आज के आर्टिकल में हम खिलाफत आंदोलन के बारे में चर्चा करेंगे। नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट समझने के पहले खिलाफत मूवमेंट समझना जरूरी है।
प्रथम विश्व युद्ध में अलाइड पावर की जीत
28 जुलाई 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था। तथा इस युद्ध में आमने-सामने थे सेंट्रल पावर तथा अलाइड पावर. अलाइड पावर मतलब ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, रूस और इटली. दूसरी तरफ सेंट्रल पावर में थी जर्मनी ऑस्ट्रिया बुल्गेरिया हंगरी, एवं ऑटोमन एंपायर। यहां पर हमें ऑटोमन एंपायर के बारे में समझना जरूरी है। असल में कुछ तुर्किश के ट्राइब ने मिलकर 1299 में ऑटोमन एंपायर की स्थापना की । एक समय यह बहुत ही शक्तिशाली एंपायर था। ऑटोमन एंपायर के जो प्रमुख है उन्हें खलीफा माना जाता था. और पूरे दुनिया के मुसलमान इन्हें अपना स्पिरिचुअल लीडर यानी धर्म गुरु मानते थे. क्योंकि यह मान्यता थी कि वे प्रोफेट मोहम्मद के उत्तराधिकारी थे.
जब प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ,तो युद्ध 1914 से 4 साल बाद 1918 में समाप्त हो गया था। यहां पर सेंट्रल पावर की हार हुई थी। इसी समय हारी हुई देशों के साथ पीस ट्रीटी साइन का दौर शुरू हुआ तथा जर्मनी पर हार्श रेस्ट्रिक्शन लगाए गए थे.
ऑटोमन एम्पायर तथा अलाइड पावर के बीच ट्रीटी.
ऑटोमन एम्पायर के साथ ट्रीटी ऑफ़ सेर्वेन साइन की गयी. इसके अनुसार पेलिस्टिन सीरिया लेबनान इराक और इजिप्त को अलाइड पावर अपने कब्जे में लेने वाले थे।
लेकिन इस स्थल पर बहुत सारी इस्लामिक पवित्र स्थल थे जैसे की मस्जिद, दरगाह और अगर इस ट्रीटी को साइन किया जाता है तो इन स्थलों पर नियंत्रण अलाइड पावर का हो जाएगा। एवं खलीफा इन पवित्र स्थलों से नियंत्रण समाप्त हो जायेगा इसलिए पूरे दुनिया के मुसलमान नाराज थे क्योंकि उनको अपने धार्मिक स्थल की चिंता थी।
भारत में ट्रीटी के खिलाफ प्रतिक्रिया
ब्रिटेन समेत एलाइड पावर के इस निर्णय से भारत के मुसलमान भी नाराज हो गए एवं इसके विरोध में ऑल इंडिया खिलाफत कमेटी की स्थापना की गई जिसके अध्यक्ष गांधीजी थे. खिलाफत कमेटी के स्थापना के पीछे अली बंधुओं का हाथ था. खिलाफत कमेटी के अध्यक्ष के रूप में गांधीजी को चुना गया और दिल्ली में सभा बुलायी गयी तथा यहां पर निर्णय लिया गया की अंग्रेजों के विदेशी वस्तु पर बॉयकॉट करेंगे एवं ब्रिटिश सरकार को किसी भी तरह का कोई को -ऑपरेशन नहीं दिया जाएगा। खिलाफत मूवमेंट अपने जोरों पर था और भारतीयों ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया लेकिन इसके बावजूद अलाइड पावर जिसमें ब्रिटेन भी शामिल था उन्होंने ऑटोमन एंपायर के साथ ट्रीटी ऑफ सेर्वेस साइन कर ही दी।
ऑटोमन एंपायर का विभाजित
इस तरह ऑटोमन एंपायर को विभाजित कर दिया गया था और खलीफा केवल तुर्की के सुल्तान रह गए थे। विभाजन के पहले तुर्की बहुत ही विस्तीर्ण प्रदेश था लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ट्रीटि ऑफ सेवरेस साइन करने के बाद इसे कई प्रदेशों में बांट दिया गया। इसका मतलब ऑटोमन एंपायर के सुल्तान के बाद पहले के तुलना के मुकाबले काफी कम प्रदेश बचा हुआ था और बहुत से मुस्लिम के पवित्र स्थान दूसरे प्रदेशों में जा चुके थे और उन पवित्र स्थानों का नियंत्रण अलाइड पावर के हाथ में चला गया था। यह थी खिलाफत आंदोलन की कहानी. धन्यवाद!