द्वितीय कर्नाटक युद्ध की पृष्ठभूमि

इस आर्टिकल में हम द्वितीय कर्नाटक युद्ध की पृष्ठभूमि को बारीकी से समझेंगे.

मुग़ल बादशाह औरंगजेब

मुग़ल बादशाह औरंगजेब के दौरान मुग़ल एम्पायर अपने उत्थान पर था. पुरे देश में मुग़ल का परचम लहरा रहा था इतने बड़े देश में प्रशासन की जिम्मेदारी के लिए उसने कई प्रांतो में अपने गवर्नर नियुक्त करके रखे थे एवं इन प्रांतो के आसपास के एरिया को सूबा कहा जाता था वो एक प्रकार से डेप्युटी गवर्नर कहलाते थे जो गवर्नर के अधीन काम करते थे.

औरंगजेब के बाद गवर्नर बन बैठे निजाम

1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो गयी और उसके बाद वाले मुग़ल शासक कमजोर होने की वजह से मुग़ल सियासत लड़खड़ाने लगी. मुग़ल सियासत को लड़खड़ाता देख बहुत से प्रांतो के गवर्नर ने स्वयं को निजाम घोषित कर दिया जिन्हे सक्सेसर स्टेट कहा जाता हैं. ऐसा ही एक प्रान्त था हैदराबाद वहाँ के गवर्नर ने 1724 में खुद को निजाम घोषित कर दिया जिसका नाम था असफ जाह प्रथम और खुद को निजामुन मुल्क की उपाधि दी. हैदराबाद के आस पास कई सूबे थे जो मुग़ल के अधीन थे जो आसफ जाह प्रथम को रिपोर्ट करते थे. ऐसा ही एक सूबा था कर्नाटक में था.उस समय मोहम्मद सय्यद वहाँ के गवर्नर थे और आसफ जाह ने उसे कर्नाटक का नवाब बना दिया और उसे उपाधि दी सादतुल्लाह खान प्रथम इस प्रकार से कर्नाटक तथा हैदराबाद में एक नए वंश की शुरुआत हुयी.

नवयथ वंश की समाप्ति

सादतुल्लाह खान को औलाद नहीं थी इसलिए उसने अपने भाई गुलाम अली खान के बेटे, दोस्त अली को गोद ले लिया एवं जब वह बड़ा हुआ तो दोस्त अली को 1734 में कर्नाटक की राजगद्दी सौप दी. दोस्त अली का बेटा सफ़दर अली खान था और दोस्त अली का दामाद था चंदा साहेब लेकिन सफ़दर अली खान की 1743 में हत्या कर दी गयी. सफ़दर अली खान का बेटा बहुत ही छोटा था एवं चंदा साहेब को छत्रपति साहू ने हिरासत में ले लिया था अब चंदा साहेब को नवाब बनाया नहीं जा सकता था इसलिए एक दुविधा की परिस्थिति थी. ऐसे समय आसफ जाह ने हस्तक्षेप करते हुए कहा की कोई बात नहीं सफ़दर अली खान के छोटे बच्चे को ही नवाब बनाएंगे. जिसका नाम सआदतउल्लाह खान द्वितीय था और अनरुद्दीन को उसका प्रतिनिधि बनाया गया जब तक की वह बड़ा ना हो जाये लेकिन सादतउल्लाह खान द्वितीय के 1744 में हत्या कर दी गयी इस तरह कर्नाटक की नवयथ वंश समाप्त हो गयी.

अनवरूद्दिन की कूटनीति

इसके बाद असफ जाह द्वारा कर्नाटक के नवाब के रूप में अनरुद्दीन को घोषित किया गया. हमने पिछले आर्टिकल में पढ़ा था की अडियार नदी के किनारे डूप्ले के फ्रेंच सेना ने अनरुद्द्दीन के सेना को पानी पीला दिया था इस युद्ध को अडियार युद्ध या सेंत थोम युद्ध भी कहा जाता हैं इससे अनरुद्दीन की आखे खुल चुकी थी और वो समझ गया था की इनसे अकेले युद्ध नहीं किया जा सकता इसी बिच चंदा साहेब मराठो के कैद से छूट गए जिससे अनरुद्दीन के होश उड़ गए क्योंकि वे नवयथ वंश से ताल्लुक रखते थे एवं चंदा साहेब अनरुद्दीन को हटाकर स्वयं नवाब बनना चाहते थे.चंदा साहेब ने डूप्ले के फ्रेंच गवर्नर से हाथ मिला लिया

हैदराबाद में राजगद्दी को लेकर घमासान

जून 1748 में आसफ जाह की मृत्यु हो गयी अब हैदराबाद में दो राजगद्दी के दावेदार थे नासिर जंग एवं मुजफ्फर जंग. मुजफ्फर जंग आसफ जाह का नाती था मतलब आसफ जाह प्रथम यह मुजफ्फर जंग का नाना था.जबकि नासिर जंग यह आसफ जाह प्रथम का बेटा था. नासिर जंग रिश्ते में मुज्जफर जंग का मामा था. कायदे से नासिर जंग हैदराबाद का उत्तराधिकारी था किन्तु समस्या यह थी की नासिर जंग ने ही आसफ जाह प्रथम की हत्या की कोशिश की थी इसलिए आसफ जाह प्रथम ने उसे मार मारकर भगा दिया. इसलिए उसने अपना उत्तराधिकारी मुज्जफर जंग को बनाया था जो बात नासिर जंग को गवारा ना थी इसलिए मुज्जफ्फर जंग तथा नासिर जंग आमने सामने थे उधर अनवरुद्दीन ने नासिर जंग का समर्थन किया इसलिए एक तरफ था नासिर जंग एवं अनवरुद्दीन एवं दूसरे जगह अकेला मुजफ्फर जंग

चंदा साहेब ने दिया मुजफ्फर जंग का साथ

स्थितियों को जायजा करते हुए चंदा साहेब ने मुजफ्फर जंग को साथ दिया और जैसे हमें पता हैं की चंदा साहेब ने पहले ही डूप्ले को अपने साथ मिला लिया था मतलब एक तरफ थे मुजफ्फर जंग, चंदसाहेब, फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी एवं दूसरी तरफ नासिर जंग एवं अनवरुद्दीन लेकिन इन्होने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने खेमे में ले लिया इस तरह द्वितीय कर्नाटक युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हो गयी. यह थी द्वितीय कर्नाटक युद्ध के पृष्ठभूमि की. धन्यवाद!

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