द्वितीय कर्नाटक युद्ध

आज हम द्वितीय कर्नाटक युद्ध के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे. पिछले अर्टिकल में हमने द्वितीय कर्नाटक युद्ध के बारे में विस्तार से चर्चा की थी जिसमें हमने देखा था किस तरह दो दल बनकर आपस में युद्ध की तैयारी करते हैं. जिसमें एक तरफ थे  मुजफ्फर जंग,चंदासाहेब, डूप्ले सहित फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी. वही दूसरी तरफ थे अनवरुद्दीन, नासिरजंग तथा ईस्ट इंडिया कंपनी वर्ष 1748 में मुजफ्फरजंग अपने दल के साथ कर्नाटक के आर्कोट नाम के  स्थान की तरफ बढ़ते हैं. अनवरुद्दीन समझ जाता हैं की अगर मुजफ्फरजंग अपनी सेना लेकर आर्कोट पहोच जाता हैं तो उन्हें हराने में मुश्किल हो जाएगा.  इसलिए अनवरुद्दीन आर्कोट में पहुंचने से पहले ही मुजफ़्फ़रजंग पर आक्रमण कर देता हैं और इसे अम्बुर के युद्ध 1748 के नाम से जाना जाता हैं और इस युद्ध में अनवरुद्दीन की मृत्यु हो जाती हैं और इस प्रकार चंदासाहेब कर्नाटक नवाब बन जाते हैं. इस जित में  सबसे बड़ा योगदान फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का था इसलिए चंदासाहेब पुदुचेरी के 80 गाओं फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी को दे देते हैं इस प्रकार फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी से आगे चल रही थी क्योंकि कर्नाटक में नवाब फ्रेंच ईस्ट इंडिया के पक्ष वाला था.

तिरुवदी युद्ध 1750

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी अनवरुद्दीन के बेटे वल्लाजाह से संपर्क करती हैं और उसके पिता का मौत का बदला साथ मिलकर लेने को कहती हैं. और वल्लाजाह तथा ईस्ट इंडिया कंपनी मिलकर चंदासाहेब के साथ दो युद्ध करती हैं यह युद्ध वर्ष 1750 में कर्नाटक के तिरुवदी नामक स्थान पर लड़े जाते हैं लेकिन इन दोनों युद्ध में भी फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का पलड़ा भारी रहा. इस युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बुरी हालत हो जाती हैं और इस बिच वल्लाजाह जिंजी नामक किले में छुप जाता हैं.

जिंजी युद्ध 1750

इस किले से किसी भी व्यक्ति को बाहर निकालना आसान नहीं था तथा अपने समय में औरंगजेब ने भी इसे जितने की नाकामयाबी कोशिश की थी. लेकिन डूप्ले के अनोखी युद्ध व्यूवरचना के चलते एक रात में इस किले को अपने अधीन कर लिया गया लेकिन कुछ समय पश्चात् ईस्ट इंडिया कंपनी तथा नासिरजंग, वल्लाजाह को बचाने के लिए पहुँचते हैं तथा वर्ष 1750 में दोनों के मध्य जिंजी का  युद्ध होता हैं. लेकिन फिर से फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी, ईस्ट इंडिया कंपनी पर भारी पड़ जाती हैं और डूप्ले बड़े चतुराई से नासिरजंग के वफादार आदमी को अपनी और लेने में कामयाब हो जाता हैं नतीजा यह हुआ की 1750 में वही ईमानदार आदमी, बेईमान होकर नासिर जंग की ही हत्या कर देता हैं इसका सबसे ज्यादा फायदा मुजफ़्फ़रजंग को होता हैं क्योंकि उसका नवाब बनने का सपना पूरा हो जाता हैं और उसे हैदराबाद का नवाब घोषित किया जाता हैं.

वल्लाजाह का पता चलना और मुजफ्फर जंग की मृत्यु होना

ख़ुश होकर मुजफ्फर जंग हैदराबाद के आस पास का क्षेत्र का अधिकार फ्रेंच ईस्ट इंडिया को देता हैं. मुसिलीपट्टम क्षेत्र भी फ्रेंच को मिल जाता हैं तथा मुज्जफर जंग धन भी लुटाता हैं और 500000  रुपये फ्रेंच टुकड़ी में बटवाता हैं तथा डूप्ले को 20 लाख रुपये देता हैं. लेकिन फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी को एक चिंता सताती हैं की आखिर वल्लाजाह कहा गायब हो गया हैं क्योंकि जिंजी युद्ध के बाद उसका कोई अता पता नहीं था और चिंता इसलिए भी जायज थी क्योंकि वल्लाजाह कभी भी चंदासाहेब के लिए ख़तरा बन सकता था तो कुछ समय के बाद पता चला की  वल्लाजाह तिरूनाचीलापिल्ली के किले में छुपा हैं और इसी बिच खबर आती हैं की अफगान के विरुद्ध युद्ध में मुजफ़्फ़रजंग की मौत हो जाती हैं

सलाबत जंग हैदराबाद का नया  नवाब

और इसके बाद फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी आसफ़जाह के बेटे सलाबतजंग को हैदराबाद का नवाब बनाती हैं.सलाबत जंग नासिरजंग का छोटा भाई था और सलाबत जंग आंध्रप्रदेश का नॉदर्न सरकार का हिस्सा फ्रेंच को सौप देता हैं नॉदर्न सरकार मुस्तफानगर, एल्लोर, राजमुंद्री तथा चिकाकोल से मिलकर बना था इस प्रकार अब तक फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का पलड़ा भरी था.

आर्कोट किले में ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्ज़ा

इसके बाद फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी वल्लाजाह को पकड़ने तिरुनाचिल्ली के किले में पकड़ने को जाती हैं. फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी.वल्लाजाह सहित ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिको को किले में नजरकैद कर लेती हैं लेकिन उस समय ब्रिटिश कंपनी के रोबर्ट क्लाइव जो छोटे से पद पर थे वो फ्रेंच को चकमा देकर एसटी डेविड नामक किले पर पहुँचते हैं जहां ब्रिटिश ऑफिसर्स मौजूद थे और रोबर्ट क्लाइव उनके आगे एक योजना रखता हैं और कहता हैं की चंदासाहेब ने सारी फौज तिरुनाचिनापल्ली के किले के तरफ तैनात किया हैं इसलिए यह अच्छा मौका हैं आर्कोट को अपने अधीन लेने का और रोबर्ट केवल 500 सेना के बल पर आर्कोट के किले पर अपना कब्ज़ा कर लेता हैं और इसके साथ रोबर्ट क्लाइव की काफी तारीफ होती हैं. इससे ईस्ट इंडिया कंपनी के आत्मविश्वास में वृद्धि होते हैं और फ्रेंच ईस्ट इंडिया कम्पनी को झटका लगता हैं.

वल्लाजाह बना कर्नाटक का नवाब

इसके बाद आत्मविश्वास से लरबेज  ईस्ट ईस्ट इंडिया कंपनी तिरुनाचिनापल्ली के किले में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी पर आक्रमण करती हैं और तिरुनाचिनापल्ली का घेराव खत्म हो जाता हैं लेकिन किसी तरह वहाँ से चंदासाहेब भाग निकला और वह तंजौर पहुँचता हैं लेकिन तंजौर में चंदासाहेब को मराठा ने पकड़कर मार दिया और इस प्रकार वल्लाजाह कर्नाटक का नवाब बनता हैं और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की वापसी होने लगती हैं, क्योंकि वल्लाजाह ब्रिटिश के पक्ष में था.

फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की पराजय

इस बिच डूप्ले एसटी डेविड के किले में धावा बोलता हैं लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी इस आक्रमण को रोक देती हैं और रोबर्ट फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी से  कोवेलॉन्ग और चिनलापेट नामक दो किले अपने कब्जे में ले लेता हैं. लेकिन डूप्ले इस बिच 1753 में ईस्ट इंडिया कंपनी से युद्ध छेड़ देता हैं और तिरुनाचिनापल्ली में दो युद्ध होते हैं अन्तः डूप्ले को ईस्ट इंडिया कंपनी के आगे घुटने टेकना पड़ता हैं और फ्रेंच कमांडर ऍम ऑस्ट्रे को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बंधक बना लिया जाता हैं.

द्वितीय कर्नाटक युद्ध का अंत – पांडिचेरी शांति समझौता

इस बिच फ्रेंच सरकार हार का सारा ठीकरा डूप्ले को ऊपर फोड़कर फ्रांस में वापस बुला लेती हैं तथा डूप्ले के स्थान पर गोदियो को भारत भेजती हैं और उसे निर्देश देती हैं की वो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से समझौता करने का प्रयास करे ताकी इस युद्ध को रोका जा सके और दोनों के बिच एक शांति समझौता होता हैं जिसे ट्रीटी ऑफ़ पांडिचेरी के नाम से जाना जाता हैं यह थी कहानी द्वितीय कर्नाटक युद्ध की धन्यवाद!

This Post Has 2 Comments

  1. Sir mind map jitne jyada provide honge telegram pr utna jyda apke channel subscriber badenge

  2. I found great experience during study your article. It is very easy to understand the Carnatic war.
    Thanks

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