चौरी चौरा

चौरी चौरा की जनता में दो बातो को लेकर विरोध

आज के आर्टिकल में हम चौरी चौरा घटना के बारे में पढ़ेंगे. चौरी चौरा घटना यह ब्रिटिश इंडिया के यूनाइटेड प्रोविंसेस में हुई थी। असल में यूनाइटेड प्रोविंसेस वह एरिया था जो आज के तारीख में उत्तर प्रदेश राज्य कहलाता है. चौरी चौरा यह गांव उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के नजदीक है। अगस्त 1920 में गांधीजी ने नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट लांच किया था. इस मूवमेंट को पूरे देश का सपोर्ट था। इसी दौरान चौरी चौरा में एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर भगवान अहीर ने 2 फरवरी 1922 को अपने कुछ साथियों के साथ बाजार में बढ़ी हुई वस्तुओ की कीमत तथा शराब बिक्री को लेकर प्रोटेस्ट शुरू कर दिया। लोकल पुलिस ने इन प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया। तथा इन प्रदर्शनकारियों को लाठियों से जमकर पीटा गया उसके बाद प्रोटेक्ट कर रहे लीडर को अरेस्ट कर दिया गया और चौरी चौरा पुलिस स्टेशन के लॉकअप में डाल दिया गया। लोगों तक यह बात जब पहुंची तो लोगों ने पीसफुल हो रहे प्रोटेस्ट पर हुए लाठीचार्ज का एतराज जताया।

पांच फ़रवरी का प्रोटेस्ट तथा शराब की दुकानों पर हल्लाबोल

4 फरवरी को चौरी चौरा के जनता ने पुलिस के विरोध में एक प्रोटेस्ट निकाला। लेकिन प्रोटेस्ट के लिए ज्यादा भीड़ उमड़ी नहीं थी इसलिए पुलिस वालों ने इस प्रोटेस्ट पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई किंतु अगले ही दिन 5 फरवरी को बहुत लोग प्रोटेस्ट में शामिल हुए. तथा सभी प्रोटेस्टर ने चौरी चौरा के बाजार की तरफ पैदल शांति मार्च निकाला. इस दिन करीब दो से ढाई हजार प्रोटेस्टर ने हिस्सा लिया था। तथा यह प्रोटेस्टर एक के बाद एक जितनी भी लिकर शॉप थी यानी कि शराब की दुकानें थी उन्हें जबरन बंद करवा रहे थे। यह देखकर पुलिस वालों ने हस्तक्षेप किया क्योंकि प्रोटेस्टर शांतिपूर्वक मार्च के नाम पर जबरदस्ती दुकाने बंद कर रही थी. पुलिस ने प्रोटेस्टर पर कार्यवाही की और जमकर लाठीचार्ज किया और उनके लीडर्स को पकड़कर पुलिस स्टेशन लेकर चले गए।

पुलिस चौकी में आग

चौरी चौरा की जनता पुलिस के इस रवैए से काफी नाराज थी। जनता ने चौरी चौरा के पुलिस स्टेशन का घेराव कर लिया तथा पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी तथा वे मांग कर रहे थे कि उनके लीडर्स को छोड़ दिया जाए। लेकिन प्रतिक्रिया में पुलिस वालों ने हवाई फायरिंग की ताकि लोग डर कर भाग जाए। लेकिन जनता पहले से ही क्रोधित थी। और गोलियों की आवाज सुनकर गुस्साई भीड़ बेकाबू हो गई। जवाब में भीड़ ने पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। स्थितियों को हाथ से निकलता देख पुलिस वालों ने 2 से 3 लोगों पर गोलियां बरसाई। पुलिस ने यह निर्णय इसलिए लिया था ताकि उन्हें लग रहा था कि भीड़ डर कर भाग जाएगी। लेकिन फायरिंग में तीन से चार लोग मर गए तथा कुछ लोग घायल हो गए। इस कार्यवाही से भीड़ और भी ज्यादा आग बबूला हो गई। और भीड़ ने आगे बढ़कर पुलिस चौकी को आग लगा दी। तथा जो पुलिस वाले खुद को बचाने के लिए इधर उधर भाग रहे थे उनको भी पकड़ कर जलती हुई चौकी में गुस्साई भीड़ द्वारा फेंक दिया गया तथा 22 से 30 पुलिस वाले जलकर मर गए। जवाब में ब्रिटिश अथॉरिटी ने चौरी चौरा में मार्शल लॉ लगा दिया।

गांधीजी ने असहकार आंदोलन पीछे लिया

गांधीजी चौरी चौरा के घटना से काफी हताश हो चुके थे और वे समझ गए कि जनता को सत्याग्रह का अर्थ नहीं समझा हैं तथा उन्होंने 5 दिन का उपवास रखा यह 5 दिन का उपवास उन्होंने इसलिए रखा था क्योंकि वह उनका प्रायश्चित था। क्योंकि उन्होंने स्वयं को चौरी चौरा का दोषी माना था. इसी के साथ 12 फरवरी 1922 को उन्होंने नॉन को ऑपरेशन मूवमेंट यानी कि असहकार आंदोलन को पीछे ले लिया। क्योंकि गांधी जी की विचार था कि उनका आंदोलन अहिंसक मार्ग से ही सफल हो सकता है और उनके आंदोलन में हिंसा की कोई जगह नहीं थी तथा चौरी चौरा घटना ने इस बात का प्रमाण दिया था कि मास मूवमेंट के लिए जनता तैयार नहीं हैं. यह थी कहानी चौरी चौरा घटना की. धन्यवाद!

This Post Has One Comment

  1. Plese provide notes of indian council acts

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