आज के आर्टिकल में हम अगस्त प्रस्ताव 1940 के बारे में पढ़ेंगे. पिछले आर्टिकल में हमने पढ़ा था की कांग्रेस के मंत्रियो ने गुस्से में आकर इस्तीफा दे दिया था एवं उनका गुस्सा इस बात पर था की लार्ड लिनलिथगो ने सितम्बर 1939 में बिना किसी भारतीय राजनैतिक पार्टियों को बिना पूछे भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में ढकेल दिया था.
कांग्रेस का प्रस्ताव
मार्च 1940 में कोंग्रस का एक अधिवेशन बिहार के रामगढ में होता हैं एवं उस अधिवेशन में नेताओ ने कहा की, मिनिस्ट्री से हमने इस्तीफा दे दिया हैं किन्तु किसी ने सोचा की आगे क्या करना हैं? इस मुद्दे पर जोरदार चर्चा हुयी उसके बाद एक प्रस्ताव पारित किया गया की हम सब ब्रिटिश सरकार के पास मांग रखते हैं की कांग्रेस द्वितीय विश्व युद्ध में कुछ कंडीशन के बदले युद्ध में समर्थन दे सकती हैं यदि अंग्रेज सरकार केंद्र याने सेंट्रल में एक प्रोविजनल सरकार बनाने का भारतीयों को मौका देती हैं. क्योकिं 1937 में केवल प्रॉविन्सेस में याने प्रान्त में सरकार भारतीयों प्रतिनिधियों ने बनायीं थी लेकिन केंद्र में नहीं.
लार्ड लिनलिथगो का अगस्त प्रस्ताव
लार्ड लिनलिथगो ने जवाब में एक प्रस्ताव रखा इसी प्रस्ताव को अगस्त ऑफर कहा जाता हैं. यह वाइट पेपर के रूप में जारी किया गया था. इस अगस्त ऑफर के पीछे लार्ड लिनलिथगो की मंशा थी की अगर भारतीय राजनैतिक पार्टिया इन प्रस्तावों को मान लेती हैं तो द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन को भारतीयों का पूरा समर्थन मिल सकता हैं. अगर अन्य पार्टी की बात की जाये तो मुस्लिम लीग का ब्रिटेन को युद्ध के लिए तगड़ा समर्थन था. अगर कांग्रेस पार्टी भी ब्रिटिशर्स की मदत कर देती हैं तब ज्यादा भारतीय नौजवान सेना में शामिल होंगे इसका यह असर होगा की ब्रिटेन को युद्ध जितने में मदत हो जाएगी. लेकिन कांग्रेस, मुस्लिम लीग एवं अन्य पार्टियों ने सरकार के अगस्त प्रस्ताव का समर्थन किया भी या नहीं यह जानने से पहले अगस्त प्रस्ताव की महत्वपूर्ण बिदुओ पर गौर करते हैं.
अगस्त प्रस्ताव की शर्ते एवं प्रोविजन.
अगस्त ऑफर का पहला प्रस्ताव सविंधान सभा के स्थापना के बारे में था याने कोंस्टीटूऐंस असेंबली के बारे में. कांग्रेस काफी समय से सविंधान सभा की मांग कर रही थी अगस्त ऑफर में इसे मान लिया गया. इस प्रस्ताव में वादा किया गया की सविंधान सभा की स्थापना की जाएगी जो भारत का सविंधान बनाएगी. खासतौर पर सरकार ने माना की भारत का सविंधान भारतीयों द्वारा बनाया जायेगा. और ब्रिटेन डोमिनियन स्टेटस देने को राजी थी
अगस्त ऑफर का दूसरा ऑफर वोइसरॉय की एग्जीक्यूटिव कौंसिल को लेकर जिसके अनुसार वोइसरॉय की एग्जीक्यूटिव कौंसिल को एक्सटेंड किया जायेगा और पहली बार यहाँ ब्रिटिशर्स से ज्यादा भारतीयों की संख्या होंगी.
अगस्त ऑफर का तीसरा मुद्दा वॉर एडवाइजरी कौंसिल के स्थापना को लेकर था इसके अनुसार एक वॉर एडवाइजरी कौंसिल स्थापित की जाएगी. जिसमें बिटिशर्स के अलावा भारतीय प्रतनिधयो को शामिल किया जायेगा.
चौथा प्रस्ताव वीटो पावर माइनॉरिटी से संबधित था. यहाँ पर स्पष्ट किया गया जब सविंधान सभा सविधान का ड्राफ्ट बनाएगी तब एक ऐसे संवैधानिक प्रोविजन को स्वीकार नहीं किया जायेगा जिस पर अल्पसंख्यक समुदाय सहमत नहीं हैं. याने इन समुदाय की राय को समझा जायेगा. इसका मतलब समुदाय को वीटो पावर मिल गयी थी.
राजनैतिक पार्टियों की अगस्त प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया.
मुस्लिम लीग को अगस्त ऑफर के ज्यादातर क्लॉज़ अच्छे लग रहे थे क्योंकि इसमें माइनॉरिटी को वीटो पावर देदी गयी थी यानि प्रत्तेक कोंस्टीटूशनल प्रोविजन थे.लेकिन मुस्लिम लीग को वोइसरॉय के एग्जीक्यूटिव कौंसिल को लेकर शिकायते थी लेकिन इन्हे अगस्त प्रस्ताव अच्छा लगा था.
लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अगस्त प्रस्ताव को नकार दिया.उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष अबुल कलाम आज़ाद ने लार्ड लिनलिथगो के साथ इस प्रस्ताव पर बातचीत करने से भी मना कर दिया इसका मुख्य कारण था की कांग्रेस ने 1929 लाहौर सेशन में टोटल इंडिपेंडेंस यानि पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य रखा था और वहाँ इस लक्ष्य को पारित भी किया था लेकिन प्रस्ताव में डोमिनियन स्टेटस की बात कही गयी थी यह बात कांग्रेस को किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं थी क्योंकि कांग्रेस की डोमिनियन स्टेटस की मांग 1929 से पूर्ण स्वराज्य में बदल चुकी थी.
इसके अलावा अगस्त प्रस्ताव की दी गयी बाते द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद पूर्ण की जानी थी और वो भी तभी जब भारत की सारी राजनैतिक पार्टिया द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों नौजवानो को शामिल होने का समर्थन करे एवं भारत उनका युद्ध के लिए पूरा समर्थन करे. यह थी कहानी अगस्त प्रस्ताव की धन्यवाद !