लेकर मुस्लिम लीग साइमन कमीशन का विरोध कर रहे थे क्योंकि उसमें एक भी भारतीय नहीं था तथा डॉक्टर आंबेडकर ने इस बात की परवाह किये बिना साइमन कमीशन से मिलने गए t और तो और  उन्होंने दलितों के लिए सेपरेट इलेक्टरेट की मांग कर डाली. और उन्होंने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि उनका एकमात्र लक्ष्य था डिप्रेस्ड क्लासेस याने की दलितों की जिंदगी में  राजनैतिक अधिकार तथा शिक्षा के माध्यम सेें बदलाव लाना सुधार लाना इत्यादि। मई 1930 में साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी।

लंदन में गोलमेज परिषद का आयोजन

 ब्रिटिश सरकार ने  इस रिपोर्ट की चर्चा करने के लिए। तथा इंडियन रिप्रेजेंटेटिव याने  की प्रतिनिधियों की मांग अच्छी तरह से समझने के लिए गोलमेज  परिषद का आयोजन करने का निर्णय लिया तथा यह आयोजन 1930 से लेकर 1932 के बिच तीन बैठकों में होने वाला था. पहली गोलमेज परिषद  नवंबर 1930 से लेकर जनवरी 1931 तक चली  तथा दूसरी गोलमेज परिषद हुई सितंबर 1931 से दिसंबर 1931 तक। इस सेकंड राउंड टेबल में आंबेडकर सहित अन्य कम्युनिटी के लीडर सेपरेट इलेक्टोरेट की मांग कर रहे थे।आंबेडकर ने गोलमेज परिषद् में अपनी बात कुछ इस प्रकार कही”  पिछड़ी जातियों ने ब्रिटिश सरकार का इस उम्मीद से स्वागत किया था की वे उन्हें कट्टर सवर्णों के दमन तथा उनके अत्याचार से मुक्ति दिलाएंगे। ब्रिटिशो के आने  से पहले हम लोग मंदिर नहीं जा सकते थे। क्या आज जा सकते हैं?

       जबकि गांधीजी जो दूसरे गोलमेज परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व अकेले कर रहे थे। वह यह मांग कर रहे थे कि भारत में  जल्द से जल्द एक रेस्पोंसिबल  गवर्नमेंट बनाई जाए। जिस तरह का माहौल था उसे तो समझ में आ ही जाता है कि सेकंड राउंड टेबल फेल होने वाली थी। फिर भी इसी  गोलमेज परिषद के बाद रेमसे मैकडॉनल्ड ने  जो कि  ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे तथा गोलमेज परिषद के चेयरमैन भी थे उन्होंने दो बड़े अनाउंसमेंट किये  पहला ब्रिटिश इंडिया में दो नए मुस्लिम प्रोविंशियल बनाए जाएंगे नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस तथा सिंध. दूसरा उन्होंने भारतीय लीडर से कहा या तो आप आपस में बैठकर माइनॉरिटी के विषयों को सुलझा लो नहीं तो ब्रिटिश सरकार खुद ही इस माइनॉरिटी के मसले को सुलझा लेगी। इसी ऐलान के साथ दिसंबर 1931 में दूसरी गोलमेज परिषद समाप्त हो गई। इस कॉन्फरेन्स  में जो भी हुआ इससे गांधीजी काफी निराश थे। गांधीजी 28 दिसंबर 1930 में  लंदन से भारत वापस लौटे।

कम्युनल अवार्ड तथा गांधीजी का अनशन

       आते ही गांधी जी तथा कांग्रेस ने निर्णय लिया इस सिविल डिसऑबेडिएंस का सेकंड फेस शुरू किया जाए। लेकिन नए वॉइसराय लौट वेलिंगटन कुछ ज्यादा ही एक्टिव निकले उन्होंने मूवमेंट शुरू होने से पहले ही  4 जनवरी 1932 में गांधीजी समेत सभी प्रमुख कोंग्रेसी नेताओ को कैद कर लिया. कोई प्रमुख नेता ना होने की वजह से सिविल डिसऑबेडिएंस का दूसरा फेज शांत रहा. गांधीजी  को पुणे की येरवडा जेल में रखा गया था। तथा गांधीजी को जेल में ही पता चला की  रेमसे मैक्डोनाल्ड ने  ब्रिटिश पार्लियामेंट में इंडियन कम्युनिटीज के लेजिसलेटिव रिप्रेजेंटेशन को लेकर कुछ अनाउंसमेंट किया है। इसी अनाउंसमेंट को कम्युनल अवार्ड या मैकडॉनल्ड अवार्ड कहा जाता है. कम्युनल अवार्ड में दो मुख्य प्रपोजल यानी कि प्रस्ताव थे  पहला प्रस्ताव यह था कि प्रोविंशियल लेजिसलेटिव असेंबली के सीट को डबल किया जाएगा दूसरा प्रस्ताव यह था कि मुस्लिम, सिख, क्रिश्चन,  एंग्लो इंडियन,यूरोपियन के साथ साथ डिप्रेस क्लासेज को भी सेपरेट इलेक्टोरेट दिया जायेगा  इसका मतलब डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जिस मांग को लेकर 5 वर्षो से संघर्ष कर रहे थे अंत  में ब्रिटिश सरकार ने उनकी इस मांग को पूरा कर दिया था। वहीं दूसरी और गांधीजी ने कम्युनल अवार्ड पर भयंकर नाराजगी जाहिर की खासकर डिप्रेस्ड क्लासेस को सेपरेट इलेक्टोरेट्स देने पर गांधीजी ने कहा कि ब्रिटिश सरकार की हिदुओ को बाटने की यह साजिश हैं. गांधीजी उस समय पुणे के येरवडा जेल में थे तथा डिप्रेस्ड क्लासेस को सेपरेट इलेक्टोरेट्स देने के विरोध में आमरण अनशन रखा. उन्होंने यहां कहा कि अगर डिप्रेस्ड क्लासेस किस सेपरेट इलेक्टोरेट  के घोषणा को वापस नहीं लिया गया तो वह अपना जीवन अनशन के माध्यम से त्याग देंगे. ब्रिटिश सरकार ने प्रतिक्रिया दी कि कम्युनल अवार्ड के लिए हमें जिम्मेदार बिलकुल भी ठहराया न जाए क्योंकि हमने तो सेपरेट इलेक्टोरेट्स इसलिए  दिया है क्योंकि दलित वर्ग के नेता बाबासाहेब आंबेडकर ने इसकी मांग की हैं  ब्रिटिश सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी तथा इस तरह से बड़े चालाकी से इस विवाद से अपना पल्ला झाड़ लिया। तथा यह हिदायत दी की अगर यह मसला सुलझाना हैं तो  डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर से बात की जानी चाहिए।

कांग्रेस नेताओ की बाबासाहेब आंबेडकर से बातचीत. 

अनशन के चलते गांधी जी की तबीयत लगातार खराब हो रही थी इसलिए  पंडित मदन मोहन मालवीय,तेज बहादुर सप्रू, सी राम गोपालाचारी  जैसे बड़े लीडर अंबेडकर जी के पास पहुंचे। उनसे यह अनुरोध किया कि  वे सेपरेट इलेक्टोरेट्स की मांग वापस ले. लेकिन डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने  उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। दिन पर दिन गांधीजी की तबीयत खराब हो रही थी. जबकि दूसरी और  डॉ आंबेडकर सेपरेट इलेक्टरेट की मांग वापस लेने को तैयार नहीं थे. ऐसे में  गांधीजी के अनुयाई के नजर में डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर एक विलेन बन चुके थे तथा उनके विरोध में धरना प्रदर्शन  दे रहे थे। अंत में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर तथा गांधीजी के बीच कुछ नेगोशिएशन हुए तथा इस निगोटिएशन के बेस पर पूना पैक्ट साइन किया गया पूना पैक्ट सी जुडी प्रोविजन के बारे में अगले आर्टिकल में चर्चा की जाएगी, धन्यवाद !

This Post Has 8 Comments

  1. Sir
    It’s my cordial request to you
    Pls load it in English plz sir ..

  2. Sir please do provide in english language.

  3. really,helpful..Thank you

  4. Sir, plzzzz do in english 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  5. Sir polity complete kare plz

  6. Plz upload in English language, I can’t understand this

  7. Sir please upload notes in English

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