आज के आर्टिकल में हम तृतीय कर्नाटक युद्ध के बारे में पढ़ेंगे. इस आखरी कर्नाटक युद्ध के बाद फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव भारत से लगभग समाप्त हो गया तथा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी पुरे मजबूती से भारत में अपने पैर जमाने में कामयाब हो गयी.
अल्प समय में गोदहेउ की भारत से फ्रेंच में वापसी
हमने पिछले आर्टिकल में पढ़ा था फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी ने अक्टूबर 1754 से गवर्नर डूप्ले को हटाकर गोदहेउ को कंपनी का दायित्व सौपा था. किन्तु गोदहेउ चार महीने में ही भारत से वापस लौट गया उसके कार्यकाल में एक महत्वपूर्ण कार्य हुआ था तथा पांडुचेरी शांति समझौता जो ब्रिटिश तथा फ्रेंच के बिच हुआ था.
चंद्रनगर फैक्ट्री पर ब्रिटिश का हमला
उसके बाद वर्ष 1755 में लेरिट भारत में फ्रेंच कंपनी का पदभार सँभालने आते हैं. लेकिन लरिट में प्रशासनीक तथा कूटनीतिक क्षमता नहीं थी जिस वजह से ब्रिटिश कंपनी के आगे टिक नहीं पाया. वर्ष 1756 में ब्रिटेन में सेवन ईयर युद्ध शुरू हो चूका था एवं यूरोप में फ्रांस तथा ब्रिटेन आमने सामने थे स्वाभाविक रूप से इस युद्ध का असर ब्रिटेन ईस्ट इंडिया कंपनी तथा फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी के शांति समझौते में देखने को मिला एवं ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने फ्रेंच के चंद्रनगर फैक्ट्री में 23 मार्च 1757 को धावा बोलकर उसे अपने कब्जे में ले लिया. चंद्रनगर यह बंगाल प्रान्त में आता था. कुछ इतिहासकारो के मुताबिक फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रथम डायरेक्टर ने वर्ष 1688 में मुग़ल सुभेदार को 40000 सिक्के देकर चंद्रनगर फैक्ट्री के जमीन को ख़रीदा था. डूप्ले के समय यहां बहुत काम हुआ इस प्रकार चंद्रनगर फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्य व्यापारिक झोन बन गया किन्तु ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस जगह को तहस नहस करके अपने गिरप्त में ले लिया.
फोर्ट एंड डेविड पर फ्रेंच कंपनी का कब्ज़ा
हमले के बाद फ्रेंच सरकार समझ गयी की लेरिट स्थितियों को संभालने में नाकाम हो रहे हैं इसलिए 1758 में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी लेरिट को हटाकर कोन्टेन लेली को फ्रेंच गवर्नर नियुक्त किया. लेली एक निर्भीक गवर्नर था.
लेली ने सबसे पहले ब्रिटिश के कडलूर में स्थित फोर्ट डेविड में आक्रमण करके अपने कब्जे में ले लिया इस प्रकार फोर्ट एंड डेविड पर फ्रेंच का कब्ज़ा हो गया.
फ्रेंच कंपनी का मद्रास को हस्तगत करने का असफल प्रयास
लेली का अगला लक्ष्य ब्रिटेन के फोर्ट एंड जॉर्ज को जितने का था जो मद्रास में स्थित था. लेकिन लक्ष्य को समज़ने से पहले यह बात समज़ना जरुरी हैं की किसी भी आक्रमण तथा युद्ध के बाद जान माल के के अलावा वित्तीय हानि पडे पैमाने में होती हैं तथा यह हानि दोनों पक्षों को होती हैं. लेकिन जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बात करे तो फ्रेंच कंपनी के मुकाबले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी आर्थिक रूप से ज्यादा मज़बूत थी क्योंकि वर्ष 1757 के प्लासी युद्ध के बाद ब्रिटेन को बंगाल तथा कर्नाटक क्षेत्र से काफी फायदा हो रहा था एवं जमकर राजस्व वसूली की वजह से ब्रिटेन कंपनी की दिन दुगनी रात चौगनी थी. जबकि फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की वित्तीय हालत नाज़ुक थी बावजूद लेली ने जोखिम उठाकर मद्रास में घेरा बंदी की मद्रास को बचाने के लिए ब्रिटिश कंपनी ने कलकत्ता के सेंट विलियम से कई सैन्य टुकड़ीया भेजी. जिसका सामना करने के लिए लेली बिलकुल भी तैयार नहीं था परिणास्वरूप लेली को मद्रास का घेराव उठाना पड़ा.
वेंडीवाश युद्ध 1760
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी लेली को सबक सीखाना चाहती थी. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने ऐसी योजना बनायीं की अब फ्रेंच कंपनी फिर से उठ ना पाए. 22 जनवरी 1760 में वेंडीवाश में ब्रिटेन कंपनी तथा फ्रेंच कंपनी के बिच युद्ध हुआ जिसे वेंडीवाश युद्ध के नाम से जाना जाता हैं. वेंडीवाश याने की वंदवासी. वंदवासी नाम की जगह कर्नाटक में हैं. ये जगह मद्रास से 10 किलोमीटर दूर हैं. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का नेतृत्व इस युद्ध में सर आयर्कूट के हाथ में था जबकि फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का लेली के हाथ में था. इस युद्ध में फ्रेंच कंपनी बुरी तरह परास्त हो गयी. इसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पॉन्डिचेरी भी अपने अधीन ले लिया. इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने फ्रेंच कंपनी के महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थानों को अपने नियंत्रण में ले लिया. जैसे पॉण्डीचेरी, माहे, कराइकल इसके अलावा लेली को बंदी बना लिया. फ्रेंच कंपनी अब इस लायक बिलकुल नहीं बची थी की वो फिर से खड़ी हो जाये फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी पुरी तरह भारत से ध्वस्त हो चुकी थी.
यूरोप में सेवन ईयर युद्ध की समाप्ति.
यूरोप में वर्ष 1763 में सेवन ईयर वॉर समाप्त हो चूका था तथा यूरोपियन देशो के बिच पेरिस में शांति समझौता हुआ जिसे ट्रीटी ऑफ़ पेरिस के नाम से जाना जाता हैं.
इस समझौते के अनुसार भारत में तृतीय कर्नाटक युद्ध भी समाप्त हो गया और यह तय हुआ की जिसने भी यूरोप के बाहर एक दूसरे के इलाके हड़पे हैं उसे वापस लौटा दिया जाये. इस समझौते के तहत चंद्रनगर, माहे,पॉन्डिचेरी तथा कराईकल फ्रेंच कंपनी वापस कर दिया गया. साथ ही फ्रेंच कंपनी को हिदायत दी गयी की अब से वे किसी भी किले की किलेबंदी नहीं करेंगे और नाहि वे अपनी सैन्य टुकडिया वहाँ रख सकते हैं. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी को शांति से व्यापर करने की अनुमति दी थी.
इस प्रकार कर्नाटक के तीसरे युद्ध के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत पर प्रमुख रूप से वर्चस्व स्थापित हो गया. एवं यही से भारत ब्रिटेन का एक औपनिवेशक देश के रूप में बनने की शुरुआत होती हैं. यह थी कहानी तृतीय कर्नाटक युद्ध की धन्यवाद!