असहयोग आन्दोलन

इस आर्टिकल में हम असहयोग आन्दोलन के बारे में जानेंगे। खिलाफत मूवमेंट के दौरान गांधीजी ने सोचा कि मुस्लिम समुदाय पहले से ही अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा संभाले हैं और इस दौरान देश भी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दे तो ऐसा पहली बार होगा कि हिंदू तथा मुस्लिम मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ मिलकर लड़ रहे हैं। और अगर ऐसा हो गया तो ब्रिटिशर भारत में ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएंगे. इस तरह ब्रिटिशर्स को घुटने टेकने में मजबूर किया जा सकता है एवं देश को ब्रिटिश के चंगुल से आजाद कराया जा सकता है और रौलट एक्ट तथा जालियांवाला बाग में जो हिंसा फैलाई गई थी उसका भी जवाब दिया जा सकता है। गांधीजी ने भारतीयों को समझाया कि अगर खिलाफत मूवमेंट के साथ असहयोग आन्दोलन चलाया गया तो वे भारत को 1 साल में आजादी दिला सकते हैं।

नॉन को ऑपरेशन मूवमेंट की शुरुआत.

गांधीजी ने 1 अगस्त 1920 को असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया। देश भी उनके साथ खड़ा हो गया। अब समझने वाली बात यह है कि असहयोग आन्दोलन में आखिर करना क्या था?

असहयोग आन्दोलन के दौरान अंग्रेजों के शिक्षण व्यवस्था, सुप्रीम कोर्ट, सरकारी प्रशासन व्यवस्था का बॉयकॉट करना था। विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करना था और खादी के कपड़ों का स्वीकार करना था। इसके अलावा अंग्रेज सरकार ने जिनको अवार्ड या टाइटल दिये हैं उसका भी त्याग करना था।

कांग्रेस पार्टी के प्रोटेस्ट करने के तरीके में बदलाव

दिसंबर 1920 में कांग्रेस ने भी नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट में मुहर लगा दी यानी कांग्रेस पार्टी की नेता गांधीजी के आंदोलन को समर्थन देने के लिए तैयार हो गए। साथ ही कांग्रेस ने अपने लक्ष्य में बदलाव लाया और सेल्फ गवर्नमेंट को पाने के तरीके को बदल दिया गया. अब जो है, एक्स्ट्रा कांस्टीट्यूशनल मास स्ट्रगल के जरिये सेल्फ गवर्नमेंट की एवं अपने लक्ष्यों की पूर्ति करना था. गांधी जी के आने के बाद कांग्रेस के कैरेक्टर में यह बड़ा बदलाव लाया गया इसका मतलब कांग्रेस कॉन्स्टिट्यूशनल रिफार्म के के बारे में नहीं सोच रही है बल्कि वह मासेस को प्रभावित करके बड़े पैमाने में आज़ादी चाहती थी. लेकिन कई सारे कांग्रेस नेता इस तरीके से खुश नहीं थे. जिन्ना, बिपिन चंद्र पाल, एनी बेसेंट ने कांग्रेस के इस कदम से कांग्रेस छोड़ दी लेकिन इनके जाने से पार्टी को कुछ फर्क तो नहीं पड़ा लेकिन मूवमेंट का लोगो का बड़ा प्रतिसाद मिला.

विद्यापीठों की स्थापना

बच्चों ने गवर्नमेंट स्कूल कॉलेजेस तो छोड़ दिए थे. वे सब इन मामले में पहली आगे रहते थे जहां मूवमेंट शुरू हुआ नहीं इन्होंने स्कूल छोड़ें। इसलिए नेशनल लीडर ने कहा कि इनकी पढ़ाई नहीं छूटना चाहिए, गवर्नमेंट स्कूल नहीं है लेकिन क्या हम नेशनल स्कूल और कॉलेज इज खोल सकते हैं? तो बहुत सारे नेशनल लीडर ने कॉलेजेस एवं स्कूल चलाये. इसके अलावा बड़े-बड़े लॉयर ने अपनी लॉ प्रैक्टिस छोड़ दी थी। इस समय जो मुख्य कॉलेज खोले गए थे वह थे गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, तिलक विद्यापीठ पुणे, काशी विद्यापीठ, बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी खोली गयी

दिग्गजों ने अपनी लॉ प्रैक्टिस छोड़ी थी उनमें थे पंडित जवाहरलाल नेहरू, उनके पिताजी, मोतीलाल नेहरू, सी आर दास, वल्लभभाई पटेल एवं राजेंद्र प्रसाद।

अंग्रेजो की प्रतिक्रिया

गवर्नमेंट आंदोलन कर्ताओं पर टूट पड़ी थी और हिंसक हो गई थी। पब्लिक मीटिंग बंद कर दी गई थी प्रेस में ताले लगा दिए थे। गांधीजी को छोड़कर बाकी सभी लीडर्स को जेल में डाल दिया गया। कॉन्ग्रेस गांधीजी पर दबाव डाल रही थी कि आप तो जेल के बाहर हो तो आप सिविल डिसऑबेडिएंस शुरू कर दो।

दबाव के चलते गांधीजी ने 1 फरवरी 1922 से बारडोली में सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट शुरू करने का फैसला लिया। गांधीजी के ऐलान किये केवल 4 ही दिन हुए थे कि 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा की घटना घटी जहां गुस्साई भीड़ ने 22 पुलिसवालों को जिंदा जला दिया था।

असल में चौरी चौरा गोरखपुर के निकट एक छोटा सा गांव है यहां पर नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट के दौरान निहत्थे वालंटियर ग्रुप पर पुलिस वालों ने लाठीचार्ज कर दिया था शांति से चल रहा प्रोटेस्ट अब पुलिस द्वारा हिंसक हो गया था इसके जवाब में गुस्साई भीड़ ने पुलिस थाने में आग लगा दी जिसमें 22 पुलिस वालों की दर्दनाक मौत हो गई।

गांधीजी ने आंदोलन वापस लिया

गांधीजी को जब इस घटना का पता चला तो वे समझ गए की लोगो को सत्याग्रह का अर्थ अभी नहीं समझा हैं और लोग अहिंसक तत्वों पर चलने के लिए तैयार नहीं हैं. गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया आंदोलन को जब पीछे ले लिया गया तब लोग इस कदम से खफा हो गए. कांग्रेस के बड़े नेता भी इस निर्णय से नाराज़ थे लेकिन फिर भी गांधीजी अपनी बात पर अड़े रहे और असहयोग आन्दोलन समाप्त हो गया. और गांधीजी को देशद्रोह के चलते 6 वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया.

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