अहमदाबाद मिल स्ट्राइक 1918

अहमदाबाद मिल स्ट्राइक एवं प्लेग बोनस की मांग.

आज के आर्टिकल में हम अहमदाबाद मिल स्ट्राइक के बारे में पढ़ेंगे. बात वर्ष 1918 की है जब अहमदाबाद शहर बॉम्बे प्रेसीडेंसी का दूसरा सबसे बड़ा शहर था। तथा ब्रिटिशर्स के राज में यहां पर कॉटन इंडस्ट्रीज काफी फलीफूली. इस तरह अहमदाबाद में एक इंडस्ट्रियल टाउन कहलाने लगा. अगस्त 1917 में तीव्रता से अहमदाबाद में प्लेग फ़ैल चुका था। जिसकी वजह से अहमदाबाद की 10% जनसंख्या खत्म हो चुकी थी। तो ऐसे में टेक्सटाइल वर्कर की दिक्कत यह थी की वर्कर्स लगातार कम हो रहे थे, एक तरफ लोग मर रहे थे, और दूसरी जगह बहुत सारे लोग बीमार हो रहे थे। और अहमदाबाद में प्लेग फैलने के कारण बहुत से लोग अहमदाबाद से पलायन कर रहे थे। इसलिए टेक्सटाइल के जो मालिक थे उन्होंने वर्कर को रोकने के लिए प्लेग बोनस देना शुरू किया। किसी किसी टैक्सटाइल मिल में यह बोनस वर्कर के सैलरी के 80% होता था। किंतु जनवरी 1918 में प्लेग बीमारी अहमदाबाद से खत्म हो चुकी थी परिणामस्वरूप टेक्सटाइल मिल के मालिकों ने प्लेग बोनस देना बंद कर दिया। इस कदम से जो टेक्सटाइल के वर्कर थे नाराज हो गए और टेक्सटाइल के मालिक तथा वर्कर आमने-सामने हो गए।

महंगाई से लड़ने के लिए बोनस की मांग.

वर्कर्स ने कहा कि ठीक है आप प्लेग बोनस मत दो। किंतु इन्फ्लेशन तो देखो यानी कि महंगाई का दर तो देखो। असल में जुलाई 1914 से दुनिया में पहला विश्व युद्ध चल रहा था तो उस समय महंगाई का दर काफी अधिक था। इस स्थिति में वर्कर की मांग थी कि उन्हें महंगाई का सामना करने के लिए कम से कम 50% बोनस मिलता रहना चाहिए चाहे उसे दूसरा नाम दे दो या तो महंगाई भत्ते के रूप में दे दो या फिर कॉस्ट ऑफ लिविंग के नाम पर दे दो। जवाब में मिल मालिकों ने वेतन का 20% बोनस देने की बात कही। लेकिन वर्कर 50% कम बोनस से बिल्कुल भी राजी नहीं थे. मिल मालिकों ने वर्कर की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। जवाब में कुछ वर्कर ने हड़ताल कर दी। ऐसे वक्त मिल मालिकों ने इसका रास्ता ढूंढा उन्होंने मुंबई से वर्कर को रिक्रूट करना शुरू कर दिया।

अनुसया साराबाई ने लिया गांधीजी का सहारा

इससे वर्कर चिंतित हो गए और अनुसया साराबाई से जाकर मिले। अनुसया सराबाई मिल यूनियन एसोसिएशन के अध्यक्ष अंबालाल साराभाई की बहन थी. अनुसया साराबाई ने स्थिति का जायजा लेते हुए यह देखा कि यह मामला काफी पेचीदा है तथा इसका हल केवल गांधीजी निकाल सकते हैं. वैसे भी चाहे मिल वर्कर हो या मिल ओनर सभी लोग गांधीजी की काफी इज्जत करते थे इसलिए अनुसया साराबाई गांधीजी से के पास गयी. गांधीजी अहमदाबाद में आए और उन्हें ट्रिब्यूनल बनाया जिसमें दोनों पक्ष के प्रत्येक तीन रिप्रेजेंटेटिव याने की प्रतिनिधि रखे गए ताकि बातचीत के जरिए मामला सुलझाया जा सके. लेकिन बातचीत कुछ ठीक ढंग से हो नहीं पाई। फिर 22 फरवरी 1918 को मिल ओनर ने कहा ट्रिब्यूनल वगैरे छोडो हमारा प्रस्ताव ये हैं की 20 प्रतिशत सैलरी हाईक देने को तैयार हैं और जिसे समस्या हैं वे नौकरी छोड़ दे.

गांधीजी न की केस स्टडी एवं लिया हड़ताल का निर्णय

गांधीजी ने मामला अपने हाथ में लेते हुए वर्कर से कहा कि देखो जरा धैर्य रखो यह मामला आर्थिक न्याय याने इकोनामिक जस्टिस का है और ये जस्टिस मिलने में समय लगेगा लेकिन हम ईसे जरूर हासिल करेंगे. इसके बाद गांधीजी ने अपने सहयोगीयो की मदद से केस स्टडी की उन्होंने पहले टैक्सटाइल इंडस्ट्री की क्या स्थिति है इसका जायजा लिया दूसरा उन्होंने यह देखा कि मुंबई टैक्सटाइल इंडस्ट्री में मजदूरों को कितना वेतन दिया जाता है इसका पता लगाया। तथा द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने के कारण अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर हो रहा है, इसका भी जायजा गांधीजी ने लिया। साथ ही साथ गांधीजी ने वर्कर की लिविंग कंडीशन का भी जायजा लिया और पूरी स्टडी करने के बाद वे एक नतीजे पर पहुंचे अहमदाबाद वर्कर को कम से कम 35% वृद्धि मिलनी चाहिए. बावजूद अहमदाबाद के मिल ओनर 35% वृद्धि देने के लिए बिल्कुल भी राजी नहीं हुए जवाब में गांधीजी ने मिल वर्कर को अनुरोध किया की अब से कोई भी वर्कर काम करने मिल में नहीं जायेगा और उन्होंने हड़ताल करने का फैसला लिया.

मजदूरों का कुछ दिनों बाद अहमदाबाद मिल स्ट्राइक से किनारा.

मिल वर्कर गांधीजी की बात स्वीकार करते हुए काम पर जाना छोड़ दिया एवं हड़ताल में भाग लिया वर्कर को गांधीजी के ऊपर पूरा भरोसा था और उन्हें लगता था कि गांधीजी उनको न्याय जरूर दिलाएंगे। दिन प्रतिदिन गुजर रहे थे लेकिन मिल वर्कर गांधीजी के मांग के आगे बिल्कुल भी झुक नहीं रहे थे. उसमें से कुछ वर्कर काफी गरीब थे इसलिए कुछ वर्कर स्ट्राइक में जाना छोड़ मिल में काम करने जाने लगे क्योंकि वे अपनी रोजमर्रा की जरुरत पूरी नहीं कर पा रहे थे. और उन्होंने वर्कर का 20 प्रतिशत के प्रस्ताव का स्वीकार कर लिया.

गांधीजी की भूख हड़ताल एवं वर्कर को दिलाया न्याय

देखते ही देखते गांधीजी के पीछे खड़ी भीड़ कम होने लगी। जैसे-जैसे भीड़ कम हो रही थी तो गांधीजी के लिए यह इशारा था की आप जिस मुद्दे के लिए लड़ रहे हो पब्लिक उससे समझौता करने के लिए तैयार है, तो बेहतर है कि लीडर ने भी पैर पीछे लेना चाहिए। ऐसे समय भी गांधीजी बिल्कुल भी नहीं लड़खड़ाए और उन्होंने ठान लिया था कि वर्कर को 35% वृद्धि दिला कर रहूंगा चाहे जान ही क्यों न चली जाए इसलिए उन्होंने भूख हड़ताल कर दी। और यह भूख हड़ताल उन्होंने मिल मालिकों के लिए नहीं रखी बल्कि उन वर्कर के लिए रखी थी जो समझौता कर चुके थे क्योंकि वे चाहते थे कि जितने भी वर्कर हड़ताल छोड़कर वापस चले गए हैं और समझौता कर लिया है। उन्होंने वापस आकर हड़ताल को सफल बनाने के लिए अपना योगदान देना चाहिए। भूख हड़ताल उन्होंने इसलिए रखी थी ताकि वर्कर यूनिटी दिखाएं और हो रहे अन्याय के खिलाफ मिल जुलकर धैर्य से लड़े. वर्कर का इस पर तुरंत असर पड़ा और वे पुनः हड़ताल में शामिल हो गए। गांधीजी की भूख हड़ताल 3 दिन तक चली और मिल मालिकों को यह बात महसूस हो गई कि अगर मिल सफलतापूर्वक चलानी है तो गांधीजी की शर्तों को मानना ही होगा और इस तरह से मिल मालिकों ने गांधीजी की मांगों को मान लिया। और अंत में मिल मालिकों ने वर्कर को 35% वृद्धि को मानते हुए फिर से अपने मील में वर्कर्स को वापस ले लिया। यह कहानी थी अहमदाबाद मिल स्ट्राइक की धन्यवाद!

This Post Has One Comment

  1. May I get the notes in English?

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