चम्पारण सत्याग्रह

चम्पारण सत्याग्रह की पृष्ठभूमि.

आज के आर्टिकल में हम चम्पारण सत्याग्रह के बारे में जानकारी हासिल करेंगे. बात 1715 की है जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में एक केवल ट्रेडिंग कंपनी थी और उस समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में पहली बार इंडिगो की पैदावार शुरू की। यह पैदावार बिहार बंगाल और बराड़ में किया जा रहा था। आज के ईस्टर्न महाराष्ट्र को उस समय बराड़ कहा जाता था. जबकि आज के उत्तर प्रदेश को अवध कहा जाता था। असल में इंडिगो कुछ नहीं तो निल हैं. उस समय निल को नैचरल डाई की रूप में प्रयोग किया जाता था. इसलिए ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीय किसानों से इंडिगो की खेती करवाती थी. तथा उस इंडिगो को अमेरिका चाइना और अन्य देशों के बाजार में बेच दिया करती थी। हालांकि भारतीय किसान इंडिगो की खेती करने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं थे क्योंकि समस्या यह थी की इंडिगो प्लांटेशन के लिए अन्य फसल की तुलना में ज्यादा पानी देना पड़ता था इसके अलावा इंडिगो प्लांटेशन में जमीन की उपजाऊ क्षमता भी कम हो जाती थी। इसलिए ब्रिटिश व्यापारी तथा इंडियन फार्मर के बीच एक एग्रीमेंट हुआ। जिसे तीन कठिया सिस्टम या तीन कठिया प्रथा के भी नाम से जाना जाता हैं.

तीनकठिया का मतलब.

यह जो शब्द है तीनकठिया 2 शब्दों से बना हैं. तीन और कट्ठा. कट्ठा यह लैंड मेजरमेंट की पुरानी मेथड हैं. जैसे कि मीटर, स्क्वेयर मीटर, स्क्वेयर फिट, एकड़ इस तरह से. असल में एक बीघा 20 कट्ठे के बराबर होता था ।

एग्रीमेंट यह हुआ था कि प्रत्येक किसान को एक बीघे के तीन कट्ठे हिस्से में इंडिगो उगाना पड़ेगा। कहने का मतलब फार्मर को अपने तीन बटे बिस भाग में इंडिगो उगाना पड़ता था और बाकी जमीन में वह अपने मन से कोई भी फसल उगा सकता था। ब्रिटिश व्यापारी इंडिगो फसल उगाने के बदले में अच्छी खासी रकम किसानों को चुकाते भी थे। लेकिन यह प्रश्न उठता है कि अच्छी खासी रकम मिलने के बावजूद तथा म्यूचल एग्रीमेंट होने के बावजूद किसानों में असंतोष की भावना क्यों उमड़ रही थी? कारण था जर्मन डाई

जर्मन डाई की खोज

असल में वर्ष 1915 में जर्मन ने एक आर्टिफिशियल डाई इन्वेन्ट कर ली। तथा यह आर्टिफिशियल डाई, ऑर्गेनिक डाई जो की भारत में उत्पादित होती थी उसके तुलना में काफी सस्ती थी। परिणाम स्वरूप भारत में जो ऑर्गेनिक डाई उत्पादित हो रही थी उसकी मांग पूरी तरह कम हो चुकी थी। इसके विपरीत जर्मन डाई की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रही थी। जिस वजह से ब्रिटिश व्यापारी जो भारतीय किसानों से इंडिगो उगाते थे उन्होंने किसानों को अग्रिम राशि नहीं दी. एडवांस राशि यानी की अग्रिम राशि न मिलने के कारण भारतीय किसानों ने इंडिगो उगाना बंद कर दिया और उसके जगह अन्य फसल उगाना शुरू कर दी यानी कि 3 बटे 20 जमीं पर भी किसानों ने इंडिगो की जगह अन्य फसल उगाना शुरू कर दी.

इंडिगो उगाने के लिए अंग्रेज व्यापारियों की जबरदस्ती.

1915 आते-आते चीजें बदल चुकी थी तथा उस समय भारत की सत्ता अंग्रेजों के हाथ में थी जिस वजह से ब्रिटिश व्यापारियों के हाथ में पॉलिटिकल सपोर्ट तथा पुलिस भी उनके हाथ में थी. और ब्रिटिश व्यापारियों ने बिना किसी भय के किसानों के ऊपर अत्याचार करना शुरू कर दिया और किसानों के ऊपर जबरदस्ती थोप रहे थे कि वे इंडिगो की खेती जारी रखें और 1915 के बाद से अंग्रेज व्यापारी इंडिगो की खेती के बदले में थोड़ा बहुत पैसा किसानों को अग्रिम राशि के रूप में देते थे और कभी कभी तो देते भी नहीं थे.

गांधीजी का आगमन

गांधीजी जनवरी 1915 में भारत आते हैं और साबरमती में उन्होंने अपना आश्रम बनाया था तथा साल 1917 में बिहार के एक छोटे से गांव चंपारण से रामप्रसाद शुक्ल नाम के व्यक्ति गांधीजी से मिलने साबरमती में आते हैं तथा चम्पारण के तीन कठिया प्रथा से गांधीजी को अवगत कराकर प्रार्थना करते हैं की कृपया चम्पारण के किसानो को अंग्रेज व्यापारी के जुल्म से मुक्ति दिलाये. गांधीजी चंपारण की ओर निकल पड़ते हैं तथा गांधी जी के साथ कुछ सहयोगी भी होते हैं जो वकील थे उनके नाम थे राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिन्हा, बापू राजकिशोर प्रसाद.

गांधीजी का चम्पारण में आगमन.

गांधी जी 10 अप्रैल 1917 को चंपारण में पहुंचते हैं तथा वहां चलकर अपने सहयोगियों के साथ स्थितियों का जायजा लेते हैं और वहां पर उन्होंने लांच किया सिगनेचर कैंपेन। गांधीजी तथा उनके सहयोगियों ने गांव में सर्वे किया। तथा इस सर्वे के माध्यम से चंपारण के निवासियों की दशा तथा उन्हें तीन कठिया पद्धत से क्या नुकसान हो रहा है इसका जायजा लिया। प्रत्येक फैमिली के पास कितनी जमीन है और वे क्या उगाते हैं इस सब का भी जायजा लिया तथा उनकी इनकम क्या है यह चीज़ में सर्वे में नोट की. इन सब चीज़ो को सर्वे में विस्तार पूर्वक लिखा गया। तथा उस सर्वे में किसानों की सिग्नेचर और अंगूठे के निशान लिए। जब अंग्रेजों को यह बात पता चली तो चंपारण के अथॉरिटी ने उन्हें अनरेस्ट फैलाने के जुर्म में कैद कर लिया।

चम्पारण सत्याग्रह के दौरान गांधीजी की कोर्ट में पेशी

18 अप्रैल 1917 को गांधीजी को मोतिहारी कोर्ट के मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया उस कोर्ट में 2000 चम्पारण निवासी भी मौजूद थे। पूरा कोर्टरूम खचाखच भरा हुआ था। ज्यादा संख्या में लोग उपस्थित होने के कारण कोर्ट के बाहर भी लोगों का हुजूम था। जब मैजिस्ट्रेट ने गांधीजी से पूछा क्या आप अपने डिफेंस के पक्ष में कुछ कहना चाहते हो? गांधीजी का जवाब सुनकर मैजिस्ट्रेट हक्का-बक्का हो गया। गांधीजी ने पूरे विनम्रता से खुद को दोषी मान लिया। लेकिन जब बिहार के लेफ्टिनेंट गवर्नर को चंपारण की पूरी बातें पता चली तो उसने गांधीजी को छोड़ने के आदेश दिए इसके अलावा कलेक्टर ने गांधीजी को सर्वे जारी रखने की इजाजत दे दी। इसके बाद गांधीजी तथा उनके सहयोगी सर्वे करने के लिए एक बार फिर जुट गए और करीब 4000 फाइल गांधीजी ने ब्रिटिश अथॉरिटी के सामने रख दी। ब्रिटिश अथॉरिटी को गांधीजी के सर्वे के प्रमाण काफी जेन्युइन लगे। उन्होंने समझा कि गांधीजी के तरफ से यह एक जेनुइन रिक्वेस्ट है किस चंपारण के निवासियों के स्थितियों को इंप्रूव करना चाहिए. इसके अलावा एक खास बात यह थी कि गांधीजी के नेतृत्व में कोई हिंसा भी नहीं हुई थी। ब्रिटिश अथॉरिटी गांधीजी के इस कार्य से काफी इंप्रेस थी और उन्होंने निर्णय लिया कि गांधीजी के मांग को मान लिया जाए।

चम्पारण सत्याग्रह का परिणाम – इंडिगो कमीशन की स्थापना.

अथॉरिटी ने इस समस्या को निपटाने का निर्णय लिया और एक कमीशन की नियुक्ति की जिसमें 3 सदस्य थे और इन तीन सदस्यों में एक सदस्य स्वयं गांधीजी थे इंडिगो कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर 4 मार्च 1918 को बिहार और उड़ीसा के लेजिसलेटिव असेंबली में चंपारण एग्रेरियन एक्ट पास किया गया और इस एक्ट के तहत तीन कठिया प्रथा को बंद कर दिया गया। इसके अलावा किसानों को मुआवजा भी दिया गया। और इसके बाद से इतिहासकारो के मुताबिक गाँधी युग की शुरुआत हो जाती है। यह थी चम्पारण सत्याग्रह की कहानी धन्यवाद.

This Post Has 4 Comments

  1. Can i get notes in English

  2. Can you please provide the notes in English also

  3. Sir, please publish notes of Nationalism in India of CBSE class 10

Leave a Reply

Close Menu