इस आर्टिकल में हम पिट्स इंडिया एक्ट १७८४ के बारे में जानकारी हासिल करेंगे । इस एक्ट को 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए लाया गया था। ब्रिटिश पार्लिमेंट में १७७८ को विलियम पिट्स की एंट्री होती है। उस समय विलियम पिट्स मात्र 21 वर्ष के थे तथा वे ब्रिटिश के यंगेस्ट प्राइम मिनिस्टर यानि की सबसे युवा प्रधानमंत्री थे। इसलिए इसे पिट्स इंडिया एक्ट भी कहा जाता है इसके अलावा इसे ईस्ट इंडिया एक्ट १७८४ के नाम से भी जाना जाता हैं।
जैसे कि हमें पता है 1773 रेगुलेटिंग एक्ट के जरिए ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के गतविधियों पर नजर रखना शुरू कर दिया था। लेकिन अब भी ईस्ट इंडिया कंपनी की कमान कोर्ट ऑफ डायरेक्टर के हाथ में थी। जबकि ब्रिटिश सरकार भारत के ऊपर अपना नियंत्रण और ज्यादा प्रस्थापित करना चाहती थी अतः ब्रिटिश सरकार द्वारा पिट्स इंडिया एक्ट १७८४ लाया गया ।
इस एक्ट के महत्वपूर्ण प्रोविजन या मुद्दे निम्नलिखित है।
पहला है मोनोपली ऑफ ट्रेड, इस एक्ट के अंतर्गत कंपनी का एकाधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी के पास ही रखा गया यानी कि इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया।
कंपनी के नियंत्रण में बदलाव
दूसरा पॉइंट है कंट्रोल ऑफ कंपनी यानी कि कंपनी का नियंत्रण किसके पास था? जैसे कि 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट में कंपनी का कमर्शियल (व्यापारिक) तथा पॉलीटिकल (राजनीतिक) अफेयर कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर के हाथ में थी । लेकिन इस एक्ट में एक बड़ा बदलाव लाया गया कंपनी ने पिट्स इंडिया एक्ट के तहत कमर्शियल तथा पॉलिटिकल अफेयर को विभाजित कर दिया कंपनी के पॉलिटिकल अफेयर देखने के लिए एक बोर्ड ऑफ कंट्रोल का गठन किया गया इस बोर्ड ऑफ कंट्रोल में छह (सिक्स) मेंबर होते थे। तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल सिविल, मिलिट्री, पॉलीटिकल, अफेयर (मामलों) को नियंत्रित करते थे। जबकि इस एक्ट के तहत। कोर्ट ऑफ डायरेक्टर केवल कंपनी की कमर्शियल याने व्यापारिक गतिविधियों को नियंत्रित करते थे. हालांकि इस एक्ट के तहत कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर की संख्या में किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं किया अब भी वे 24 थे। बोर्ड ऑफ कंट्रोल एक पूरी तरीके से पॉलिटिकल बॉडी थी। जिसकी अध्यक्षता करते थे सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जो ब्रिटिश गवर्नमेंट का एक कैबिनेट मिनिस्टर होता था। इसके अलावा इसमें चार प्रिवी कौंसिलर थे तथा एक एक्स चेकर था । इन चार प्रिवी कौंसिलर को अपॉइंट या नियुक्त ब्रिटिश का राजा करता था।। बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल के गठन के कारन ही हमें मालूम पड़ता हैं की इस एक्ट के तहत ड्यूल गवर्नमेंट यानी कि जॉइंट गवर्नमेंट की स्थापित की गई तथा यानि की व्यापारिक तथा राजनैतिक मामले अलग अलग लोगो द्वारा चलाये जा रहे थे । इसके अलावा इस एक्ट के तहत बोर्ड ऑफ प्रोपराइटर जो कोर्ट ऑफ डायरेक्टर को नियंत्रित करते थे उनका नियंत्रण पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा उनका अधिकार हटा दिया गया।
एडमिनिस्ट्रेशन याने की प्रशासनिक बदलाव
अब हम अगला मुद्दा चर्चा करते हैं यानी कि एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन)। ईस्ट इंडिया कंपनी का एडमिनिस्ट्रेशन, हमने 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट में देखा था कि गवर्नर कौंसिल एक्सेक्टटिव बॉडी में में 4 मेंबर होते थे। इस एक्ट के तहत एग्जीक्यूटिव काउंसिल के मेंबर को घटाकर तीन कर दिया गया। इसका सबसे बड़ा असर सेंट्रल लेजिसलेशन के कानून बनाने के लिए फायदेमंद साबित हुआ। जैसे की हमने देखा था कि अगर गवर्नर जनरल को कोई कानून पारित कराना है तो उसे एग्जीक्यूटिव कौंसिल मेंबर के चार सदस्यों के के साथ बैठकर वोटिंग के आधार पर निर्णय करना पड़ता था तथा मेजॉरिटी वोटिंग के आधार पर तय होता था कि वह कानून पारित होगा भी या नहीं इस एक्ट के तहत अगर 3 मेंबर। बिल का विरोध में वोट कर दे तो गवर्नर जनरल अपने मन मुताबिक कानून पारित नहीं कर पाएगा। इसलिए पिट्स इंडिया एक्ट में गवर्नर जनरल की पावर बढ़ाने के लिए एग्जीक्यूटिव काउंसिल के मेंबर की संख्या घटा दी गई तथा वीटो पावर गवर्नर जनरल को दी गई। अब यहाँ मेंबर 3 थे। इसका मतलब अगर एक भी मेंबर कानून के पक्ष में वोट कर दें। तो मुकाबला टाई हो जाएगा। तथा इस एक्ट के तहत गवर्नर जनरल को वीटो पावर दी गई थी। इसलिए गवर्नर जनरल अपना वीटो पावर उसे करके उस बिल को कानून में पारित कर देगा । इसका मतलब पिट्स इंडिया एक्ट ने गवर्नर जनरल की कानून पारित करने की पावर काफी हद तक बढ़ा दिया था।
इस एक्ट में काउंसिल ऑफ मद्रास तथा काउंसिल ऑफ मुंबई को भी मॉडिफाई कर दिया था। ऑन द लाइन ऑफ गवर्नर जनरल काउंसिल। मतलब मुंबई तथा मद्रास प्रसिडेन्सी के एग्जीक्यूटिव बॉडी में भी बदलाव किये गए । तथा इनके काउंसिल में एक commander-in-chief अपॉइंट किए गए।
ईस्ट इंडिया कपनी के क्षेत्र में ब्रिटिश सरकार का राज
अब हम रेवेन्यू के बारे में क्या बदलाव की गई यह देखते हैं। इसमें ब्रिटिश गवर्नमेंट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के टेरिटोरियल पोजीशन को ब्रिटिश इंडिया पजेशन कहना शुरू कर दिया। इसका मतलब जितने टेरिटोरियल (क्षेत्र ) में ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्ज़ा हैं अब से उन क्षेत्रो पर ब्रिटिश गवर्नमेंट का ही राज चलेगा।
इस तरह आज हमने इस आर्टिकल में पिट्स इंडिया एक्ट को १८८३ के प्रमुख मुद्दों को विस्तार से समझा.
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