चार्टर एक्ट 1813

                        आज हम एक महत्वपूर्ण टॉपिक यानी कि चार्टर एक्ट 1813 के बारे में जानेगे जिसे ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए अगले 20 सालों के लिए पारित कराया था।  हम इस टॉपिक को 6 महत्वपूर्ण  विषयो के आधार पर  डिस्कस करेंगे। पहला मोनोपली ऑफ ट्रेड यानि एकाधिकार । दूसरा कंट्रोल ऑफ कंपनी का नियंत्रण  तीसरा एडमिनिस्ट्रेशन यानी कि प्रशासन। चौथा है सेंट्रल लेजिसलेशन। पांचवा है प्रोविंशियल लेजिसलेशन। तथा छटा है रेवेन्यू याने की राजस्व।


मोनोपली ऑफ ट्रेड

पहला है मोनोपली जैसे कि हमने पिछले आर्टिकल में पढ़ा कि ब्रिटिश की महारानी ने ईस्ट इंडिया कंपनी को वर्ष 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी को केप ऑफ गुड होप के पुरे ईस्टर्न साइड में व्यापार करने का एकाधिकार दे दिया था। ईस्ट इंडिया कंपनी के अलावा और कोई अन्य ब्रिटिश कंपनी को व्यापार करने की इजाजत नहीं थी लेकिन चार्टर एक्ट 1813 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकार को सीमित कर दिया याने की समाप्त कर दिया गया. इस चार्टर्ड के तहत ब्रिटिश ईस्ट  इंडिया का एकाधिकार केवल चाय का व्यापार तथा चाइना में एकाधिकार तक सीमित रह गई। यानी कि इस चार्टर्ड के तहत अन्य  ब्रिटिश कंपनियां या व्यापारी भारत में व्यापार करने आ सकते थे. लेकिन दो एरिया को छोड़कर, एक चाय का व्यापर तथा चाइना में व्यापर करना अन्य कम्पनियो या व्यापारियों को मनाई थी.लेकिन हमें यह जानना अति आवश्यक है कि ऐसा क्या हो गया कि 200 वर्षों की जो ट्रेड मोनोपली ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में थी उसको निरस्त कर दिया गया।

                कहानी यह है  ब्रिटेन में इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन हो चुका था 1740 में  उस  समय  ब्रिटेन वर्ल्ड का लीडिंग  ट्रेडर नेशन बन चुका था। ब्रिटेन हर जगह अपनी कंपनी खोल रही थी तथा यूरोप के  कोने कोने में अपना सामान बेच रही थी। वही नेपोलियन एक के बाद एक यूरोप के देशो को अपने अधीन  करते जा रहा था। और अब उस का टारगेट था ब्रिटेन। नेपोलियन ने ब्रिटेन को इकोनॉमिकली वीकर करने के लिए उसने एक डिक्री यानी कि एक आर्डर पास किया जिसे  कॉन्टिनेंटल ब्लॉकेड या कॉन्टिनेंट कॉन्टिनेंटल सिस्टम भी कहा जाता है. इसमें  ऑर्डर यह था कि कोई भी यूरोपियन कंपनी ब्रिटेन के साथ व्यापार नहीं करेगी ना आयात- निर्यात। यानी कि ना इंपोर्ट ना एक्सपोर्ट। बल्कि वहीं ब्रिटेन की एक्सपेंसिव ट्रेड होते थे, रशिया तथा स्पेन के साथ लेकिन नेपोलियन ने उन्हें पहले से ही अपने अधीन कर लिया था। इसलिए ब्रिटेन का अन्य यूरोपियन देशों के साथ व्यापार बंद हो गया तथा उनको काफी नुकसान उठाना पड़ा  ब्रिटेन के जो व्यापारी थे वह इस पॉलिसी से काफी निराश तथा हताश हो चुके थे। और उन्हें काफी नुकसान हो रहा था। ब्रिटेन के जो व्यापारिक संबंध थे वह नेपोलियन के कारण अन्य यूरोपियन देशों के साथ समाप्त हो गए।इसलिए उन्हें एक नए मार्केट की तलाश थी। लेकिन यूरोपियन व्यापारियों के मार्ग पर पहले से ही  काफी बाधाएं थी। क्योंकि ब्रिटेन की गवर्नमेंट ने केवल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को एकाधिकार दे रखा था। इसलिए  ब्रिटिश व्यापारी थे वह अपनी रिक्वेस्ट लेकर ब्रिटेन के राजा के पास पहुंचे। ब्रिटिश गवर्नमेंट ने उनकी बातें  काफी गंभीरता से समझी। तथा उसके बाद ब्रिटेन की गवर्नमेंट ने अपने  पॉलिसी में बदलाव लाकर। चार्टर एक्ट 1813 में ब्रिटेन के स्थानीय  व्यापारियों को भारत में व्यापार करने का की इजाजत दे दी। जिससे ब्रिटिश व्यापारी काफी खुश हो गए। क्योंकि उन्हें एक नया मार्केट मिल चुका था। यह व्यापारी अपना सामान लेकर निकल पड़े भारत में व्यापार करने के लिए। लेकिन यह बात ध्यान में रखने वाली है कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी चाय के व्यापार में तथा चाइना में  व्यापार करने के मामले में केवल ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार है। लेकिन इस फैसले का असर भारत के व्यापारियों पर बहुत ही बुरी तरीके से पड़ा  की बहुत सारे ब्रिटिश प्रोडक्ट इंडिया में आना शुरू हो गए और भारतीय प्रोडक्ट इन प्रोडक्ट के सामने फीके पड़ गए। क्योंकि यह मशीन से बने होते थे तथा इनकी कॉस्ट भी का कम थी। आज जैसे-जैसे समय बीतता गया भारत की उद्योग ं धराशाई होते गई। इसी के साथ एकाधिकार का पॉइंट यहीं पर समाप्त होता है।

कंट्रोल ऑफ कंपनी

          अब हम बात करेंगे कंट्रोल ऑफ कंपनी। कंट्रोल ऑफ कंपनी में अभी भी पॉलीटिकल पावर जो है वह बोर्ड ऑफ कंट्रोल के हाथों में है तथा। कमर्शियल पावर यानी कि व्यापारी पावर यानि  शक्तियां कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर के हाथ में है। इस मामले में कोई बदलाव नहीं किए गए।

एडमिनिस्ट्रेशन

अगर एडमिनिस्ट्रेशन की बात करें तो सब कुछ सेम। इसमें  कोई बदलाव नहीं किए गए। मुंबई प्रेसिडेंसी के तथा मद्रास प्रेसिडेंसी के जो गवर्नर है वह रिपोर्ट करेंगे गवर्नर जनरल को। तथा गवर्नर जनरल काउंसिल में 3 ही सदस्य थे मतलब कि बिलकुल वैसा ही जैसा खेलने पिट्स इंडिया एक्ट में था। हमें यह ध्यान में रखना है कि 1813 चार्टर एक्ट में एडमिनिस्ट्रेशन के मामले में कोई भी बदलाव नहीं किए गए।

सेंट्रल लेजिसलेशन

अब हम सेंट्रल लेजिस्लेशन  के बारे में जानेंगे। यहां पर भी पिट्स इंडिया एक्ट की व्यवस्था को जस  का तस  रहने दिया गया । यानी कि जो भी कानून अगर पारित करना हो तो उसका निर्णय  गवर्नर जनरल काउंसिल के द्वारा किया  किया जाएगा। तथा अब भी  गवर्नर जनरल के हाथ में वीटो पावर थी।
इसके अलावा प्रोविंशियल लेजिस्लेशन में  भी कोई बदलाव नहीं किए गए। सब कुछ वैसा ही जैसा हमने पिट्स इंडिया एक्ट में डिस्कस किया था।

रेवेन्यू

अब बात आती है  रेवेन्यू याने  की राजस्व की। इसके पहले जो भी राजस्व इकट्ठा होता था याने कि व्यापार से। नमक टैक्स फिर भूमि के राजस्व से। इन सब स्रोतों से इकट्ठा हो रहा राजस्व एक ही जगह जुड़ा था। लेकिन इस एक्ट में  में जो रेवेन्यू को है उसे सेपरेट कर दिया गया। मतलब कमर्शियल गतिविधियों से मिलने वाला जो राजस्व है वह अलग जोड़ा गया। ब्रिटिश पजेशन से जो टैक्स कलेक्ट हो रहा था वह अलग जोड़ा जा रहा था।  यानी कि चार्टर एक्ट  1813  में कुछ मुद्दों में बदलाव किए गए तथा कुछ मुद्दों में बदलाव नहीं किए गए।

इन मुद्दों के अलावा। चार्टर एक्ट 1813 में कुछ अन्य बदलाव किए गए। 1813 चार्टर  एक्ट के तहत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सालाना ₹100000 RS इंडियन के एजुकेशन के लिए खर्चा करना अनिवार्य कर दिया गया। भारतीय लोगों के लिए स्कूल बनाए गए। अच्छे टीचर नियुक्त किये  गए ।

इस एक्ट में एक और बदलाव किया गया  वह  था सुप्रीम के सन्दर्भ  में, एक्ट में  कोर्ट को  ज्यादा पावर दी गई। इस एक्ट के तहत पहले केवल भारतीय लोगो को कोर्ट के दायरे में लाया गया था  लेकिन अब जो यूरोपियन है वह भी कोर्ट के दायरे में आ गए।

तथा इसी एक्ट के तहत। क्रिश्चियन मिशनरी को धर्म का प्रचार करने के लिए भारत में इजाजत दी गई। यह कहानी थी चार्टर एक्ट 1813 की.  धन्यवाद.

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